श्रीगणेश गीता में योग

वरेण्य उवाच किं सुखं त्रिषु लोकेषु देवगन्धर्वयोनिषु । भगवन् कृपया तन्मे वद विद्या विशारद ।।२०।। अर्थ:- वरेण्य बोले – भगवन्

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मुझे श्री कृष्ण ही चाहिए

(श्री अर्जुन द्वारा श्री कृष्ण का चयन क्यों?) विराट नगर में श्री अर्जुन संध्या वन्दन कर अभी आसन पर ही

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पंचप्राणरूपी गणों के ओंकार रूप में अधिपति भगवान श्रीगणेशजी को नमन

(गणपति का आधिदैविक स्वरूप): ॐ नमस्ते गणपतये ॥ त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि ॥ त्वमेव केवलं कर्तासि ॥ त्वमेव केवलं धर्तासि ॥

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जानिये 18 पुराणों में क्या है

आइये सभी अट्ठारह पुराणों के कुछ पहलुओं को संक्षिप्त में समझने की कोशिश करते हैं। प्रस्तुति विस्तृत है, इसलिए शेयर

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