महाकाव्य रामायणके प्रणेता महर्षि वाल्मीकि

महर्षि वाल्मीकिकी कहानी बडी अर्थपूर्ण है । सत्पुरुषोंकी संगतिमें आकर लोगोंकी उन्नति कैसे होती है, महर्षि वाल्मीकि इसका एक महान उदाहरण हैं ।

नारदमुनिके संपर्कमें आकर वे एक महान ऋषि, ब्रम्हर्षि बने, तथा उन्होंने ‘रामायण’की रचना की, जिसे संपूर्ण विश्व कभी भूल नहीं सकता । पूरे विश्वके महाकाव्योंमेंसे वह एक है । दूसरे देशोंके लोग उसे अपनी-अपनी भाषाओंमें पढते हैं ।

रामायणके चिंतनसे हमारा जीवन सुधर सकता है । हमें यह महाकाव्य देनेवाले महर्षि वाल्मीकिको हम कभी भूल नहीं सकते । इस महान ऋषि एवं चारणको हमारा कोटि-कोटि प्रणाम ।

महर्षि वाल्मीकिकी रामायण संस्कृत भाषाका पहला काव्य है, अत: उसे ‘आदि-काव्य’ अथवा ‘पहला काव्य’ कहा जाता है तथा महर्षि वाल्मीकिको `आदि कवि’ अथवा ‘पहला कवि’ कहा जाता है ।

जिस कविने ‘रामायण’ लिखी तथा लव एवं कुशको यह गाना तथा कहानी सिखाई, वे एक महान ऋषि, महर्षि वाल्मीकि थे । यह व्यक्ति महर्षि तथा गायक कवि कैसे बने यह बडी बोधप्रद कहानी है । महर्षि वाल्मीकिकी रामायण संस्कृत भाषामें है तथा बहुत सुंदर काव्य है ।

महर्षि वाल्मीकिकी रामायण गायी जा सकती है । कोयलकी आवाजकी तरह वह कानोंको भी बडी मीठी (कर्णप्रिय) लगता है । महर्षि वाल्मीकिको काव्यके पेडपर बैठी तथा मीठा गानेवाली कोयल कहा गया है । जो भी रामायण पढते हैं, प्रथम महर्षि वाल्मीकिको प्रणाम कर तदुपरांत महाकाव्यकी ओर बढते हैं ।

महर्ष‍ि वाल्मीकि और नारद की कथा

महर्ष‍ि वाल्मीकि और नारद को लेकर एक पौराण‍िक कथा है। वाल्‍मीक‍ि बनने से पूर्व उनका नाम रत्‍नाकर था और वह परिवार के भरण पोषण के लिए लोगों को लूटा करते थे। एक बार उनकी मुलाकात नारद जी से हो गई। जब वह उन्‍हें लूटने लगे तो नारदजी ने प्रश्न क‍िया क‍ि, जिन परिवार के लिए वह ये काम कर रहे हैं, क्‍या वह उनके पापा में भागीदार बनेगे ?

जब रत्‍नाकर ने यह सुना तो वह अचरज में पड गए और तुरंत अपने पर‍िवार के पास जाकर ये प्रश्न क‍िया। उनको यह जानकर झटका लगा क‍ि कोई भी उनका अपना उनके पाप में हिस्‍सेदार नहीं बनना चाहता है। इसके बाद उन्‍होंने नारद जी से क्षमा मांगी और साथ ही राम-नाम के जप का उपदेश भी दिया।

किंतु वाल्‍मीक‍िजी राम नाम नहीं बोल पा रहे थे जिस पर उन्‍होंने उनका ‘मरा मरा’ जपने की सीख दी। यही जाप उनका राम नाम हो गया और वह एक लुटेरे से महर्ष‍ि वाल्मीकि हो गए।

बता दें क‍ि ये जब श्री राम ने जनता की बातें सुनकर माता सीता को त्‍याग द‍िया था, तब वह महर्ष‍ि वाल्मीकि के आश्रम में रही थीं। उनके पुत्रों लव-कुश के गुरु भी महर्ष‍ि वाल्मीकि ही थे।

महाकाव्य रामायणकी रचना

नारदमुनिके जानेके पश्चात महर्षि वाल्मीकि गंगा नदीपर स्नान करने गए । भारद्वाज नामका शिष्य उनके वस्त्र संभाल रहा था । चलते-चलते वे एक निर्झरके पास आए । निर्झरका पानी बिल्कुल स्वच्छ था ।

धर्माचा विजय झाला ! – शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती वाल्मीकिने अपने शिष्यसे कहा, `देखो, कितना स्वच्छ पानी है, जैसे किसी अच्छे मानवका स्वच्छ मन! आज मैं यहीं स्नान करूंगा।’

महर्षि वाल्मीकि पानीमें पांव रखने हेतु उचित स्थान देख रहे थे, तभी उन्हें पंछियोंकी मीठी आवाज सुनाई दी । ऊपर देखनेपर उन्हें दो पंछी एकसाथ उडते हुए दिखे । उन पंछियोंकी प्रसन्नता देखकर महर्षि वाल्मीकि अति प्रसन्न हुए । तभी तीर लगनेसे एक पंछी नीचे गिर गया । वह एक नर पक्षी था ।

उसकी घायल हालत देखकर उसकी साथी दुखसे चिल्लाने लगी । यह ह्रदयविदारक दृश्य देखकर महर्षि वाल्मीकिका ह्रदय पिघल गया । पंछीपर किसने तीर चलाया यह देखने हेतु उन्होंने इधर-उधर देखा । तीर-कमानके साथ एक आखेटक निकट ही दिखाई दिया ।

आखेटकने (शिकारीने) खाने हेतु पंछीपर तीर चलाया था । महर्षि वाल्मीकि बडे क्रोधित हुए । उनका मुंह खुला, और ये शब्द निकल गए : `तुमने एक प्रेमी जोडेमेंसे एककी हत्या की है, तुम खुद अधिक दिनोंतक जीवित नहीं रहोगे !’

दुखमें उनके मुंहसे एक श्लोक निकल गया । जिसका अर्थ था, तुम अनंत कालके लंबे सालतक शांतिसे न रह सकोगे । तुमने एक प्रणयरत पंछीकी हत्या की है ।

पंछीका दुख देखकर महर्षि वाल्मीकिने बडे दुखी होकर आखेटकको (शिकारीको) शाप दिया; किंतु किसीको शाप देनेसे वे भी दुखी हो गए । उनके साथ चलनेवाले भारद्वाज मुनिके पास उन्होंने अपना दुख प्रकट किया ।

महर्षि वाल्मीकिके मुंहसे श्लोक निकल जानेके कारण उन्हें भी आश्चर्य हुआ था । उनके आश्रम वापिस आनेपर तथा उसके पश्चात भी वे श्लोकके विषयमें ही सोचते रहे ।

महर्षि वाल्मीकिका मन अभी भी उनके मुंहसे निकले श्लोकका ही विचार कर रहा था, कि सृष्टिके देवता भगवान ब्रह्मा स्वयं उनके सामने प्रकट हुए । उन्होंने महर्षि वाल्मीकिसे कहा, `हे महान ऋषि, आपके मुंहसे जो श्लोक निकला, उसे मैंने ही प्रेरित किया था । अब आप श्लोकोंके रूपमें ‘रामायण’ लिखेंगे ।

नारद मुनिने तुम्हें रामायणकी कथा सुनाई है । तुम अपनी आंखोंसे सब देखोगे । तुम जो भी कहोगे, सच होगा । तुम्हारे शब्द सत्य होंगे । जबतक इस दुनियामें नदियां तथा पर्वत हैं, लोग ‘रामायण’ पढेंगे । ’ भगवान ब्रह्माने उन्हें ऐसा आशीर्वाद दिया और वे अदृश्य हो गए ।

महर्षि वाल्मीकिने ‘रामायण’ लिखी । सर्वप्रथम उन्होंने श्रीरामके सुपुत्र लव एवं कुशको श्लोक सिखाए । उनका जन्म महर्षि वाल्मीकिके आश्रममें हुआ तथा वहींपर वे बडे हुए ।

साभार :- हिन्दू जनजागृति समिति

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *