बच्चों के कल्याण का व्रत हरतालिका तीज
हरतालिका व्रत भाद्रपद, शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन किया जाता है। इस बार हरतालिका तीज 1 व 2 सितंबर को मनाया जाएगा। इस दिन गौरी–शंकर का पूजन किया जाता है। यह व्रत सभी कुआंरी युवतियां व महिलाएं करती है। यह त्योहार मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में मनाया जाता है। कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में इस व्रत को गौरी हब्बा के नाम से जाना जाता है।
यह भाद्र पद के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है, जो गणेश चतुर्थी के एक दिन पहले होता है। इस बार पूजा करने की तिथि 1 व 2 सितंबर को है।
हरितालिका तीज के दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती है। इस दिन शंकर–पार्वती की बालू या मिट्टी की मूति बनाकर पूजन किया जाता है। घर साफ–सफाई कर तोरण–मंडप आदि सजाया जाता है।
आप एक पवित्र चौकी पर शुद्ध मिट्टी में गंगाजल मिलाकर शिलिंग, रिद्धि–सिद्धि सहित गणेश, पार्वती व उनकी सखी की आकृति बनाएं। इसके बाद देवताओं का आवाहन कर पूजन करें। इस व्रत का पूजन पूरी रात किया जाता है। प्रत्येक पहर में भगवान शंकर का पूजन व आरती होती है।
कथा,,,,
यह हरतालिका व्रत कथा शिवजी ने ही मां पार्वती को सुनाई थी। शिव भगवान ने इस कथा में मां पार्वती को उनका पिछला जन्म याद दिलाया था। पढ़ें विस्तार से…
‘हे गौरा, पिछले जन्म में तुमने मुझे पाने के लिए बहुत छोटी उम्र में कठोर तप और घोर तपस्या की थी। तुमने ना तो कुछ खाया और ना ही पीया बस हवा और सूखे पत्ते चबाए। जला देने वाली गर्मी हो या कंपा देने वाली ठंड तुम नहीं हटीं। डटी रहीं।
बारिश में भी तुमने जल नहीं पिया। तुम्हें इस हालत में देखकर तुम्हारे पिता दु:खी थे। उनको दु:खी देख कर नारदमुनि आए और कहा कि मैं भगवान् विष्णु के भेजने पर यहां आया हूं। वह आपकी कन्या की से विवाह करना चाहते हैं। इस बारे में मैं आपकी राय जानना चाहता हूं।
’नारदजी की बात सुनकर आपके पिता बोले अगर भगवान विष्णु यह चाहते हैं तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं।
परंतु जब तुम्हें इस विवाह के बारे में पता चला तो तुम दुःखी हो गईं। तुम्हारी एक सहेली ने तुम्हारे दुःख का कारण पूछा तो तुमने कहा कि मैंने सच्चे मन से भगवान् शिव का वरण किया है, किन्तु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णुजी के साथ तय कर दिया है। मैं विचित्र धर्मसंकट में हूं। अब मेरे पास प्राण त्याग देने के अलावा कोई और उपाय नहीं बचा।
तुम्हारी सखी बहुत ही समझदार थी। उसने कहा–प्राण छोड़ने का यहां कारण ही क्या है? संकट के समय धैर्य से काम लेना चाहिए। भारतीय नारी के जीवन की सार्थकता इसी में है कि जिसे मन से पति रूप में एक बार वरण कर लिया, जीवनपर्यन्त उसी से निर्वाह करें। मैं तुम्हें घनघोर वन में ले चलती हूं जो साधना स्थल भी है और जहां तुम्हारे पिता तुम्हें खोज भी नहीं पाएंगे। मुझे पूर्ण विश्वास है कि ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे…
तुमने ऐसा ही किया। तुम्हारे पिता तुम्हें घर में न पाकर बड़े चिंतित और दुःखी हुए। इधर तुम्हारी खोज होती रही उधर तुम अपनी सहेली के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मेरी आराधना में लीन रहने लगीं। तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण किया। तुम्हारी इस कठोर तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन हिल उठा और मैं शीघ्र ही तुम्हारे पास पहुंचा और तुमसे वर मांगने को कहा तब अपनी तपस्या के फलीभूत मुझे अपने समक्ष पाकर तुमने कहा, ‘मैं आपको सच्चे मन से पति के रूप में वरण कर चुकी हूं। यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर यहां पधारे हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिए। तब ‘तथास्तु‘ कहकर मैं कैलाश पर्वत पर लौट गया।
उसी समय गिरिराज अपने बंधु–बांधवों के साथ तुम्हें खोजते हुए वहां पहुंचे। तुमने सारा वृतांत बताया और कहा कि मैं घर तभी जाउंगी अगर आप महादेव से मेरा विवाह करेंगे। तुम्हारे पिता मान गए औऱ उन्होने हमारा विवाह करवाया। इस व्रत का महत्व यह है कि मैं इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाली प्रत्येक स्त्री को मनवांछित फल देता हूं। इस पूरे प्रकरण में तुम्हारी सखी ने तुम्हारा हरण किया था इसलिए इस व्रत का नाम हरतालिका व्रत हो गया।
इस व्रत से जुड़ी एक मान्यता यह है कि इस व्रत को करने वाली स्त्रियां पार्वती जी के समान ही सुखपूर्वक पतिरमण करके शिवलोक को जाती हैं।
सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सुहाग को अखंड बनाए रखने और अविवाहित युवतियां मन मुताबिक वर पाने के लिए हरितालिका तीज का व्रत करती हैं। इस दिन व्रत करने वाली स्त्रियां सूर्योदय से पूर्व ही उठ जाती हैं और नहा कर पूरा श्रृंगार करती हैं।
पूजन के लिए केले के पत्तों से मंडप बनाकर गौरी–शंकर की प्रतिमा स्थापित की जाती है। इसके साथ पार्वती जी को सुहाग का सारा सामान चढ़ाया जाता है। रात में भजन, कीर्तन करते हुए जागरण कर तीन बार आरती की जाती है और शिव पार्वती विवाह की कथा सुनी जाती है।
इस व्रत के व्रती को शयन का निषेध है इसके लिए उसे रात्रि में भजन कीर्तन के साथ रात्रि जागरण करना पड़ता है प्रातःकाल स्नान करने के पश्चात् श्रद्धा एवम भक्ति पूर्वक किसी सुपात्र सुहागिन महिला को श्रृंगार सामग्री ,वस्त्र ,खाद्य सामग्री ,फल ,मिष्ठान्न एवम यथा शक्ति आभूषण का दान करना चाहिए। रेत के शिवलिंग बनाए हैं तो उनका जलाशय में विसर्जन किया जाता है और खीरा खा कर व्रत को संपन्न किया जाता है।
हरतालिका तीज व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस व्रत को करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। विवाह योग्य युवतियों को मनचाहा वर मिलता है। पढ़ें व्रत की प्रमुख बातें….
1 . हरतालिका तीज व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है। व्रत के बाद अगले दिन जल ग्रहण करने का विधान है।
2. हरतालिका तीज व्रत करने पर इसे छोड़ा नहीं जाता है। प्रत्येक वर्ष इस व्रत को विधि–विधान से करना चाहिए।
3. हरतालिका तीज व्रत के दिन रात्रि जागरण किया जाता है। रात में भजन–कीर्तन करना चाहिए।
4. हरतालिका तीज व्रत कुंवारी कन्या, सौभाग्यवती स्त्रियां करती हैं।शास्त्रों में विधवा महिलाओं को भी यह व्रत रखने की आज्ञा है।
5. हरतालिका तीज पर माता पार्वती और भगवान शंकर की विधि–विधान से पूजा की जाती है।
6. हरतालिका तीज प्रदोषकाल में किया जाता है। सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त को प्रदोषकाल कहा जाता है। यह दिन और रात के मिलन का समय होता है।
7. हरतालिका पूजन के लिए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की बालू रेत व काली मिट्टी की प्रतिमा हाथों से बनाएं।
8. पूजा स्थल को फूलों से सजाकर एक चौकी रखें और उस चौकी पर केले के पत्ते रखकर भगवान शंकर, माता पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें।
9. इसके बाद देवताओं का आह्वान करते हुए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश का षोडशोपचार पूजन करें।
10. सुहाग की पिटारी में सुहाग की सारी वस्तु रखकर माता पार्वती को चढ़ाना इस व्रत की मुख्य परंपरा है।
11. इसमें शिव जी को धोती और अंगोछा चढ़ाया जाता है। यह सुहाग सामग्री सास के चरण स्पर्श करने के बाद ब्राह्मणी और ब्राह्मण को दान देना चाहिए।
12 . इस प्रकार पूजन के बाद कथा सुनें और रात्रि जागरण करें। आरती के बाद सुबह माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाएं व ककड़ी–हलवे का भोग लगाकर व्रत खोलें।
– पंडित कृष्ण दत्त शर्मा