तीर्थराज प्रयाग का अमरवृक्ष अक्षयवट

तीर्थराज प्रयाग में पहली बार दर्शन हेतु लाखों तीर्थयात्रियों के लिए अक्षय वट का द्वार खोल दिया गया है। इसके लिए बड़े हनुमान जी के समीप से नया मार्ग दिया गया है। इसके पास में ही पातालपुरी मंदिर स्थित है।

प्रयागराज का किला एक ऐतिहासिक किला है इसमें अभी भी बहुत इतिहास बंद है जिसके पन्ने पलटने की आवश्यकता है। यहां का रानी महल, सरस्वती कूप, अशोक स्तंभ ऐसे ऐसे स्थल अभी भी हैं जिनके रहस्य को समझना आवश्यक है।

यह वही किला है जहां रानी महल में जोधा बाई रहा करती थी और प्रतिदिन गंगा स्नान के लिए जाया करती थी। आज भी यमुना की ओर खुलने वाला एक दरवाजा जोधाबाई द्वार के नाम से प्रसिद्ध है। किले की एक-एक दीवार, एक-एक दरवाजे, उसके महल, सब कुछ इतिहास की धरोहर है।

अक्षय वट पहले कभी भी किले से घिरा हुआ नहीं था। बाद में इसे किले के अंदर किया गया क्योंकि एक मान्यता थी की अक्षय वट का दर्शन कर उससे कूदकर जो गंगा में प्राण त्याग देते हैं उन्हें सीधे मोक्ष प्राप्त होता है।

इस अटल विश्वास को देखते हुए मुगल काल में अक्षय वट के चारों ओर किले जैसी घेराबंदी कर दी गई और अक्षय वट किले के अंदर आ गया किले में सेना का अधिकार होने के कारण उस में प्रवेश वर्जित था।

अतः किले के अंदर जाकर अक्षय वट का दर्शन करना मुश्किल सा हो गया था और आज भी सुरक्षा की पूर्ण आवश्यकता है। किला बनने से पहले यहां पर लगभग 600 मंदिर एवं प्राचीन मूर्तियां थी जिन्हें इधर उधर कर दिया गया या फिर वह नष्ट हो गयीं। मुझे तो ऐसा लगता है उन्ही में से कुछ मूर्तियां पातालपुरी मंदिर में संग्रहीत करा दी गई थी।

अक्षय वट का नाम ही अपने आप में रहस्यमय है। अक्षय, अर्थात जिसका कभी क्षय ना हो। प्रयाग अक्षय क्षेत्र ही है जिस प्रकार से पाप और पुण्य यहां पर अक्षय होते है उसी प्रकार अक्षय रूपी वृक्ष के दर्शन पूजन का अत्यंत धार्मिक महत्व है।

इसकी शाखाएं अनंत मानी गई है जो संपूर्ण पाताल लोक तक व्याप्त हैं। यह वह अक्षयवट है जहां पर भगवान बालमुकुंद के रूप में प्रलय काल में शयन करते हैं। संपूर्ण सृष्टि में जल प्लावन है। केवल एक ही वृक्ष शेष रहता है जिसमें भगवान आकर शरण लेते हैं और वह भी एक पत्ते पर…

कितना सौभाग्यशाली है तीर्थराज प्रयाग जहां पर 12 रूपों में भगवान विष्णु विराजमान हैं, आठ दिशाओं में रहकर प्रयागराज की रक्षा भी करते हैं।

भगवान शिव शूल टांकेश्वर कामेश्वर दरवेशवर मनकामेशवर कामोरी महादेव आदि नामों से जाने जाते हैं। भगवती ललिता भी स्वयं यहां विद्यमान है।

आप कल्पना कर सकते हैं कितने अनंत काल से इस प्रयागराज का वैभव आध्यात्मिक चेतना को समेटे हुए हैं। अट्ठासी हजार ऋषियों के आश्रम, उनकी तपोभूमि, कितना कुछ…

यहां पर लगभग 30 कुंड हैं जिसमें उर्वशी कुंड, सूर्य कुंड, अग्नि तीर्थ , पांडू आश्रम, बिंदु माधव जैसे अनेक तीर्थ यहां थे जिन में कहते हैं स्नान करने और दर्शन मात्र से लोक परलोक का जीवन शांति से व्यतीत होता था, ।

यहां की अंतर्वेदी बहिर बेदी की परिक्रमा का विशेष महत्व रहा है। संगम के आसपास के तीर्थ अंतर्वेदी में आते हैं और पनासा से लेकर दुर्वासा आश्रम और होश होश श्रृंगवेरपुर तक के सारे आश्रम तीर्थ, बहिर बेदी परिक्रमा के अंतर्गत आते हैं।

आज सैकड़ों वर्षों से यह परिक्रमा बंद पड़ी है जो सभी के लिए दुखद है। अक्षय वट में भगवान विष्णु मूल माधव के रूप में विद्यमान हैं इसीलिए शायद प्रलय काल मैं आकर यहीं शरण लेते हैं।

महाभारत में इसकी बड़ी ही रोचक कथा प्राप्त होती है: भगवान एक पत्ते पर शयन कर रहे हैं, सर्वत्र जल ही जल है। मार्कंडेय ऋषि भ्रमण करते हुए आते हैं भगवान को देख कर विस्मित होते हैं और हाथ जोड़कर खड़े होते हैं।

भगवान सब समझ जाते हैं, कहते हैं हे मार्कंडेय, आप कुछ समय के लिए यहां विश्राम करें। भ्रमण करते हुए काफी थक गए होंगे। मार्कंडेय ऋषि सोचते हैं कि मैं विश्राम कहां करूं।

भगवान उन्हें अपने मुख मंडल में विश्राम का स्थान देते हैं और जैसे ही वह प्रवेश करते हैं तो देखते हैं कि संपूर्ण ब्रह्मांड उनके मुख के अंदर समाया हुआ है। 100 वर्षों तक मार्कंडेय संपूर्ण ब्रह्मांड में विचरण करते हैं।

वापस आने पर भगवान उन्हें सृष्टि के पुनः सृजन करने का आदेश देते हैं। ब्रह्मा की उत्पत्ति और ब्रह्मा द्वारा दशाशवमेध यज्ञ यहीं तीर्थराज प्रयाग में किया जाता है। दशाश्वमेध घाट आज भी दारागंज के समीप स्थित है।

ब्रह्मेश्वर महादेव की भी यही मान्यता है। ब्रह्मा द्वारा यज्ञ किए जाने के कारण यह प्रजापति क्षेत्र के नाम से जाना गया। भगवान विष्णु और शिव दोनों का समन्वय होने से हरिहर क्षेत्र के नाम से इसे मान्यता दी गई।

यह प्रयागवासियों का सौभाग्य है कि यहीं से सृष्टि का सृजन होता है ब्रह्मा के यज्ञ में वेदों का गायन हुआ, ओंकार की उत्पत्ति और आदि गणेश का प्रादुर्भाव इसी प्रयाग की धरती पर माना जाता है।

यह वही स्थान है जहां वेदव्यास की पाठशाला थी और ब्रह्मा के चारों पुत्र सनत, सनंदन, सनत कुमार, आदि को वेदव्यास ने शिक्षा प्रदान की थी।

प्रयाग की अंतर्वेदी और बहिर बेदी में ऐसे ऐसे तीर्थ है जो लुप्त हो चुके हैं केवल पुस्तकों तक सीमित हैं। अतः इसमें शोध करने की आवश्यकता है जो अभी तक नहीं हुआ है।

अक्षय वट धरती का प्रहरी है इसलिए कि जब कोई शेष नहीं बचता तो अक्षय वट शेष रहता है। इसके एक-एक पत्ते का महत्व है। मान्यता है कि इसके पत्ते को धारण करने से संपूर्ण धन संपदा एवं आध्यात्मिक चेतना हमेशा साथ रहती है।

यह वह वटवृक्ष है जहां भगवान राम स्वयं पधारे थे और इस का पूजन अर्चन किया था। यह वह वटवृक्ष है जहां जैन धर्म के आराध्य ऋषभदेव ने पूजन अर्चन किया था। इसके अनंतकालीन इतिहास पर जाएं तो इसमें संपूर्ण जीवन का रहस्य छिपा हुआ है।

आध्यात्मिक चेतना एवं देवत्व से परिपूर्ण यह एकमात्र वृक्ष है जिसकी कल्पना अन्यत्र कहीं नहीं की जा सकती है। यदि भारत के आध्यात्मिक गौरव, सांस्कृतिक गौरव का अध्ययन करना है तो इस अक्षयवट के दर्शन, इसकी प्राचीनता, इसके गौरव को हमें साथ में रखना होगा।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है बट विश्वास अचल निज धर्मा। तीरथ राज समाज सुकरमा।

यह आस्था का बट वृक्ष है। जिस प्रकार से भगवान विष्णु परमात्मा में आस्था होती है उसी प्रकार इस वटवृक्ष में करोड़ों करोड़ों लोगों की आस्था है।

भारतवर्ष विश्व की आत्मा है यहां से संपूर्ण विश्व को ज्ञान का संदेश जाता रहा है, नाना प्रकार के धर्मों को इसने आत्मसात किया है। भारत एक महान देश है इसकी धरती में ऐसी विशेषता है जो विश्व में कहीं नहीं है।

माघ मास में प्रतिवर्ष सूर्य के उत्तरायण होने पर उसकी किरणें धरती पर पड़ती हैं तो अनंत वैभव स्वतः यहां उपस्थित हो जाता है और बिना किसी निमंत्रण के लोग गंगा की गोद में दौड़े चले आते हैं। कुंभ, अर्धकुंभ का तो महत्व ही कुछ और होता है।

सच पूछिए तो यहां की माटी के कण-कण में देवत्व व्याप्त है। यमुना भगवान कृष्ण प्रिया के रूप में विष्णुप्रिया गंगा से मिलती है कितना अद्भुत दृश्य है, इस यमुना और गंगा के मिलन का दृश्य ऐसा लगता है की छोटी बहन बड़ी बहन के बाहों में मिलकर हिलोरें लेने लगती और प्रसन्न हो उठती है।

वाह रे परमात्मा, तुमने भी एक ऐसा स्थल भारतवर्ष को दिया है जहां से विश्व की आत्मा का उद्गम है। सरस्वती दृष्टिगत नहीं है फिर भी विद्यमान है। उसी के तट पर प्रहरी के रूप में स्थित अक्षय वट ने कितने लय प्रलय को देखा होगा और देखेगा।

अक्षय वट का द्वार खुलने से संपूर्ण विश्व को संदेश जाएगा कि प्रयाग में एक ऐसा पेड है जो भगवान को भी शरण देता है। धन्य है प्रयाग राज की धरती, प्रयाग के लोग जिन्हें ऐसे वृक्ष के सानिध्य में रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।

संपूर्ण विश्व के लोग आएं, देखें ऐसा दुर्लभ परमात्मा का वृक्ष कौन सा है जो आज के विज्ञान से भी परे है॥ आप भी आइये दर्शन लाभ कर पुण्य प्राप्त कीजिए।

– डा. रामनरेश त्रिपाठी

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