हृदय बसे रघुराई…
* कामिहि नारि पिआरि जिमि लोभिहि प्रिय जिमि दाम। तिमि रघुनाथ निरंतर प्रिय लागहु मोहि राम॥ जैसे कामी को स्त्री
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