स्त्रियाँ वेदाधिकारिणी क्यों नहीं हैं
स्त्रियाँ वेदाधिकारिणी क्यों नहीं हैं, प्रश्न उत्तर श्री भागवतानंद गुरु के साथ
प्रश्न: आपसे एक जिज्ञासा को शांत करना चाहता हूँ कि स्त्री वेदाधिकारिणी क्यों नहीं है?
उ: क्योंकि वेदोक्त मन्त्र, संस्कार एवं पद्धतियों को आचरित करने के लिए जिस तत्त्व स्थापन की आवश्यकता जिस देह में सम्भव है, वह स्त्रियों में विवक्षित नहीं होता है। स्त्रियों को समस्त वेदों के कृत्यों का सम्पूर्ण फल पुराणोक्त आचार एवं स्त्रीधर्म के निर्वाह से सहज ही प्राप्त हो जाता है। कौन से मन्त्र और विधान किस देह में प्रतिष्ठित होकर किये जाने पर कल्याणकारी हो सकते हैं, इसका संविधान शास्त्रों में स्पष्ट है। जैसे दूध में नमक नहीं डाल सकते किन्तु मट्ठे में डाल सकते हैं, उसी प्रकार देहगत स्थिति में विधानभेद भी है। शास्त्र किसी को फलोपभोग से वंचित नहीं करते, बस उस फल को प्राप्त करने के लिए जिसके लिए उन्होंने जो विधि बतायी है, उसका अनुसरण ही श्रेयस्कर है।
प्र: कहीं कहीं पर शास्त्र में स्त्रियों को पापयोनि कहा गया है, ऐसा क्यों? जबकि उसी के देह से उत्पन्न पुरुष पुण्यत्व और अन्यान्य कर्मों का अधिकारी है?
उ: पापयोनि का तात्पर्य यह है कि उन्होंने इन्द्र की ब्रह्महत्या का चतुर्थांश धारण किया है इसीलिए … पापयोनि इसीलिए भी क्योंकि स्त्रियों को प्रणव का अधिकार नहीं है। वाराह पुराण का वचन है – ॐ कारादिनिवृत्तिश्च … ॐ आदि से निवृत्ति पाप है … अतएव वेदोक्त मन्त्रों में अधिकृत जो लिंग वर्णादि नहीं है, वे पापयोनि हुए। यहां निन्दापरक अर्थ नहीं है, लक्षणपरक अर्थ है।
अनार्यसमाजी द्वारा प्र: यदि ऐसा है फिर तो ईश्वर पक्षपाती हुआ ?
उ: आपका वाला होगा, हमारा वाला नहीं है। क्योंकि वह किसी को फलोपभोग से नहीं रोकता। उसने सभी फलों का विधान बना रखा है। जैसे, यदि किसी जीव को स्वर्ग जाना है, अथवा मोक्ष पाना है अथवा और किसी फल की सिद्धि करनी है तो निश्चित ही वह जीव कर्म में प्रवृत्ति रखेगा। उस समय वह जीव जिस भी वर्ण लिंग आदि के देह में स्थित है, उस देह में रहते हुए उस फल की प्राप्ति किस कर्म और विधि से होगी, यह निश्चित कर दिया। जैसे यदि किसी व्यक्ति को वाराणसी जाना है तो पटना में स्थित व्यक्ति के लिए, मद्रास या कश्मीर में स्थित व्यक्ति के लिए समान लक्ष्य होने पर भी मार्गभेद हो जाएगा। वाराणसी जाने से किसी को नहीं रोका गया है, फलप्राप्ति से किसी को नहीं रोका गया है, अपितु उस फल को प्राप्त करने के लिए जो विधि है, उस विधि को कौन से देह में स्थित जीव कैसे करे, इसका निर्देश किया गया है।
प्र: एक जिज्ञासा और। वेदव्यास जी को ब्राह्मण कैसे कहा जाए? क्योंकि माता सत्यवती को ब्राह्मणी कैसे कहें? उसके लिए मछली और उपरिचर वसु दोनों को ब्राह्मण ब्राह्मणी होना पडेगा। थीं तो अद्रिका, किन्तु शरीर मछली का ही था, जिससे सन्तान हुई। वर्णसङ्करता की तरह, माता सत्यवती को मनुष्य और मीन की सङ्करता का परिणाम होने का खण्डन कैसे करें?
उ: शब्दबल से … ऋषियों की वाणी में अमोघसिद्धि होती है। जैसे एक निम्न स्तर का अधिकारी उच्च अधिकारी की बात को इच्छा या अनिच्छा से पालन करता ही है, वैसे ही योगी ऋषियों की वाणी का अनुपालन जड़ प्रकृति करती ही है। ब्रह्मबोध होने पर योगी ब्रह्मतुल्य हो जाता है इसीलिए वह प्राकृतिक संसाधनों या तत्त्वों को अपनी शब्दशक्ति से निर्देशित कर सकता है। इसीलिए ऋषिवाक्य के श्राप या वरदान के रूप में फलित होने के समय सर्वसाधारण नियम लागू नहीं होते।
प्र: कृपया बताए कि घर पर शिव जी का अभिषेक किस प्रकार किया जा सकता है?
उ: यदि आप वेदाधिकारी हैं तो अपने गोत्र की शाखा के अनुसार वैदिक रुद्र मन्त्र से कर या करवा सकते हैं। यदि वेदाधिकारी नहीं हैं तो पौराणिक मन्त्रों, स्तोत्रों अथवा सहस्रनाम आदि से कर या करा लें।
प्र: कुल में पीढ़ियों से जिस शाखा की परंपरा चल रही है उसको मानना चाहिए कि गोत्रानुसार? यदि कुल मे चल रही शाखा परंपरा और गोत्र वाली शाखा में मतभेद हो तो किसका आलंबन लेना चाहिए?
उ: कुल का ही अवलम्बन करें। क्षेत्रानुसार कुछ गोत्रों में एक से अधिक प्रभेद मिलते हैं। जैसे मेरे ही गोत्र कौण्डिन्य में यजुर्वेद और सामवेद दोनों मिलता है किन्तु हम लोग यजुर्वेदी हैं।
प्र: क्या स्त्रियों को गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए या नहीं?
उ: वेदोक्त गायत्री नहीं जप सकती हैं।
प्र: तो गायत्री के लिए स्त्रियों हेतु क्या आदेश है?
उ: केवल स्त्रियों के लिए ही नहीं, शूद्रवर्ण, अनुपवीत ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य के लिए भी वेदोक्त गायत्री नहीं है। स्त्रियां अपने नारी धर्म का पालन करें तथा ईश्वर के तारक नामों का जप करें, इससे उन्हें गायत्री जप का ही फल और लाभ मिलेगा।
प्र: जो अनाधिकारी हो और जिसे यह बात ज्ञात नहीं हो, यदि उसने बिना मुंह से बोले, मन ही मन, कई बार गायत्री मंत्र का जाप कर लिया हो तो उसे करना चाहिए?
उ: नारायण … मानसिक स्मरण का उतना प्रतिफल नहीं है … आप उसके स्थान पर अपने इष्ट का नाम, यथा नारायण नारायण, शिव शिव, जगदम्ब जगदम्ब आदि का स्मरण करें, फल वही मिलेगा, परमपद वही मिलेगा जो गायत्री अधिकृत जापक को मिलता है।
–श्री भगवतानंद गुरु