शिव के रूद्र अवतार हनुमान जी

जब जब हम रामायण की बात करते हैं तो उसमे भगवान श्री राम, माता जानकी, भ्राता लक्ष्मण और वानरराज सुग्रीव के साथ साथ एक मुख्य योद्धा का नाम भी सुनते हैं जिनका नाम हनुमानजी है।

भक्ति, समर्पण, सेवा, ब्रह्मचर्य और महाबली जैसे अनेक गुणों के स्वामी हैं हनुमानजी। भगवान राम और माता सीता के दुलारे कौन हैं? श्री हनुमान ही तो हैं कैसे उनका जन्म हुआ था ? आइये आज हम जानते हैं श्री राम भक्त हनुमानजी के बारे में।

श्री हनुमान जी को भगवान शिव का रूद्र अवतार माना जाता है। भगवान शंकर का हनुमान अवतार सभी अवतारों में श्रेष्ठ है। इस अवतार में भगवान शंकर जी ने एक वानर का रूप धरा था। इस घटना की पुष्टि श्रीरामचरित मानस, अगस्त्य संहिता, विनय पत्रिका और वायु पुराण में भी की गई है।

श्री हनुमान जी के जन्म को लेकर विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। कथा के अनुसार रावण का अंत करने हेतु जब भगवान श्री विष्णु जी ने श्रीराम जी का अवतार लिया। तब अन्य देवता भी श्रीराम जी की सेवा हेतु अलग-अलग रूपों में प्रकट हुए। भगवान शंकर जी ने पूर्व में भगवान श्री हरि विष्णु जी से दास्य का वरदान प्राप्त किया था, जिसे पूर्ण करने हेतु वह भी अवतरित होना चाहते थे।

अतः वह श्री हनुमान जी के रूप में अवतरित हुए। श्री हनुमान जी शंकर जी के ग्यारहवें रुद्र हैं। इस रूप में भगवान शंकर जी ने श्रीराम जी की सेवा भी की तथा रावण वध में सहायता भी की। हनुमान जी का जीवन जितना महान है, उतना ही महान और लीलाओं से परिपूर्ण था उनका बालपन। वानरराज केसरी और माता अंजनी के पुत्र होने के कारण वो केसरी नंदन और अंजनेय के नाम से भी जाने जाते हैं।

श्री हनुमान जी को पवनपुत्र भी कहा जाता है क्यूंकि माता अंजनी को वायु देव की कृपा से ही हनुमान जी प्राप्त हुए हैं। श्री हनुमान जी बचपन से ही पराक्रमी और साहसी हैं ये बात हम उनकी एक लीला से जान सकते हैं जब वे सूरज को फल समझ कर खाने चले थे और सूर्यदेव की रक्षा हेतु देवराज इंद्र ने उन पर वज्र का प्रहार किया था।

अपने पुत्र की मूर्छित अवस्था देख वायुदेव ने क्रोधित होकर वायु को रोक दिया था। तब सभी देवी देवताओं ने हनुमान जी को आशीर्वाद देकर उन्हें भिन्न भिन्न प्रकार की शक्तियों से सुसज्जित किया और कहा कि ये बालक आने वाले समय में एक महान कार्य में भगवान श्री विष्णु जी के अवतार श्रीराम जी की धर्म स्थापना में मदद करेगा।

उन्हें जीवन के रहस्यों और अपने उद्देश्य को जानने की बहुत जिज्ञासा रहती थी और उसी के चलते वो ऋषि, ज्ञानी, पंडितों से इसके उत्तर प्राप्त करने का प्रयास करते थे, लेकिन उनकी जिज्ञासा शांत न होने पर वो क्रोधित होकर उत्पात मचाते।

इसी जिज्ञासा वश वो एक दिन भृगु ऋषि के पास पहुंचे और उनको क्रोधित कर दिया तो उन्होंने हनुमानजी को श्राप देते हुए कहा की तुम अपनी सारी शक्तियाँ भूल जाओगे और जब कोई ज्ञानी व्यक्ति तुम्हे अपनी शक्तियों का स्मरण करायेगा तो तुम्हे वो वापिस मिल जाएगी।

उसके बाद वो एक दिन वानरराज सुग्रीव के पास पहुंचे और उनकी सेवा में लग गए समय बीतता गया और प्रभु श्रीराम जी के रूप में भगवान श्री विष्णु जी अवतरित हुए और आखिर कर वो समय आ गया जब रावण ने माता सीता का हरण कर लिया और उन्हें ढूंढते ढूंढते प्रभु श्रीराम जी हनुमान जी से मिले। भगवान को देख हनुमान जी प्रसन्न हो गए और उनकी व्यथा सुनकर वो भी दुखी हो गए।

तब उन्होंने भगवान श्रीराम जी को वानरराज सुग्रीव से मिलाया और सहायता करने का वचन भी दिया। और इसी तरह शुरू हुई माता जानकी की खोज, चारों दिशाओं में सब वानर मिलके उनकी खोज में निकल पड़े तब एक दिन सब लंका की और बढ़े, लेकिन समुन्दर को पार करने के लिए कोई सक्षम नहीं था तब जाम्बुवन्त जी ने हनुमानजी को याद दिलाया उनकी शक्तियों के बारे में।

अपनी शक्तियों का स्मरण कर उन्होंने विराट रूपधर कर समुन्दर पार माता जानकी की खोज की और भगवान श्रीराम जी का सन्देश पहुँचाया। इसी कारण हनुमानजी को श्री राम जी का अनन्य भक्त कहा जाता है।

इस अवतार से हमें यह सीख लेनी चाहिए कि यदि आप अपनी क्षमता को पहचानें तो सब कुछ संभव है। जिस तरह श्री हनुमान जी ने अपनी क्षमता को जानकर समुद्र पार किया था उसी तरह हमारे लिए भी कुछ भी असंभव नहीं है। धर्म के पथ पर चलते हुए श्रीराम जी का श्री हनुमान जी ने साथ दिया था उसी तरह यदि हम धर्म के मार्ग पर चलें तो भगवान हमारी सहायता भी अवश्य करेंगे। बोलो सियावार रामचंद्र की जय।

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