यज्ञ के लिए वेदानुसार चारों वर्णों के अधिकार

वेद अनुसार ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र सब को वेद पढ़ने का समान अधिकार था | सब वेद शिक्षित होते थे | यज्ञों में भाग लेने के लिए शूद्र भी आदर पूर्वक बुलाए जाते थे |

अ॒ग्नेस्त॒नूर॑सि वा॒चो वि॒सर्ज॑नं दे॒ववी॑तये त्वा गृह्णामि बृ॒हद् ग्रा॑वासि वानस्प॒त्यः सऽइ॒दं दे॒वेभ्यो॑ ह॒विः श॑मीष्व सु॒शमि॑ शमीष्व। हवि॑ष्कृ॒देहि॒ हवि॑ष्कृ॒देहि॑॥१५॥
दयानंद पदार्थ:-

बुलाने के चार प्रकार हैं – ब्राह्मण को बुलाना हो तो कहेंगे ‘एहि’, वैश्य के लिए ‘आगाहि’, क्षत्रिय के लिए ’आद्रव’, शूद्र के लिए ‘आधाव’| यज्ञ स्थल पर सब को ब्राह्मण वाला ही निमंत्रण देना चाहिए, क्योंकि यही यज्ञ के लिए उपयुक्त है और शान्ततम है | अत: सब को कहता है ‘एहि’ ( यहाँ आइये) |

मैं सब जनों के सहित जिस हवि अर्थात् पदार्थ के संस्कार के लिये (बृहद्ग्रावा) बड़े-बड़े पत्थर (असि) हैं और (वानस्पत्यः) काष्ठ के मूसल आदि पदार्थ (देवेभ्यः) विद्वान् वा दिव्यगुणों के लिये उस यज्ञ को (देववीतये) श्रेष्ठ गुणों के प्रकाश और श्रेष्ठ विद्वान् वा विविध भोगों की प्राप्ति के लिये (प्रतिगृह्णामि) ग्रहण करता हूं। हे विद्वान् मनुष्य! तुम (देवेभ्यः) विद्वानों के सुख के लिये (सु, एमि) अच्छे प्रकार दुःख शान्त करने वाले (हविः) यज्ञ करने योग्य पदार्थ को (शमीष्व) अत्यन्त शुद्ध करो। जो मनुष्य वेद आदि शास्त्रों को प्रीतिपूर्वक पढ़ते वा पढ़ाते हैं, उन्हीं को यह (हविष्कृत्) हविः अर्थात् होम में चढ़ाने योग्य पदार्थों का विधान करने वाली जो कि यज्ञ को विस्तार करने के लिये वेद के पढ़ने से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों की शुद्ध सुशिक्षित और प्रसिद्ध वाणी है, सो प्राप्त होती है॥१५॥

व्यावहारिक अर्थ:- —जब मनुष्य वेद आदि शास्त्रों के द्वारा यज्ञक्रिया और उसका फल जान के शुद्धि और उत्तमता के साथ यज्ञ को करते हैं, तब वह सुगन्धि आदि पदार्थों के होम द्वारा परमाणु अर्थात् अति सूक्ष्म होकर वायु और वृष्टि जल में विस्तृत हुआ सब पदार्थों को उत्तम कर के दिव्य सुखों को उत्पन्न करता है। (स देवेभ्य: इदं है: शमीश्व) यह यज्ञ सब के लिए सुख देने वाला हो | (सुशमि शमीष्व) इस यज्ञ को भली भांति सुखप्रद ढंग से शांति से सिद्ध करो | (हविष्कृत! एहि)हवि रूपी अन्न तैयार करनेके लिए यहां आइए | (हविष्कृत! एहि)हवि रूपी अन्न तैयार करनेके लिए यहां आइए |

दो बार आदर पूर्वक सब को ब्राह्मण,वैश्य,क्षत्रिय और शूद्र को सम्मान पूर्वक –आइये- कह कर बुलाना वेदकालीन सामाजिक व्यवस्था को भी चित्रित करता है |कि ब्राह्मण,वैश्य, क्षत्रिय और शूद्र सब का एक ही सम्मान पूर्वक अभिवादन किया जाता था और सब शुभकर्मों के आयोजन में बार बार आमंत्रण दे कर सब की उपस्थिति की अपेक्षा की जाती है|

– सुबोध कुमार

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