यम देवता की पूजा का पर्व नरक चतुर्दशी

इस चतुर्दशी को ‘नरक चौदस’, ‘रूप चौदस’, ‘रूप चतुर्दशी’, ‘नर्क चतुर्दशी’ या ‘नरका पूजा’ के नाम से भी जाना जाता है। नरक चतुर्दशी कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को कहा जाता है। ये दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का विधान है। नरक चतुर्दशी को ‘छोटी दीपावली’ भी कहते हैं।

इस दिन घर के दरवाजे के बाहर तेल का एक दीपक जलाया जाता है, जिसे यम दीपक कहा जाता है।

इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल उबटन से मालिश करके नहाने का विशेष महत्व है। इस दिन शरीर पर सुगंधित द्रव्य, उबटन, अपामार्ग (अझीझाड़) से जल मार्जन व स्नान करने से नरक का भय नहीं रहता और बीमारियां फैलाने वाले कीटाणु स्वत: ही हमसे दूर हो जाते हैं।

तिल युक्त जल से स्नान कर यम के निमित्त 3 अंजलि जल अर्पित किया जाता है। सायंकाल घर-द्वार, मंदिर, देववृक्ष व सरोवर के किनारे दीप लगाए जाते हैं। त्रयोदशी से 3 दिन तक दीप प्रज्ज्वलित करने से यमराज प्रसन्न होते हैं।

अंतकाल में व्यक्ति को यम यातना का भय नहीं होता। दीपदान से यम की पूजा करने पर नरक का भय भी नहीं सताता। विघि विधान से पूजा करने वाले व्यक्ति सभी पापों से मुक्त होकर स्वर्ग को प्राप्त होते हैं। नरक चौदस को रूप चौदस के रूप में भी मनाया जाता है मूल भाव : मनुष्य के लिए तन और मन दोनों की शुद्धि करना जरूरी होता है।

‘रूप चौदस’ का अभिप्राय केवल सज-धजकर केवल शरीर की मलिनता को दूर करना ही नहीं है बल्कि अपने मन में विकारों को भी दूर करना है। ।

शास्त्रों के अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मंगलवार की अर्द्घ रात्रि में देवी अंजनि के उदर से हनुमान जी जन्मे थे। देश के कई स्थानों में इस दिन को हनुमान जन्मोत्सव के रूप में भक्ति भाव से मनाया जाता है। इस दिन वाल्मीकि रामायण व सुंदरकांड व हनुमान चालीसा का पाठ कर चूरमा, केला व अमरूद आदि फलों का प्रसाद वितरित किया जाता है। शास्त्रों में हनुमान की राम के प्रति अगाध श्रद्घा व भक्ति को बताया गया है।

ऐसी ही एक कथा में यह प्रमाणित भी होता है। भगवान श्रीराम लंका पर विजय कर अयोध्या लौटे। जब हनुमान को अयोध्या से विदाई दी गई तब माता सीता ने उन्हें बहुमूल्य रत्नों से युक्त माला भेंट में दी, पर हनुमान संतुष्ट नहीं हुए व बोले माता इसमें राम-नाम अंकित नहीं है।

तब माता सीता ने अपने ललाट का सौभाग्य द्रव्य सिंदूर प्रदान कर कहा कि इससे बड़ी कोई वस्तु उनके पास नहीं हनुमान को सिंदूर देने के साथ ही माता सीता ने उन्हें अजर-अमर रहने का वरदान भी दिया। यही कारण है कि हनुमान जी को तेल व सिंदूर अति प्रिय है।

इस चतुर्दशी से जुड़ी पौराणिक कथाएँ इस प्रकार हैं- प्रथम कथानुसार-

भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक माह में कृष्ण चतुर्दशी के दिन नरकासुर का वध करके देवताओं व ऋषियों को उसके आतंक से मुक्ति दिलवाई थी। इसके साथ ही कृष्ण भगवान ने सोलह हज़ार कन्याओं को नरकासुर के बंदीगृह से मुक्त करवाया। इसी उपलक्ष्य में नगरवासियों ने नगर को दीपों से प्रकाशित किया और उत्सव मनाया। तभी से नरक चतुर्दशी का त्यौहार मनाया जाने लगा।

द्वितीय कथानुसार- रन्तिदेव नामक एक राजा हुए थे। वह बहुत ही पुण्यात्मा और धर्मात्मा पुरूष थे। सदैव धर्म, कर्म के कार्यों में लगे रहते थे। जब उनका अंतिम समय आया तो यमराज के दूत उन्हें लेने के लिए आये।

वे दूत राजा को नरक में ले जाने के लिए आगे बढ़े। यमदूतों को देख कर राजा आश्चर्य चकित हो गये और उन्होंने पूछा- “मैंने तो कभी कोई अधर्म या पाप नहीं किया है तो फिर आप लोग मुझे नर्क में क्यों भेज रहे हैं।

कृपा कर मुझे मेरा अपराध बताइये, कि किस कारण मुझे नरक का भागी होना पड़ रहा ह।”. राजा की करूणा भरी वाणी सुनकर यमदूतों ने कहा- “हे राजन एक बार तुम्हारे द्वार से एक ब्राह्मण भूखा ही लौट गया था, जिस कारण तुम्हें नरक जाना पड़ रहा है।

राजा ने यमदूतों से विनती करते हुए कहा कि वह उसे एक वर्ष का और समय देने की कृपा करें। राजा का कथन सुनकर यमदूत विचार करने लगे और राजा को एक वर्ष की आयु प्रदान कर वे चले गये। यमदूतों के जाने के बाद राजा इस समस्या के निदान के लिए ऋषियों के पास गया और उन्हें समस्त वृत्तांत बताया।

ऋषि राजा से कहते हैं कि यदि राजन कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करे, ब्रह्मणों को भोजन कराये और उनसे अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करे तो वह पाप से मुक्त हो सकता है।

ऋषियों के कथन के अनुसार राजा कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्दशी का व्रत करता है। इस प्रकार वह पाप से मुक्त होकर भगवान विष्णु के वैकुण्ठ धाम को पाता है।

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