माँ कुष्मांडा

आज चतुर्थ नवरात्रा है, आज के दिन माँ कुष्मांडा की पूजा की जाती है। आज हम आपको इन्ही के बारे में संक्षेप में बतायेगें।

नवरात्र-पूजन के आज चौथे दिन माँ कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है, आज साधक का मन अदाहत चक्र में अवस्थित होता है, अतः आज के दिन उसे अत्यंत पवित्र और शान्त मन से माता कूष्माण्डा के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना के करनी चाहिये, जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था तब माता कुष्माण्डाजी ने ब्रह्मांड की रचना की थी, अतः ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं।

माता कुष्माण्डा देवी का निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है, सज्जनों! सूर्यलोक के भीतर निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल माँ कुष्माण्डाजी में ही है, इसलिये माता के शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान हैं, माँ के तेज और प्रकाश से दसों दिशायें प्रकाशित हो रही हैं, ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज माँ कुष्माण्डा देवी की छाया है।

माँ की आठ भुजायें हैं,अतः माँ कुष्माण्डाजी अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं, इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं, आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है, इनका वाहन सिंह है, माँ कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं, माँ कुष्माण्डाजी की भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है।

माँ कूष्माण्डाजी अल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न हो जाती हैं, यदि मनुष्य सच्चे हृदय से माता का शरणागत बन जाये तो फिर उसे अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती है, विधि-विधान से माँ के भक्ति-मार्ग पर कुछ ही कदम आगे बढ़ने पर भक्त साधक को उनकी कृपा का सूक्ष्म अनुभव होने लगता है, यह दुःख स्वरूप संसार उसके लिए अत्यंत सुखद और सुगम बन जाता है।

माँ की उपासना मनुष्य को सहज भाव से भवसागर से पार उतारने के लिये सर्वाधिक सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है, माँ कूष्माण्डाजी की उपासना मनुष्य को आधियों-व्याधियों से सर्वथा विमुक्त करके उसे सुख, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाने वाली है, अतः अपनी लौकिक, पारलौकिक उन्नति चाहने वालों को माँ की उपासना में सदैव तत्पर रहना चाहिये, आज माँ की उपासना से सिद्धियों में निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग-शोक दूर होकर आयु-यश में वृद्धि होती है।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

सज्जनों! सर्वत्र विराजमान और कूष्माण्डा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे माता को मेरा बार-बार प्रणाम है, मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ, हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें, अपनी मंद, हल्की हँसी द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण माता कूष्माण्डा देवी के रूप में पूजा जाता है, संस्कृत में कूष्माण्डा को कुम्हड़ कहते हैं, इस कारण से भी माँ कूष्माण्डा कहलाती हैं।

सज्जनों! आज के दिन जहाँ तक संभव हो बड़े माथे वाली तेजस्वी विवाहित महिला का पूजन करना चाहिये, उन्हें भोजन में दही, हलवा खिलाना श्रेयस्कर है, इसके बाद फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान भेंट करना चाहिये, जिससे माताजी प्रसन्न होती हैं, और मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है, भाई-बहनों! आज नवरात्रि के चतुर्थ दिवस की पावन सुप्रभात् आप सभी के लिये मंगलमय् हो।

जय माता कुष्माण्डा!

जय अम्बे!

– पंडित कृष्ण दत्त शर्मा

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