दत्तात्रेय के २४ गुरु

आज भगवान दत्तात्रेय जयंती है, मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है। इस दिन दत्तात्रेय जी के बालरूप की पूजा की जाती है। भगवान दत्तात्रेय ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों का संयुक्त रूप हैं। भगवान श्री दत्तात्रेय को तंत्राधिपति भी कहा जाता हैं। इस साल दत्तात्रेय भगवान की जयंती आज 22 दिसंबर को है। इस दिन मंदिरों में विशेष पूजा-पाठ और धार्मिक आयोजन होंगे।

दत्तात्रेय जयंती कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार तीनों देवियों पार्वती, लक्ष्मी तथा सरस्वती को अपने पतिव्रत धर्म पर बहुत घमंड हो गया। नारद जी ने इनका घमंड चूर करने के लिए बारी-बारी से तीनों देवियों के पास जाकर देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म का गुणगान करने लगे।

– ईर्ष्या से भरी देवियों ने नारद जी के चले जाने के बाद देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म को भंग करने की जिद ठान ली। ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों को अपनी पत्नियों के सामने हार माननी पड़ी और वे तीनों देवी अनुसूया की कुटिया के सामने एक साथ भिखारी के वेश में जाकर खड़े हो गए।

– जब देवी अनुसूया इन्हें भिक्षा देने लगी तब इन्होंने भिक्षा लेने से मना कर दिया और भोजन करने की इच्छा प्रकट की। अतिथि सत्कार को अपना धर्म मानते हुए देवी अनुसूया उनके लिए भोजन की थाली परोस लाई, लेकिन तीनों देवों ने भोजन करने से मना करते हुए कहा कि जब तक आप हमें गोद में बिठाकर भोजन नहीं कराएंगी, हम भोजन नहीं करेगें।

– अपने पतिव्रत धर्म के बल पर उन्होंने उनकी इच्छा जानली और ऋषि अत्रि के चरणों का जल तीनों देवों पर छिड़क दिया, जिससे तीनों बालरूप में आ गए। बालरूप में तीनों को भरपेट भोजन कराने के बाद, देवी अनुसूया उन्हें पालने में लिटाकर अपने प्रेम तथा वात्सल्य से उन्हें पालने लगी। धीरे-धीरे दिन बीतने लगे और काफी दिन बीतने पर भी ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश घर नहीं लौटे तब तीनों देवियों को अपने पतियों की चिंता सताने लगी।

– अपनी भूल पर पछतावा होने के बाद तीनों माता अनुसूया के पास पहुंच क्षमा याचना करते हुए उनके पतिव्रत धर्म के समक्ष अपना सिर झुकाया। माता अनुसूया ने कहा कि इन तीनों ने मेरा दूध पीया है, इसलिए इन्हें बालरूप में ही रहना ही होगा। यह सुनकर तीनों देवों ने अपने-अपने अंश को मिलाकर एक नया अंश पैदा किया, जिनका नाम दत्तात्रेय रखा गया।

– इनके तीन सिर तथा छ: हाथ बने। तीनों देवों को एकसाथ बालरूप में दत्तात्रेय के अंश में पाने के बाद माता अनुसूया ने अपने पति अत्रि ऋषि के चरणों का जल तीनों देवों पर छिड़का और उन्हें पूर्ववत रूप प्रदान कर दिया।

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार तीनों देवियों पार्वती, लक्ष्मी तथा सरस्वती को अपने पतिव्रत धर्म पर बहुत घमंड हो गया। नारद जी ने इनका घमंड चूर करने के लिए बारी-बारी से तीनों देवियों के पास जाकर देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म का गुणगान करने लगे।

– ईर्ष्या से भरी देवियों ने नारद जी के चले जाने के बाद देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म को भंग करने की जिद ठान ली। ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों को अपनी पत्नियों के सामने हार माननी पड़ी और वे तीनों देवी अनुसूया की कुटिया के सामने एक साथ भिखारी के वेश में जाकर खड़े हो गए।

– जब देवी अनुसूया इन्हें भिक्षा देने लगी तब इन्होंने भिक्षा लेने से मना कर दिया और भोजन करने की इच्छा प्रकट की। अतिथि सत्कार को अपना धर्म मानते हुए देवी अनुसूया उनके लिए भोजन की थाली परोस लाई, लेकिन तीनों देवों ने भोजन करने से मना करते हुए कहा कि जब तक आप हमें गोद में बिठाकर भोजन नहीं कराएंगी, हम भोजन नहीं करेगें।

– अपने पतिव्रत धर्म के बल पर उन्होंने उनकी मंशा जानली और ऋषि अत्रि के चरणों का जल तीनों देवों पर छिड़क दिया, जिससे तीनों बालरूप में आ गए। बालरूप में तीनों को भरपेट भोजन कराने के बाद, देवी अनुसूया उन्हें पालने में लिटाकर अपने प्रेम तथा वात्सल्य से उन्हें पालने लगी। धीरे-धीरे दिन बीतने लगे और काफी दिन बीतने पर भी ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश घर नहीं लौटे तब तीनों देवियों को अपने पतियों की चिंता सताने लगी।

– अपनी भूल पर पछतावा होने के बाद तीनों माता अनुसूया के पास पहुंच क्षमा याचना करते हुए उनके पतिव्रत धर्म के समक्ष अपना सिर झुकाया। माता अनुसूया ने कहा कि इन तीनों ने मेरा दूध पीया है, इसलिए इन्हें बालरूप में ही रहना ही होगा। यह सुनकर तीनों देवों ने अपने-अपने अंश को मिलाकर एक नया अंश पैदा किया, जिनका नाम दत्तात्रेय रखा गया।

– इनके तीन सिर तथा छ: हाथ बने। तीनों देवों को एकसाथ बालरूप में दत्तात्रेय के अंश में पाने के बाद माता अनुसूया ने अपने पति अत्रि ऋषि के चरणों का जल तीनों देवों पर छिड़का और उन्हें पूर्ववत रूप प्रदान कर दिया।

उन्होंने पृथ्वी से सीखा सहनशील होना, पिंगला वेश्या से सीखा कि हमें सिर्फ पैसों के लिए नहीं जीना चाहिए। भगवान दत्तात्रेय ने 24 गुरु बनाए थे। यहां जानिए भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरु कौन-कौन हैं और व उनसे क्या सीखा जा सकता है…

1. पृथ्वी- सहनशीलता व परोपकार की भावना सीख सकते हैं। पृथ्वी पर लोग कई प्रकार के आघात करते हैं, कई प्रकार के उत्पात होते हैं, कई प्रकार खनन कार्य होते हैं, लेकिन पृथ्वी हर आघात को परोपकार का भावना से सहन करती है।

2. पिंगला वेश्या- पिंगला नाम की वेश्या से दत्तात्रेय ने सबक लिया कि केवल पैसों के लिए जीना नहीं चाहिए। वह वेश्या सिर्फ पैसा पाने के लिए किसी भी पुरुष की ओर इसी नजर से देखती थी, वह धनी है और उससे धन प्राप्त होगा। धन की कामना में वह सो नहीं पाती थी। जब एक दिन पिंगला वेश्या के मन में वैराग्य जागा, तब उसे समझ आया कि पैसों में नहीं बल्कि परमात्मा के ध्यान में ही असली सुख है, तब उसे सुख की नींद आई।

3. कबूतर- कबूतर का जोड़ा जाल में फंसे बच्चों को देखकर खुद भी जाल में जा फंसता है। इनसे यह सबक लिया जा सकता है कि किसी से बहुत ज्यादा स्नेह दु:ख ही वजह होता है।

4. सूर्य- सूर्य से दत्तात्रेय ने सीखा कि जिस तरह एक ही होने पर भी सूर्य अलग-अलग माध्यमों से अलग-अलग दिखाई देता है। आत्मा भी एक ही है, लेकिन कई रूपों में दिखाई देती है।

5. वायु- जिस प्रकार अच्छी या बुरी जगह पर जाने के बाद वायु का मूल रूप स्वच्छता ही है। उसी तरह अच्छे या बुरे लोगों के साथ रहने पर भी हमें अपनी अच्छाइयों को छोडऩा नहीं चाहिए।

6. हिरण- हिरण उछल-कूद, संगीत, मौज-मस्ती में इतना खो जाता है कि उसे अपने आसपास शेर या अन्य किसी हिंसक जानवर के होने का आभास ही नहीं होता है और वह मारा जाता है। इससे यह सीखा जा सकता है कि हमें कभी भी मौज-मस्ती में इतना लापरवाह नहीं होना चाहिए।

7. समुद्र- जीवन के उतार-चढ़ाव में भी खुश और गतिशील रहना चाहिए।

8. पतंगा- जिस प्रकार पतंगा आग की ओर आकर्षित होकर जल जाता है। उसी प्रकार रूप-रंग के आकर्षण और झूठे मोह में उलझना नहीं चाहिए।

9. हाथी- हाथी हथिनी के संपर्क में आते ही उसके प्रति आसक्त हो जाता है। अत: हाथी से सीखा जा सकता है कि संन्यासी और तपस्वी पुरुष को स्त्री से बहुत दूर रहना चाहिए।

10. आकाश- दत्तात्रेय ने आकाश से सीखा कि हर देश, काल, परिस्थिति में लगाव से दूर रहना चाहिए।

11. जल- दत्तात्रेय ने जल से सीखा कि हमें सदैव पवित्र रहना चाहिए।

12. छत्ते से शहद निकालने वाला- मधुमक्खियां शहद इकट्ठा करती है और एक दिन छत्ते से शहद निकालने वाला सारा शहद ले जाता है। इस बात से ये सीखा जा सकता है कि आवश्यकता से अधिक चीजों को एकत्र करके नहीं रखना चाहिए।

13. मछली- हमें स्वाद का लोभी नहीं होना चाहिए। मछली किसी कांटे में फंसे मांस के टुकड़े को खाने के लिए चली जाती है और अंत में प्राण गंवा देती है। हमें स्वाद को इतना अधिक महत्व नहीं देना चाहिए, ऐसा ही भोजन करें जो सेहत के लिए अच्छा हो।

14. कुरर पक्षी- कुरर पक्षी से सीखना चाहिए कि चीजों को पास में रखने की सोच छोड़ देना चाहिए। कुरर पक्षी मांस के टुकड़े को चोंच में दबाए रहता है, लेकिन उसे खाता है। जब दूसरे बलवान पक्षी उस मांस के टुकड़े को देखते हैं तो वे कुरर से उसे छिन लेते हैं। मांस का टुकड़ा छोड़ने के बाद ही कुरर को शांति मिलती है।

15. बालक- छोटे बच्चे से सीखा कि हमेशा चिंतामुक्त और प्रसन्न रहना चाहिए।

16. आग- आग से दत्तात्रेय ने सीखा कि कैसे भी हालात हों, हमें उन हालातों में ढल जाना चाहिए। जिस प्रकार आग अलग-अलग लकडिय़ों के बीच रहने के बाद भी एक जैसी ही नजर आती है।

17. चंद्रमा- आत्मा लाभ-हानि से परे है। वैसे ही जैसे घटने-बढ़ने से भी चंद्रमा की चमक और शीतलता बदलती नहीं है, हमेशा एक-जैसे रहती है। आत्मा भी किसी भी प्रकार के लाभ-हानि से बदलती नहीं है।

18. कुमारी कन्या- कुमारी कन्या से सीखना चाहिए कि अकेले रहकर भी काम करते रहना चाहिए और आगे बढ़ते रहना चाहिए। दत्तात्रेय ने एक कुमारी कन्या देखी जो धान कूट रही थी। धान कूटते समय उस कन्या की चूडिय़ां आवाज कर रही थी। बाहर मेहमान बैठे थे, जिन्हें चूडिय़ों की आवाज से परेशानी हो रही थी। तब उस कन्या ने चूडिय़ों आवाज बंद करने के लिए चूडिय़ां ही तोड़ दी। दोनों हाथों में बस एक-एक चूड़ी ही रहने दी। इसके बाद उस कन्या ने बिना शोर किए धान कूट लिया। अत: हमें ही एक चूड़ी की भांति अकेले ही रहना चाहिए।

19. शरकृत या तीर बनाने वाला- अभ्यास और वैराग्य से मन को वश में करना चाहिए। दत्तात्रेय ने एक तीर बनाने वाला देखा जो तीर बनाने में इतना मग्न था कि उसके पास से राजा की सवारी निकल गई, पर उसका ध्यान भंग नहीं हुआ।

20. सांप- दत्तात्रेय ने सांप से सीखा कि किसी भी संन्यासी को अकेले ही जीवन व्यतीत करना चाहिए। साथ ही, कभी भी एक स्थान पर रुककर नहीं रहना चाहिए। जगह-जगह ज्ञान बांटते रहना चाहिए।

21. मकड़ी- मकड़ी से दत्तात्रेय ने सीखा कि भगवान भी माय जाल रचते हैं और उसे मिटा देते हैं। जिस प्रकार मकड़ी स्वयं जाल बनाती है, उसमें विचरण करती है और अंत में पूरे जाल को खुद ही निगल लेती है, ठीक इसी प्रकार भगवान भी माया से सृष्टि की रचना करते हैं और अंत में उसे समेट लेते हैं।

22. भृंगी कीड़ा- इस कीड़े से दत्तात्रेय ने सीखा कि अच्छी हो या बुरी, जहां जैसी सोच में मन लगाएंगे मन वैसा ही हो जाता है।

23. भौंरा या मधुमक्खी- भौरें से दत्तात्रेय ने सीखा कि जहां भी सार्थक बात सीखने को मिले उसे ग्रहण कर लेना चाहिए। जिस प्रकार मधुमक्खी और भौरें अलग-अलग फूलों से पराग ले लेती है।

24. अजगर- अजगर से सीखा कि हमें जीवन में संतोषी बनना चाहिए। जो मिल जाए, उसे ही खुशी-खुशी स्वीकार कर लेना चाहिए।

– पंडित कृष्ण दत्त शर्मा

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