देवतत्त्व और अपराध
जो सृष्टि में सहयोग दें वे #देवतत्त्ववान् हैं और जो सृष्टि को विकृत् करें वे शैतान हैं।
सृष्टि निष्कामवान् परमात्मा की लीलामात्र है।लीला का अर्थ है खेल।
और खेल को बिगाड़ने वाला शैतान ही होता है।
देवतत्त्व में देवता से लेकर मनुष्य और पशुपक्षी आदि भी सहयोग देने के कारण स्थान पा सकते हैं।देखा है कि #गाय/भैंस आदि भी कुत्ते के बच्चों तक को अपना दूध पिलाने के कारण देवतत्त्व में शामिल हो जाती हैं।
जो सामान्यतया दिखाई नहीं देते हैं लेकिन विविध स्थानों पर विविध रूप में पूजे जाते हैं वे #देवता कहलाते हैं । इन्हें आस्तिक पूजते हैं नास्तिक इनको नहीं पूजते।
लेकिन इनको पूजना हमारे अपने कार्यों की सिद्धि के लिए है।
जो हमारे स्थान/ग्राम/कुलदेवता हैं उन्हें पूजना अनिवार्य है। जो अपने स्थान से दूर अन्य देवता हैं उन्हें पूजना हमारे प्रयोजन के अनुसार है,अनिवार्य नहीं है।
ये देवता #आकारवान् हैं यह बात वेदों में स्पष्टता बताई गई है तथा उनका स्वरूप भी बताया गया है।
निरूक्त में भी देवताओं के आकार के बारे में भी चिंतन किया गया है।
इनके आकार के अनुसार ही देवताओं की #मूर्ति बनाकर पूजा, स्थापना होती है।
अतः हमें इन देवस्थानों की मर्यादा का पालन अवश्य करना चाहिए यदि हमें सुख शांति चाहिए तो।
मैं देवता को नहीं मानता ऐसा कहने मात्र से देवता का प्रभाव थोडे़ ही मिटता है ??
जैसे मैं आग को नहीं मानता ऐसा कहने मात्र से उसका प्रभाव नहीं मिटता।
ध्यान दें—
१. घर में कलह,रोगादि का कारण स्थान, ग्राम कुलदेवता आदि की पूजाक्रम टूटना हो सकता है।
२. #एक्सीडेंट आदि भी किसी स्थान देव के प्रति अशिष्टता से हो सकता है।
क्योंकि सज्जन व्यक्ति का अपमान करने से भी #आयु घटती है तो देवताओं का अपमान करने से तो आयु समाप्त ही हो जाए इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।
रावण व सभासदों द्वारा विभीषण का अपमान कर निकाल देने पर तुरंत रावणादि आयुहीन हो गए —
#अस कहि चला बिभीषनु जबहीं।
आयू हीन भए सब तबहीं॥
साधु अवग्या तुरत भवानी।
कर कल्यान अखिल कै हानी॥
आयुर्वेद में कहा गया है कि सौ प्रकार की मौत होती हैं जिनमें से 99 टाली जा सकती हैं।
अतः ज्यादा #भौतिकवाद के चक्कर में फंसकर आफत मौल मत लीजिए।
तुम्हारी उठापटक चार दिन की है लेकिन देवता शाश्वत हैं।
गांव से बाहर #ईशान/उत्तर दिशा में मंदिर होते थे ,सब आस्तिक होते थे।गांव में सुख शांति रहती थी।
घर के भी एक कोने में #देवमूर्तियां रहती थी, नित्यपूजा होती थी।घर में संस्कार रहते थे।
शरीर में भी सिर को झूठे हाथ नहीं छूते थे अतः #सहस्रार पर देवतावास रहता था।
आज सब मर्यादा समाप्त हो जाने से ही सब दुःखी हैं।
पहले नदी पार करते थे तो हाथ जोड़कर एक सिक्का डाल देते थे।#सूर्य/चंद्र/देवता/गौ/ब्राह्मण/संन्यासी /सद्वृक्ष आदि को देखते ही प्रणाम करते थे।
इसी कारण इनके अभिमानी देवता सुरक्षा भी करते थे।
आज विपरीत आचरण होने से विपरीत परिणाम भोग रहे हैं। कोई भी परिवार/व्यक्ति सुखी नहीं है।
पूरे जीवन #अन्याय की कमाई करके/दूसरों का गला काटकर जोड़ा हुआ धन बुढापा आते आते खत्म हो जाता है। बुढापा जेल में कटता है या अस्पताल में।
संतान आंख दिखाने लगती है।
यह सब करनी का फल है।
हर चौराहे ,नदी,कुएं,वृक्ष,तीर्थ में देवताओं का स्थान है। देवताओं की निर्वीर्य मत समझें।
शांत देवता धीरे धीरे से फल देते हैं तो भैरव,रूद्र,योगिनियां त्वरित फल देती हैं। अतः खुद को सुधारिए और धर्म की शरण लिजिए।
धर्मो रक्षति रक्षितः।
– कृष्ण चंद्र शास्त्री