मेरे तन में राम, मन में राम

एक सन्यासी घूमते-फिरते एक दुकान पर आये, दुकान मे अनेक छोटे-बड़े डिब्बे थे, सन्यासी के मन में जिज्ञासा उतपन्न हुई, एक डिब्बे की ओर इशारा करते हुए सन्यासी ने दुकानदार से पूछा, इसमे क्या है ? दुकानदारने कहा – इसमे नमक है ! सन्यासी ने फिर पूछा, इसके पास वाले मे क्या है ? दुकानदार ने कहा, इसमे हल्दी है ।

इसी प्रकार सन्यासी पूछ्ते गए और दुकानदार बतलाता रहा, अंत मे पीछे रखे डिब्बे का नंबर आया, सन्यासी ने पूछा उस अंतिम डिब्बे मे क्या है?

दुकानदार बोला, उसमे राम-राम है ! सन्यासी ने हैरान होते हुये पूछा राम राम?? भला यह राम-राम किस वस्तु का नाम है भाई?? मैंने तो इस नाम के किसी सामान के बारे में कभी नहीं सुना।

दुकानदार सन्यासी के भोलेपन पर हंस कर बोला – महात्मन, अन्य डिब्बों मे तो भिन्न-भिन्न वस्तुएं हैं, पर यह डिब्बा रिक्त है, हम रिक्त को खाली नही कहकर राम-राम कहते हैं ।

संन्यासी की आंखें खुली की खुली रह गयीं।

जिस बात के लिये मैं दर दर भटक रहा था, वो बात मुझे आज एक व्यापारी से समझ आ रही है। वो सन्यासी उस छोटे से किराने के दुकानदार के चरणों में गिर पड़ा … ओह, तो रिक्त मे राम रहता है ।

सत्य है भाई, भरे हुए में राम को स्थान कहाँ ? काम, क्रोध, लोभ, मोह, लालच, अभिमान, ईर्ष्या, द्वेष और भली- बुरी, सुख दुख, की बातों से जब दिल-दिमाग भरा रहेगा तो उसमें ईश्वर का वास कैसे होगा ? राम यानी ईश्वर तो खाली याने साफ-सुथरे मन मे ही निवास कर सकता है ।

एक छोटी सी दुकान वाले ने सन्यासी को बहुत बड़ी बात समझा दी थी! आज सन्यासी अपने आनंद में था।

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