गौ सेवा और राजयोग

हमारे पुराणों में ऐसे कई वृतांत आते हैं जहां पर सतयुग और त्रेता युग के राजाओं ने गौ माता की रक्षा करने के लिए अपने प्राणों को भी समर्पित करने का वचन कर दिया। गौ माता की मनुष्यों के द्वारा हत्या होना प्राचीन भारत के इतिहास में एकदम असंभव था।

एक बार भगवान राम के पूर्वज राजा दिलीप ने देखा कि एक शेर गाय का पीछा करता हुआ आ रहा है और उसे मारना चाहता है। राजा दिलीप ने उस शेर को कहा कि यदि तुम्हें गौ माता को खाकर अपनी भूख मिटानी है तो गौमाता के स्थान पर मुझे खा लो। जब उन्होंने अपने शरीर और प्राण को ही शेर के सामने समर्पित कर दिया तो भगवान अपनी मूल अवस्था में प्रकट होकर राजा दिलीप से बोले कि यह तुम्हारी परीक्षा थी राजन जिसमें तुम सफल हुए।

जो गौ माता को बचाने में सक्षम होता है वही राजा कहलाने और बनने योग्य है। पिछले 100 / 200 वर्षों की यदि बात की जाए तो भारत में इस दृष्टिकोण से राजा कहलाने योग्य शासक हुआ ही नहीं। महात्मा गांधी ने कुछ विशेष वर्गों के प्रति अपना डर या सहानुभूति के कारण भारत के टूटने के निर्णय को स्वीकार किया और उसके बाद भी खंडित भारत में गौ माता की हत्या को संवैधानिक दृष्टि से निषेध करवाने में असफल रहे। गांधी और नेहरू ने गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय आगे आने वाले भारत के शासकों पर छोड़ दिया और उन्होंने इस विषय को डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स आफ स्टेट पॉलिसी में डाल कर अपना पल्ला झाड़ लिया।

नेहरू 15 वर्ष तक भारत के प्रधानमंत्री रहे थे, पर उन्होंने गौ हत्या बंद करने के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किया। यह सर्व विदित है कि नेहरू के समय में ही चीन ने तिब्बत को हड़प कर भारत का पड़ोसी बनने में सफलता प्राप्त की और उसके बाद 1962 में भारत पर आक्रमण करके उसको दोबारा खंडित किया। इस लड़ाई में भारत की हार हुई और आज तक भारत का 40,000 स्क्वायर किलोमीटर क्षेत्र चीन के कब्जे में है। इसी प्रकार से पाकिस्तान हमारे कश्मीर के काफी बड़े हिस्से को दबाए बैठा है।

इतिहासकार इस के हजारों कारण बताएंगे, उस पर बड़ी-बड़ी पोथियां लिखेंगे पर हमारी सामान्य दृष्टि में मूल बात यह है की विदेश में पढ़े हुए गांधी और नेहरू गौ माता को आध्यात्मिक दृष्टि से तो मां नहीं मानते थे और इसीलिए उन्होंने गौ हत्या को रोकने के लिए कोई विशेष कार्य नहीं किया। परिणाम यही हुआ कि उनके जीवन काल में भारत न केवल खंडित हुआ अपितु इन राजाओं का मृत्यु लोक से जाना भी थोड़ा असामान्य रूप से हुआ।

उसके बाद के जो शासक भारत में आए उन्होंने भी गाय के प्रति कोई विशेष कार्य नहीं किया, बल्कि गौ हत्या और उस हत्या पर आधारित आर्थिक व्यवस्था फलती फूलती रही। जब इंदिरा गांधी ब्रह्मऋषि श्री देवराहा बाबा जी के पास उनके दर्शन में जाती थीं, तो बाबा जी उनको निरंतर संकेत करते थे, आदेश देते थे कि तुमको गौ हत्या को रोकने के लिए पूरे भारत में एक कानून बनाना चाहिए। इंदिरा गांधी अपने शासन के दौरान गौ हत्या को बंद करने के लिए कानून तो नहीं ही बनवा पायीं, उल्टा गोपाष्टमी के दिन नवंबर 1966 में हो रहे साधुओं के आंदोलन को कुचलने के लिए उन्होंने पार्लियामेंट परिसर में जो गोली चलवाई, उसमें बहुत सारे साधु मारे गए और कई को जेल में डाल दिया गया।

गौ माता के प्रति हमारे शासकों का जो दृष्टिकोण रहा है उसका परिणाम इन शासकों को भुगतना भी पड़ा है। इंदिरा गांधी की हत्या अक्टूबर 1984 में गोपाष्टमी के दिन उनके अपने ही सुरक्षा गार्डों ने कर दी थी। इंदिरा गांधी के दोनों पुत्र भी अप्राकृतिक हिंसात्मक घटनाओं में अपने शरीर को छोड़ने के लिए विवश हुए थे। इनके बाद में आने वाले शासकों ने भी कोई विशेष कार्य नहीं किया और वह इतिहास के अंधेरों में गुम हो गए।

अटल बिहारी वाजपेई जब प्रधानमंत्री बने थे तो वे भी कुछ विशेष नहीं कर पाए और उनको भी अगले सौ वर्षों में लिखे जाने वाले भारत के गौरवशाली इतिहास में कोई बहुत बड़ा स्थान नहीं मिलेगा। अटल बिहारी वाजपेई और आडवाणी के बारे में ब्रह्मवेत्ता श्री देवराहा हंस बाबा जी ने पहले से ही हम लोगों को 2002 में बता दिया था कि यह दोनों अब देश के प्रधानमंत्री कभी नहीं बनेंगे, इन का सत्ता में आने के बाद भी राम जन्मभूमि की मुक्ति और उस पर भव्य मंदिर बनाने में उनकी उदासीनता इसका कारण बनी।

उनकी उदासीनता या और जो भी कारण रहा हो, उसके कारण गौ माता और भगवान राम ने उनको भारत का राजा न बनाने का निर्णय लिया। ऐसा हुआ भी। 2004 में अटल बिहारी वाजपेई चुनाव हार गए और 2009 में आडवाणी चुनाव हारने के बाद प्रधानमंत्री बनने से वंचित रह गए। 2013-14 में आडवाणी और मोदी में प्रधानमंत्री बनने की प्रतिस्पर्धा में आडवाणी असफल होकर भारत की राजनीति से रिटायर हो गए।

हमारे इतिहासकार इन सब घटनाओं के पीछे कोई भी कारण बताएं या लिखें, मूल कारण इन सभी राजाओं का गौ माता के प्रति उनकी उदासीनता थी। इन समस्त लोगों ने गौमाता को कभी भी भावनात्मक और आध्यात्मिक स्तर पर कभी अपनी माता नहीं माना। यदि ये हृदय से गौमाता को अपनी मां मानकर स्वीकार करते तो राजा होने के उपरांत गौ हत्या को रोकने का उपाय अवश्य करते पर ऐसा कुछ भी नहीं किया गया और गौ का रक्त बहता ही रहा।

अब स्थिति अत्यंत दयनीय हो चुकी है और अब गौ के रक्त पर आधारित एक गलत आर्थिक व्यवस्था खड़ी हो चुकी है। अब भारत के वर्तमान बुद्धिजीवी यह सोचते हैं कि गौ की हत्या को यदि कानून के द्वारा रोक दिया जाए तो इससे लाखों लोग बेरोजगार हो जाएंगे। पर यदि आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो यह बहुत ही गलत सोच है।

गऊ की हत्या को आर्थिक समृद्धि का आधार मानकर अपनी मां की हत्या को आर्थिक समृद्धि का कारण मानकर यदि कोई भी शासक या विचारधारा भारत की कर्मभूमि में शासन करना चाहता है तो वह बहुत सफल हो ही नहीं सकता और उसकी इस मृत्युलोक से जाने के पश्चात सद्गति होना भी अत्यंत कठिन है। मृत्यु लोक के इतिहास में हो सकता है कि इन राजाओं का बहुत नाम हो और इनकी कई प्रतिमाएँ मृत्युलोक में लगाईं जाएँ, परंतु इनकी आत्मा को कौन सी गति मिलेगी ये कहना बहुत ही कठिन है। इन सब को गोलोक की प्राप्ति तो बिल्कुल असंभव है और यह सब आवागमन के दुष्चक्र में फंसे ही रहेंगे।

पिछले 27 वर्षों में मैंने बहुत सारे राजनेताओं को ब्रह्मवेता श्री देवराहा हंस बाबा जी दर्शन के लिये आते हुए देखा है। बाबा जी ने मृत्यु लोक को छोड़कर जाने वाले नेताओं में केवल श्री अशोक सिंघल को गोलोक वासी कहकर पुकारा है। श्री अशोक सिंघल एक सच्चे गौ भक्त और राम भक्त थे और उन्होंने जीवन भर सत्य सनातन धर्म के लिए वास्तविक संघर्ष किया। उन्हें सत्ता की कोई इच्छा नहीं थी, इसी कारण से वे मृत्यु लोक छोड़ने के बाद गौलोक में गए।

वर्तमान में ममता बनर्जी जो दस साल से बंगाल की रानी है, उनका अब सत्ता छूटना निश्चित है। बाबाजी ने दो साल पहले वृंदावन में कैलाश विजयवर्गीय को यह बिल्कुल स्पष्ट बताया था कि जो शासक गौ की हत्या करते हैं करवाते हैं और गौ का मांस खाते हैं उनका आगे उदय होने वाले अखंड भारत में कोई स्थान नहीं होगा और इसी कारण ममता बनर्जी को बंगाल की राजनीतिक सत्ता से हाथ धोना पड़ेगा।

बाबा जी कहते हैं कि आध्यात्मिक शक्तियों का यह निर्णय है कि जो भी गौ के प्रति अनादर की दृष्टि रखते हैं और उस की हत्या करते या करवाते हैं या उस पर बिल्कुल मौन रहते हैं, वह सत्ता में कभी आएंगे ही नहीं। ममता बनर्जी खुलेआम कहती हैं कि गौ का मांस खाना उनका मूल अधिकार है। यह रानी भी गऊ के प्रति अपने अंदर दुर्भावना के कारण सत्ता के सुखों से वंचित होने वाली है।

भारत के वर्तमान शासक श्री नरेंद्र मोदी इस समय कई दूसरे युद्ध लड़ रहे हैं। नरेंद्र मोदी को आध्यात्मिक शक्तियों के द्वारा तैयार करवाया गया है और ऐसा प्रतीत होता है कि आध्यात्मिक शक्तियां अखंड भारत का उदय इन्हीं के शासनकाल में करवाएंगी।

वास्तविकता तो यह है कि करने वाला कोई और है और नाम किसी और का होता है। ऐसा होता भी चला आया है। पर अब प्रतीत होता है कि अखंड भारत का उदय होने के बाद गौ की समस्या पर भारत के शासक अवश्य ध्यान देंगे और गौ हत्या पूरे अखंड भारत में कानून के द्वारा निषेध कर दी जाएगी।

कानून बनाने के अतिरिक्त समाज में गऊ चेतना को जागृत करना नितांत आवश्यक है। जब तक समाज के व्यक्ति अपने संचित किए हुए धन में से गौअंश निकालकर गौ सेवा हेतु नहीं दान करते और गौ सेवा नहीं करते, तब तक गायों की स्थिति में सुधार होना अत्यंत कठिन होगा।

– अतुल कुमार सक्सेना

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