हविष्यान्न और शाकाहार

मनुष्य शाकाहारी परिवार प्राइमेट्स से निकला है । अतः फल और सब्जियाँ मनुष्य का प्राकृतिक आहार है । जितना कम पकाया जाय या बिल्कुल न पकाया जाय उतना अच्छा । यदि टमाटर त्याग दें (जो विदेशी मूल का है, संस्कृत में इसके लिए शब्द नहीं है) तो वैदिक यज्ञ के अनुसार फल और सब्जियाँ “हविष्यान्न” के अन्तर्गत आती हैं , बशर्ते गाय के दूध-घी के अलावा भैंस का दूध-दही-घी और कोई भी नमक-तेल -मिर्च-मसाला भी त्याग दिया जाय । तब ऐसा भोजन जप-तप सहित किया जाय तो यज्ञ के तुल्य फल देता है और ग्रहशान्ति में सहायक बनता है , बशर्ते स्वयं पकाएं और दूषित संस्कारों वाले व्यक्ति को चूल्हा न छूने दें । अरवा चावल, मसूर के सिवा अन्य दालें, गेंहूँ या जौ का आटा , आदि भी हविष्यान्न के अंतर्गत आता है ।

बिना बाहरी जल दिए धीमी आँच पर सब्जी इस तरह पकाई जाय कि भाप कम से कम बाहर जाय तो स्वाद नष्ट नहीं होता । यदि ऐसे खेत की सब्जी और चावल आपको उपलब्ध हो सके जिसमें कभी भी कृत्रिम खाद नहीं पड़ा हो तो ऐसा स्वाद और सुगन्ध मिलेगा जो किसी मसाले में सम्भव नहीं है , साथ ही भरपूर पौष्टिकता और प्राकृतिक गुणों से पूरित , जो रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाएगी और औषधि का कार्य करेगी । यही कारण है कि प्राचीन ग्रन्थों में अन्न एवं सब्जी को भी “औषधि” माना जाता था ।

लगातार हविष्यान्न के आहार का फल हुआ कि मेरे चश्मे की क्षमता -3.5 से घटकर -1.5 पर आ गयी और कभी भी कोई रोग नहीं हुआ । हविष्यान्न सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद वर्जित है । यदि स्पष्ट मध्याह्न के बाद और सूर्यास्त से पहले ऐसा भोजन प्रतिदिन केवल एक बार ही किया जाय तो “एकभुक्त व्रत” कहलाता है जो सर्वोत्तम व्रत है (पिछले दो दशकों से मैं कर रहा था) जिससे वर्तमान और पिछले जन्मों के पाप कटते हैं । वैदिक संस्कारों में हविष्यान्न अनिवार्य है, जैसे कि उपनयन, विवाह, श्राद्ध. आदि । गीता में वैश्वानर अग्निदेव को समस्त भोजन अर्पित करने का आदेश है, जिसका अर्थ हविष्यान्न ही है, क्योंकि वैदिक धर्म में देवों को केवल हविष्यान्न ही अर्पित किया जा सकता है । कलियुग में कई लोगों ने यज्ञ में हिंसा भी आरम्भ कर दी और मांस खाने लगे । वैश्वानर अग्निदेव को समस्त भोजन अर्पित करने का यह भी अर्थ है कि स्वयं खाने का भ्रम न पालें क्योंकि आत्मा दर्शक है जो भोक्ता होने का भ्रम तो पाल सकता है परन्तु खा नहीं सकता । ऐसा भोजन आत्मज्ञान में सहायक है । यही कारण है कि वैश्वानर अग्निदेव को समस्त भोजन अर्पित करने के स्थान पर जो स्वयं खाता है वह पापी पाप ही खाता है (-गीता)।

बहुत से लोग जैविक कृषि के पक्ष में होते जा रहे हैं । अमेरिका के बड़े-बड़े होटलों और सेठों ने अफ्रीका और लातीनी अमेरिका में बड़े-बड़े फार्म खरीदे हैं जहाँ बिना रासायनिक खादों के खेती की जाती है, क्योंकि ऐसे खेतों की फसलों का स्वाद वे जान चुके हैं ।

ये बाद की बात नहीं है ; टालने वालों का कल कभी नहीं आता । कृत्रिम खादों का दीर्घकालीन प्रभाव DNA पर कैसा पड़ता है इसपर अभी वैज्ञानिकों के पास आंकड़ें भी नहीं हैं । जिस प्राकृतिक वातावरण में मानवीय DNA उद्भूत हुआ था, उससे हम दूर होते जाएंगे तो एक्सटिंक्शन नजदीक आता जायेगा । यदि सत्य का 100% पालन सम्भव नहीं, तो अधिकाधिक सम्भव पालन करना चाहिए, टालना नहीं चाहिए । मैं स्वयं कृषक नहीं हूँ, किन्तु कृषि में सही विधियों का प्रचार तो कर सकता हूँ , क्योंकि अन्न तो सबको खाना है । अन्न और पशुओं की जिन प्रजातियों को फिलीपींस या प्रयोगशालाओं से या जर्सी और फ्रिजिया से हमारे गाँवों में लाया जा रहा है वे उन प्रजातियों को सदा के लिए मिटाती जा रही हैं जो लाखों सालों से हमारे पर्यावरण के अनुकूल सिद्ध हुई हैं । कल यही वैज्ञानिक बोलेंगे कि भारत के मनुष्य भी घटिया हैं , इंग्लैण्ड के पुरुषों की सहायता से खाद-पानी देकर भारतीय महिलाओं को टेस्ट ट्यूब बेबी “उगाना” चाहिए ! इन तथाकथित वैज्ञानिक प्रजाति की फसलों को अधिक कृत्रिम खाद और पानी चाहिए, अतः केवल धनी किसानों के लिए ये उपयुक्त हैं, गरीब किसानों को आत्महत्या की ओर धकेल रही हैं । महाराष्ट्र से ब्राज़ील भेजी गयी भारतीय गायों ने वहां अच्छा भोजन और समुचित देखभाल मिलने पर दूध देने का विश्व-कीर्तिमान बनाया है । किन्तु हमारे मन्त्रालयों में लार्ड मैकॉले के मानसपुत्रों की भरमार हैं जो भारतीय गायों को कत्लखानों में भिजवाने के लिए जर्सी गायों को बढ़ावा दे रहे हैं । शास्त्रों के अनुसार कूबड़-विहीन गोजाति की तरह दिखने वाले पशुओं को गाय नहीं माना जा सकता । अतः जर्सी गाय वास्तव में गाय नहीं हैं । जर्सी बैल हल नहीं खींच सकते, अतः गोमांस का प्रचलन बढ़ेगा ।

मेरी बातों को व्यक्तिगत स्तर पर नहीं लेना चाहिए , मैं किसी व्यक्ति का विरोध नहीं कर रहा हूँ, जो बातें हमारे देश और हमारी सभ्यता के लिए घातक हैं उनका विरोध कर रहा हूँ । ऐसी बातें हज़ार साल की गुलामी के दौरान इस देश में फैली हैं, ख़ास तौर पर लार्ड मैकॉले की शिक्षा प्रणाली थोपे जाने के बाद ।

विनय झा जी

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