राम सेतु के हेतु भगवान राम के वचन
।।।।।।।।।। ।। ॐ ।।।।।।।।।।
।।।।।। श्री गणेशायः नमः ।।।।।।।
*श्री जानकी वल्लभो विजयते *
——-श्रीरामचरितमानस ———–
* षष्ट सोपान *
**लँकाकाण्ड**
दोहा-२-से आगे
**राम **
जे रामेस्वर दरसनु करिहहिं ।
ते तनु तजि मम लोक सिधरिहहिं ।।
जो गंगाजलु आनि चढ़ाइहि ।
सो साजुज्य मुक्ति नर पाइहि ।।
जो मनुष्य ( मेरे स्थापित किये हुए इन ) रामेश्वरजीका दर्शन करेंगे,वे शरीर छोड़कर मेरे लोकको जाएंगे। और जो गङ्गाजल लाकर इनपर चढावेगा,वह मनुष्य सायुज्य मुक्ति पावेगा ( अर्थात मेरे साथ एक हो जायगा) ।। १ ।।
होइ अकाम जो छल तजि सेइहि।
भगति मोरि तेहि संकर देइहि ।।
मम कृत सेतु जो दरसनु करिही ।
सो बिनु श्रम भवसागर तरिही ।।
जो छल छोड़कर और निष्काम होकर श्रीरामेश्वरजीकी सेवा करेंगे,उन्हें शंकरजी मेरी भक्ति देंगे। और जो मेरे बनाए सेतुका दर्शन करेगा,वह बिना ही परिश्रम संसाररूपी समुद्रसे तर जायगा।।२।।
राम बचन सब के जिय भाए ।
मुनिवर निज निज आश्रम आए।।
गिरिजा रघुपति कै। यह रीती ।
संतत करहिं प्रनत पर प्रीती ।।
श्रीरामजीके वचन सबके मनको अच्छे लगे। तदनन्तर वे श्रेष्ठ मुनि अपने-अपने आश्रमोंको लौट आये। ( शिवजी कहते हैं–) हे पार्वती ! श्रीरघुनाथजीकी यह रीति है कि वे शरणागतपर सदा प्रीति करते हैं।।३।।
बाँधा सेतु नील नल नागर ।
राम कृपाँ जसु भयउ उजागर ।।
बूड़हिं आनहिं बोरहिं जेई ।
भए उपल बोहित सम तेई ।।
चतुर नल और नीलने सेतु बांधा। श्रीरामजीकी कृपासे उनका यह ( उज्ज्वल ) यश सर्वत्र फैल गया। जो पत्थर आप डूबते हैं और दूसरोंको डूबा देते हैं, वे ही जहाज के समान ( स्वयं तैरनेवाले और दूसरोंको पार ले जानेवाले ) हो गये।। ४।।
महिमा यह न जलधि कइ बरनी।
पाहन गुन न कपिन्ह कइ करनी ।।
यह न तो समुद्रकी महिमा वर्णन की गयी है, न पत्थरोंका गुण है और न वानरोंकी ही कोई करामात है।।५।।
दो०- श्री रघुवीर प्रताप ते सिंधु तरे पाषान।
ते मतिमंद जे राम तजि भजहिं जाइ प्रभु आन।।३।।
श्रीरघुवीरके प्रतापसे पत्थर भी समुद्रपर तैर गये। ऐसे श्रीरामजीको छोड़कर जो किसी दूसरे स्वामीको जाकर भजते हैं वे ( निश्चय ही ) मंदबुद्धि हैं।।३।।
श्रीमद्गोस्वामी तुलसिदासजीविरचित
श्रीरामचरितमानस –081–
।। जय श्री राम ।
* ॐ हनुमते नमः *
।।जय जय हनुमान ।।
(अशुद्धियों और भूलों के लिये क्षमा प्रार्थी हैं ।)
टीकाकार– श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार