हिन्दू जीवन पद्धति

जो व्यक्ति अपने चौबीस घण्टे की जिन्दगी को साध लेता है वह सफलहो जाता है,क्योंकि इसी चौबीस घण्टेमें क्रम पूर्वक जीवन मृत्यु का घूर्णन होता रहता है—-
अस्मिन्नेव प्रयुञ्जानो ह्यस्मिन्नेव तु लीयते।
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन कर्तव्यं सुखमिच्छता(दक्षस्मृति२/५७)
सारा प्रयत्न चौबीस घण्टे को साधने में लगाना चाहिए। यह आयुर्वेद,ज्योतिष,योग और धर्मशास्त्र कहता है। ये सभी वेद मूलक हैं। अतः यह वेद का मत है
१-ब्राह्म मुहूर्त्त में जागना -ब्राह्मेमुहूर्ते उत्तिष्ठेत्।
२-मूत्र मल विसर्जन करें-कुर्यान्मूत्रपुरीषन्च ।
३-शुद्धि करें-शौचं कुर्यात्।
४-स्नान करें- प्रातःस्नानं समाचरेत्।
५-शुद्ध,धुला वस्त्र पहनें-ततश्च वाससी शुद्धे।
६-पूजन,हवन करें- संध्यावन्दनमाचरेत्।
७-योग, व्यायाम करें -व्यायामादिकं ततः कार्यं।
८-अतिथि, गो,जीव भोजन दें- भूतबलिं कुर्यात्।
९-भोजन करें- भोजनं मौनमास्थितः।(पूर्वमुख,उत्तरमुख)
१०-जीविका हेतु दो याम( ६घण्टा)काम करें– व्यवहारं ततः कुर्यात् बहिर्गत्वा यथा सुखं।
११-सन्ध्या में वेद, पुराण, धर्मशास्त्र पढ़ें-धर्मम् चिंतयेत्।
१२-अगले दिन की योजना करें-स्वकार्यं चिंतयेत् ततः।
१३-हाथ पैर धोकर भोजन करें- कृतपादादिशौच:भोजनं।
१४-रात्रिसूक्तकापाठ या इष्टमन्त्रपाठकरसोयें- जपेत्सूक्तं।
१५-गृहस्थ्य धर्म पालन करें- ऋतुकालाभिगामिस्यात्।
(६ घण्टासोनाचाहिए-यामद्वयशयानंहि ब्रह्मभूयायकल्पते)
इस प्रकार से चौबीस घण्टे की दिनचर्या ब्रह्मपुराण में विस्तार के साथ वर्णित है।

 

चौबीस घण्टे का समय संविभाग जीवन को शतायु रखने की प्रक्रिया का हिस्सा है।इन पन्द्रह प्रमुख मानदण्डों को
विस्तारित किया गया है।इनमें ब्राह्म मुहूर्त और अष्टमंगल द्रव्यों का विश्लेषण पहले दिया जा चुका है।
*** शरीर विभाग– नाभि के नीचे के लिए वायें हाथ का प्रयोगतथा ऊपर केलिए दाहिनेहाथ का प्रयोगकिया जाता है- नाभेरधो वामहस्तो नाभेरुर्ध्वं तु दक्षिण:। देवीभागवतं ११/२/२९।।इसी विधान के आधारपर भारतवर्षमें दाहिने हाथसे भोजनकियाजाता हैऔर वाम हाथसे शौच।अंग्रेजों में यह विधान न होने से वे दोनों हाथों से भोजन करते हैं।
*** छः मौन स्थान–
छः शारीरिक कार्य करते समय मौन रहना चाहिए-
उच्चारे मैथुने चैव प्रस्रावे दन्तधावने ।
स्नाने भोजनकाले च षट्सु मौनं समाचरेत्।।(हारीत:)
मलत्याग काल,मैथुनकाल,मूत्रत्यागकाल,दंत धावनकाल,
स्नानकाल और भोजनकाल में मौन रहना चाहिए। इससे आयु बढ़ती है अन्यथा आयु घटती है।स्नान में समंत्रक स्नान करने का विधान है अन्यथा मौन विधान है।माघ अमावस्याको मौन रहकरही स्नान कियाजाताहै।इसीलिए
उसे मौनी अमावस्या कहते हैं।
***त्रिकालस्नान–ऋषिगण प्रातः,मध्याह्न,सायाह्नत्रिकाल स्नान करते थे-त्रिकालमुपास्पृशेत्। महर्षिचरक ने द्विकाल
स्नान करने को कहा है। गर्मी में प्रायः सभी द्विकाल स्नान करते भी हैं।एककाल स्नान तोअतिअनिवार्य होताहै।हाथ पैर धोना,कुल्ला मुखशुद्धिकरना,स्नानकरना शौचमें आता है।इसे करने में जो आलस्य करता है वह शुद्धि न होने से सभी प्रकार के धर्मकार्य में अयोग्य होता है—
यस्य शौचे$पि शैथिल्यम् वृत्तं तस्य परीक्षितम्।।
जो स्नान नहीं करते उन्हें ही म्लेच्छ कहा गया है। ३६५ दिनों में पन्द्रह दिन स्नान और शेषदिन परफ्यूम का प्रयोग
मॉडर्निटी कहलाती है।यह फ्रांस के एक से एक महंगीइत्र, परफ्यूम की शीशी में बंद होती है।
*** योगसाधना — यह हिन्दू जीवन पद्धति की अनिवार्य प्रक्रिया है।अतः प्रातः काल खाली पेट योगसाधना करनी चाहिए।योग के आठ अंगहैं-यम,नियम,आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार,धारणा,ध्यान,समाधि।इनका अध्ययन योगग्रन्थों से करना चाहिए।घेरण्ड संहिता में प्रसिद्ध ३२आसन,२५ मुद्राओं का वर्णन है।गीता के छठे अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने योगविधि का विवेचन किया है।आठवें अध्याय में योग द्वारा शरीर त्याग की विधि का उल्लेख किया है।
*** वस्त्र– धुला और शुद्ध वस्त्र पहनने से पवित्रता बनी रहती है।जो प्रतिदिन धुले वह धौतवस्त्र है।गीला वस्त्र न पहनें।कटा फटा वस्त्र विपत्ति में ही पहना जाता है।तीन प्रकार का वस्त्र प्रत्येक व्यक्ति को रखना चाहिए– सोने के लिए, यात्रा के लिए और पूजा के लिए –महाभारत, अनु- शासन पर्व १०४/८६।मार्कण्डेय पुराण।मलिनवस्त्र पहनने से खुजली दाद का भय होता है-न धार्यं मलीनमम्बरम्।
(भावप्रकाश,आयुर्वेद)। निर्मल और श्वेतवस्त्र आयु,यश, समृद्धिकी वृद्धि होती है।गंजी,गमछा,रुमाल,पदत्राण दूसरे
को नहीं देना चाहिए।यदि दूसरा पहन ले तो उसे पुनः न पहनें।वस्त्र व्यक्तित्व निर्माण से लेकर धर्म संवर्धन तक करते हैं।
*** पुष्पमाला– माला पहनने से आयु बढ़ती है।पुष्प में सुगन्धिहोती हैऔर सुगन्धि आयुवर्धक होती है- सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनं।ताजा माला को थोड़ी देर अवश्य पहनें।तुरंत निकाल कर दूर न हटायें।पुष्प पृथ्वी का श्रेष्ठतम उत्पाद होताहै-तत्र गंधवती पृथ्वी।यह आयु,यश,श्रीवृद्धिकरताहै।

डॉ कामेश्वर उपाध्याय
अखिल भारतीय विद्वत्परिषद।।

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