क्या जूठे भोजन से प्रेम बढ़ता है ?

जूठे भोजन से प्रेम तो नहीं बढ़ता ,हाँ रोग अवश्य हो सकते हैं । यहां तक हमने जूठे का अनुभव किया है ,यदि किसी व्यक्तिने बॉटल से ओक से पानी पिया हो और उसी बॉटल से मैं ओकसे पानी पी लूँ ,तो मेरे मुँहमें इन्फेक्शन हो जाता है अर्थात् मुखसे निकलने वाले जीवाणु खाद्य वस्तु को दूर से इतना प्रभावित करते हैं ,कि दूसरा व्यक्ति उस खाद्य से संक्रमित हो जाए ,यह हमारा कई वर्षों का अनुभव है । आजकल तो जूठा भोजन करने की परम्परा ही चल गई है । शहरों में देखो तो डाइनिंग टेबल पर एक ही थाली में एक-दूसरे का जूठा बड़ी शान से खाते हैं तो गाँवों में भी प्रायः स्त्रियाँ पतिका जूठा खाया क़रती हैं ,जो कि शास्त्र विरुद्ध है । अपनी स्त्री और सन्तान को भी अपना जूठा नहीं देना चाहिये । भगवान् श्रीकृष्ण जूठे भोजन को तामसी भोजन करके निन्द्य करते हैं – ‘उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम् ।’

भोजन करते समय भोजन करने वाले थाली को स्पर्श करने से ,भोजन करने वाला यदि अपनी थाली से अलग रखे भोजन को स्पर्श करता है तो वह भी उच्छिष्ट ही है । डाइनिंग टेबल पर भोजन करने की जो परम्परा है ,उसमें सभी एक-दूसरे का जूठा ही खा रहे हैं ,एक ही टेबल पर रखा सभी खाद्य जूठा हो जाता है ,इसलिये साधकों को तो कम-से-कम डाइनिंग टेबल पर भोजन नहीं करना चाहिये । एक थाली में बैठकर ,या भोजन कर चुके की थाली में ,एक दूसरे की थाली को छूते हुए भोजन न करें । स्वयं के स्त्री-पुत्र-पति क्यों न हों इनको न जूठा खिलायें ,न इनका जूठा स्वयं ही खाएँ । महाभारत में आया परिवारके लोग यदि एक ही थाली में भोजन करें तो उससे क्या हानि होती है –
“शूद्रस्य तु कुलं हन्ति वैश्यस्य पशुबान्धवान् ।
क्षत्रियस्य श्रियं हन्ति ब्राह्मणस्य सुवर्चसम् ।।
तथोच्छिष्टमथान्योन्यं संप्राशेन्नात्र संशय ।”(महाभारत १३६/२३-२६)
‘शूद्र अपने परिवार-कुटुम्बके साथ एक पात्र में भोजन करे तो उसका कुलक्षय ,वैश्य अपने परिवार-कुटुम्बके साथ एक पात्र में भोजन करे तो उसके पशुधन और बान्धवों का नाश ,क्षत्रिय अपने परिवार-कुटुम्बीजन के साथ एक ही पात्र में भोजन करे तो उसके श्रीका नाश एवं ब्राह्मण अपने परिवार-कुटुम्बीजन के साथ एक ही पात्र में भोजन करे तो उसके ब्रह्मवर्चस का नाश होता है । अतएव एक दूसरेका जूठा खाना यानी कई लोगों का एक पात्रमें या स्पर्श होता हुआ भोजन करना अत्यन्त अवांछनीय है ।’

भूमि पर आसन पर सुखासन में बैठकर, लकड़ी की चौकी अथवा पटले पर भोजन रखकर ही ग्रहण करें ,ध्यान रखे एक चौकी या पटले पर एक ही व्यक्ति का भोजन पात्र रखा होना चाहिये अन्यथा एक ही चौकी पर अधिक लोगों के भोजन पात्र रखने से भी वह भोजन जूठा ही होगा । छोटे बालकों कन्यादि को और वृद्धजनों को पहले भोजन कराएँ तब ही स्वयं करें ।

* भूमि पर भोजन क्यों करना चाहिये ?

कुर्सी पर बैठकर भोजन करने जठराग्नि मन्द होती है ,और खड़े होकर भोजन करने पर तो जठराग्नि अत्यन्त ही मन्द हो जाती है ,जिससे पाचनतंत्र पर असर पड़ता है । भूमि पर सुखासन में बैठकर भोजन करने से एक तो जठराग्नि उदीप्त होती है ,दूसरे शरीर में विद्यमान चक्र भी मेरुदण्ड के सीधे रहने पर सुखासन या पद्मासन में बैठने पर ही उदीप्त होते हैं ,जिससे पाचनतंत्र सुदृढ और सुचारू रूप से कार्य करता है । इसीलिये भूमि पर बैठकर ही भोजन करें ,अपनी शान दिखाने के लिये डाइनिंग टेबल पर भोजन न करें । श्रमिक-किसनादि उकुडू बैठकर भी भोजन करने कर सकते हैं ।

आदित्य वाहिनी शिकोहाबाद

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