मृत्यु से डरें नहीं, सौभाग्यवती है मृत्यु
मृत्यु का विवाह काल से हुआ है। यह सौभाग्यवती है। इसकी भी आयु निर्धारित है।अतः यह भी गलतकाम करने से डरती है।
यह काले रंग की है। लाल वस्त्र पहनती है।इसकी छः भुजाएं हैं। यह बहुत शांत रहती है।यह दया के लिए ख्यात है। यह पतिव्रता है।अपने पति काल के वाम भाग में रहती है।इसके परिवार का परिचय निम्नवत् है–
पति का नाम — काल है। काल के छः मुख हैं।बारह भुजाएं और चौबीस आँखें हैं। छह पैर हैं।रंग काला है। वस्त्र हमेशा लाल ही पहनते हैं —
षड वक्त्रं षोडशभुजं चतुर्विंशति लोचनम्।
षडपादं कृष्णवर्णम् च रक्ताम्बरधरं परम् ।।
पुत्री का नाम — जरा है। मृत्यु के चौसठ पुत्र हैं।
*💐-मृत्यु से डरें नहीं —
यदि समय से पहले इससे भेंट हो जाये तो एकदम न डरें।इसे देखकर हुलिया से पहचान लेंऔर एकदम न भयभीत हों।यह हमेशा मुस्कुराती रहती है।यह अनावश्यक किसी को छेड़ती नहीं है।यह कालके आदेश का अक्षरशः पालन
करती है और पतिव्रता है–
सस्मिताम् षडभुजां शान्ताम् दयायुक्तां महासतीम्।।
यदि किसी का शरीर छोड़ने का समय नहीं आया है तो यह उसे टोकती भी नहीं।आदेश हो जाने पर किसी को श्वास लेने का भी मौका नहीं देती है।अब देखिए न इसने आज पर्रिकर जी को भी मौका नहीं दिया।उन्हें सम्मान पूर्वक सूर्यलोक भेज दिया।वीरव्रतीजनोंको यह स्वर्गलोक या सूर्यलोक के रास्ते विमान से भेज देती है।
*💐– मृत्यु आज्ञा पालिका है–
मृत्यु को लोग बहुत भला बुरा कहते हैं पर यह धैर्य पूर्वक सबकी कही खरी खोटी सुनती रहती है।जैसे काश्मीर के पत्थरबाजों के पत्थर सैनिक सहते रहतेहैं वैसे ही यह भी
सबकी झिड़कियां सहती रहती है।यदि आप कभी इससे बात करें तो यह स्पष्ट बतलायेगी कि यम, काल और वह स्वयं ईश आज्ञा के पालक मात्र हैं—
क:काल: को यमः का च मृत्युकन्या च व्याधयः।
वयं भ्रमाम: सततमीशाज्ञा परिपालका: ।।
*💐–संसार सागर की तरह विशाल है मृत्यु—
भगवान विष्णु के अतिरिक्त मृत्यु सागर से दूसरा नहीं पार लगाता है। महामृत्युंजय जी भी मृत्यु से पार वैष्णव मन्त्र से लगाते हैं।उसे तारक मन्त्र कहा गया है।श्री कृष्ण ने गीता में कहा —
तेषामहं समुद्धर्ता मृत्यु संसार सागरात्।
इसीलिए कहा गया कि योगी और भक्त मृत्यु को तैर जाते हैं।
*💐–लोकान्तर यात्रा कराती है मृत्यु–
आयु का हरण कर जीव को मृत्यु धर्मराज के आदेश पर अन्य लोक में भेज देती है।शव में प्राण,इन्द्रिय,ज्ञान,धर्म,
दृष्टि,वाक,श्रवण,शोभा होने के बावजूद भी उठने बैठने की क्षमता नहीं होती है।आत्मा से ही जीवन और श्वसन मिलता है।मृत्यु किसी को जीवन नहीं दे सकती है।मृत्यु और जड़ता में अंतर नहीं है।आयु के घटने बढ़ने से भी मृत्यु का कार्य प्रभावित होता है।
*💐– समय पर ही मृत्यु आती है–
एक क्षण पहले या बाद में मृत्यु नहीं हो सकती है।यदि आयु या काल पूरा नहीं हुआ है तो सैकड़ों गोली लगने के बाद भी मृत्यु नहीं होती है।यदि आयु समाप्त तो फूल लगने या कुशा के चुभ जाने मात्र से मृत्यु हो जाती है–
नाप्राप्त कालो म्रियेत विद्धः शरशतैरपि।
कुशाग्रैरपि संविद्ध: प्राप्तकालो न जीवति।।
*💐–अमृत क्या है?–
ब्रह्मा भगवान का एक कल्प पर्यन्त समय अमृत कहा गया है।चार अरब बत्तीस करोड़ वर्ष को एक कल्प कहते हैं।मृत्यु अमृत लोगों से दूर रहती है।ज्यादा से ज्यादा आयु
एक कल्प की होती है।विष पी कर भी महादेव ब्रह्मा से अधिक आयु वाले हैं जब कि अमृतपान किये देव लोग एक कल्प तक ही जीवित रह पाते हैं।
*💐– उत्पत्ति और मृत्यु का क्रम जुड़ा रहता है।मृत्यु के बाद जीवन, जीवन के बाद मृत्यु निश्चित है।जीवन दृश्य है मृत्यु अदृश्य है।प्रमाद को सनत्कुमार ऋषि ने मृत्यु कहा था।बड़ों को तू कहना उनकी मृत्यु है।जो कभी नहीं मरता वह सनातन है।अमृतस्य पुत्रा : वयम्।तपस्वी मरे बिना भी
ऊपर सशरीर चला जाता है।शुकदेव मुनि की तरह।
भारतवर्ष मरने मारने से नहीं डरता हैं।मृत्यु यहाँ महोत्सव है।मरने के बाद नए जीवन की तैयारी होती है।
– डॉ कामेश्वर उपाध्याय
अखिल भारतीय विद्वत्परिषद