नरक चतुर्दशी पर कैसे नहाएँ

रूप चतुर्दशी पर ब्रह्ममुहूर्त में सूर्योदय से पूर्व उबटन लगा कर स्नान करना चाहिए, और स्नान करते समय पैरों के नीचे या पास में एक गड़तुम्बे (इन्द्रायण) का फल भी रखना चाहिए| इस से रूप में प्राकृतिक निखार आता है|

कल छोटी दीपावली है, इसे नरकासुर चतुर्दशी भी कहते हैं, रूप चतुर्दशी भी कहते हैं| पुराने जमाने में इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में सूर्योदय से पूर्व पूरे शरीर पर उबटन रगड़ कर फिर नहाने की परम्परा थी|

बचपन से किशोरावस्था तक की अवस्था में जब तक माँ-बाप के अनुशासन में थे मुझे अच्छी तरह याद है कि इस दिन प्रातःकाल शीघ्र उठ कर शौचादि से निवृत हो, स्नानघर में एक दीपक जलाकर (क्योंकि बिजली नहीं होती थी) लकड़ी के पाटे पर बैठकर पूरे शरीर पर उबटन रगड़ते और फिर स्नान करते|

पास में पैरों के नीचे एक गड़तुम्बे (इन्द्रायण) का फल भी दबाकर रखते थे, पता नहीं इसका क्या महत्त्व था| अब पता चल रहा है कि यह गड़तुम्बा औषधियों का भण्डार है|

इसको पैरों से दबाकर रखते हुए स्नान करने से वास्तव में रूप में निखार आ जाता था| किसी को मधुमेह यानी डायबिटीज होता तो रोगी नित्य चार-पांच गड़तुम्बे के फलों को अपने पैरों से रौंदता और कुछ दिनों में मधुमेह से मुक्ति मिल जाया करती थी|

आजकल तो यह फल दिखाई ही नहीं देता| पहले तो इसकी जंगली बेल अपने आप खेतों में खूब लग जाया करती थी| अब घास न उगने की जो दवा डालते हैं उससे कई तरह की वनस्पतियाँ ही नष्ट हो गयी हैं जिन में यह गड़तुम्बा भी है|

– कृपा शंकर

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