क्या हैं हिन्दू घर की विशेषताएं

जीवन में घर का बहुत महत्त्व है। गृह्य से घर शब्द बना है। गृह होने परही विवाह हेतु गृहिणी मिलती है। गृहिणी को भी गृह कहते हैं-गृहिणी गृहमुच्यते। आशय है घर और घरवाली दोनों में अभेद होता है। गृह्यकर्म, गृह्यसूत्र दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं। हिन्दू घरों की अपनी विशेष पहचान होती है।

बाह्य पहचान-
हिन्दू घरों को बाहर से देखकर पहचान लेने की बात सर्वविदित है। हनुमानजी ने लंका में विभीषण के घर को बाहर से ही पहचान लियाथा। हिन्दू घर का मुख्य द्वार सजा होता हैऔर उसके ऊपर स्वस्तिक चिह्न या मङ्गल कलश बने होते हैं। द्वारके दोनों पार्श्वोंमें लक्ष्मीजी के चिह्न, हाथी, गणेश, हनुमानजी या सर्पोंके चित्र बने होते हैं। ये चित्र महोत्सव पर बदलते भी रहते हैं। अनेक घरों के बाहर ही कई लोग शिवलिंग आदि भी स्थापित किये रहते हैं। प्रायशः तुलसी के पौधे अवश्य देखनेको मिलते हैं। बाहरी अन्य सभी दरवाजों की अपेक्षा मुख्यद्वार सुसज्जित और आकर्षक होता है। उसकी वार्षिक पूजा भी की जाती है। भवन का सामने वाला हिस्सा सिर उठाकर देखने पर मुडेर पर कोई न कोई बाह्यगृहदेवता से युक्त होताहै जिसकी पूजा वर्षमें एकबार होती है। ये बाह्य लक्षण हैं जो ध्वज पताका आदि अन्य कारणों से भी दूर से ही पहचान बता देते हैं।

अंतः पहचान-
घरमें घुसते ही दाहिनी ओर शमी का पौधा दिख सकता है। विल्व के छोटे पौधे उनके लहराते पत्र आपको आकर्षित कर सकते हैं। क्षुद्र घंटिकाएँ बजती हुई मनभावन लग सकती हैं। शुक सरिकाएँ, बुलबुल, गौरैया की चहक सुनाई दे सकती है। दरवाजे पर कोई पाल्यपशु दिख सकता है जिसे रोटी देने गृहिणी निकलती है। चिड़ियों को खाने पीने की व्यवस्था घर की चहारदीवारी के भीतर दिख सकती है। अलिंद और आंगन हिन्दू घरों की पहचान हैं। कक्ष से जुड़ा बरामदा अलिंद है और घर का बीच वाला हिस्सा आंगन है। आंगन को अजिर भी कहते हैं। बच्चे तो आंगन में ही ठुमकते हैं–द्रवहु सो दशरथ अजिर बिहारी। दशरथजी के आंगन में ठुमकने वाले श्रीराम। आंगन के बीच में तुलसी का चौरा या ढका हुआ यज्ञ का हवन कुंड जो वर्ष में एक बार गृहयज्ञ की अग्नि से समिद्ध होता है।

तुलसीवृन्द, गाय, अल्पना, शमी का पौधा, देवप्रतिमा, बाहरी दीवारों पर मङ्गल कलश-स्वस्तिचिह्न-स्वागतं आदि का अंकन हिन्दू घरों की पहचान है। कुछ लिखित मन्त्र जो घरमें बीमारी और अपशकुन नहीं घुसने देते-पाये जाते हैं।

कतिपय भवनों की पहचान विशिष्ट मूर्तियों से होती है जैसे-
शेर कोठी, अश्व कोठी, हाथीघर, घण्टाघर, देवघर, पीलीकोठी आदि। प्रायशः भवन के सामने वाले ऊंचे हिस्से पर गणेश या हनुमान आज भी पाए जाते हैं। इनका वर्ष में एक बार पूजोत्सव होता है। हिन्दू घरों का ईशान कोण और अग्नि कोण हमेशा पवित्र रहता है। ईशान कोण में पूजा, जल संस्थान और पवित्र पौधे दिखते हैं। यहीं पर वास्तुपुरुष का सिर होता है और अग्नि कोण में पाकशाला होती है। मिलने जुलने वाले कक्ष में अपनी परिष्कृत अभिरुचि और जीविका कर्म से जुड़े सामान होते हैं, जैसे वेदग्रंथ, तलवार, मञ्जूषा और कलाकृतियां आदि। नैऋत्यकोणको ऊंचा रखने हेतु अनेक लोग अपने घर पर उस कोण पर त्रिशूल गाड़ते हैं।

कक्ष का विभाजन-
यह कमरा मालिक का है,यह बच्चों का है और यह दादी माँ का है। सभी के अपने कमरे होते हैं जोउनको शारीरिक, मानसिक विश्राम देते हैं। आने जाने वालों के लिए, अतिथि के लिए तो वायव्यकोण वाला कमरा ही चलता है।

पानी का ताम्र कलश,पूजन का रजत कलश और फूलधातु के वर्तन सब अलग अलग कार्य केलिए होते हैं। मिट्टी के सुंदर घड़े भी मिलेंगे। हांथों के बने सूप, दौरे, दोलचियाँ, मोढे, पीढ़े भी मिलेंगे। दूध-दही-मट्ठा-मक्खन-पोहे भी खाने को मिल सकते हैं। चाय की चुस्कियों के अलावा अनेक घरों में आपको लस्सी और हलवे के ऊपर पड़ी किशमिश भी मिल सकती है। अलग अलग राज्यों के अलग अलग मौसम एवं वातावरण के अनुसार नारियल पानी, प्रयागी अमरूद, लंगड़ा आम आदि भी प्राप्त हो सकता है।

अनेक वस्त्र भी मिलेंगे–पूजा वस्त्र, खेल वस्त्र, शयन वस्त्र, सादा वस्त्र, रंगीन वस्त्र ये सब भी घर के अंग हैं। शंख, घण्टा, घड़ियाल, दीप, आचमनीय, हवन कुंड भी हिन्दू घरों में मिलेंगे। गुग्गल की सुगंध नथुनों को भर सकती है। स्तुति गान और जयध्वनि हिन्दू की आदत में है।

अपने घरों को मय, नागर, विश्वकर्मा आदिकी शैली में बनाएं, ग्रीक शैली में नहीं। ग्रीक शैली के भवनों की एड़ियां नहीं होती हैं। ये भवन लँगड़े होते हैं। कटे, तिकोने, ढालवे होते हैं। इनके इंजीनियर, नक्शानवीस सब के सब ईसाईयत के पोषक तोषक होते हैं। अपनी बुद्धि लगाएं और अपना हिन्दू भवन बनाएं।

– डॉ कामेश्वर उपाध्याय
अखिल भारतीय विद्वत्परिषत्

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