माँ कूष्माण्डा – १
देवी भगवती का चतुर्थ स्वरुप कूष्माण्डा का है। ब्रह्मचारिणी की तरह इनको भी सृष्टि का रूप कहा गया है। ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इनको कूष्माण्डा कहा गया। मुख्यतया देवी कूष्माण्डा भाव, लक्षण, संकेत की प्रतीक हैं। मानवीय स्वरुप में इन तीनों का ही महत्व है। जीव के गुणों में संकेतों और भावों का बड़ा महत्व है और यही लाक्षणिक गुणों की शक्ति प्रदान करने वाली देवी कूष्माण्डा हैं।
यह स्वास्थ्य की देवी हैं–विशेषकर उदर संबंधी। स्त्री के स्वास्थ्य के लिए इनका रोज़ दर्शन शुभ है। ये नारायणी हैं। इनकी आठ भुजाएं हैं। इनके सात हाथों में कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, कलश, चक्र और गदा हैं। इनके आठवें हाथ में आठ सिद्धियों और नौ निधियों को देने वाली माला है। इनका वाहन सिंह है।
नारायण की शक्ति होने के कारण वे नारायणी हैं। नारायण का वास ह्रदय और उदर है। इसलिए देवी कूष्माण्डा इनकी शक्ति हैं। उदर ठीक तो सबकुछ ठीक है। उदर ख़राब तो शरीर रोगी। इसलिए नवरात्र की चतुर्थ शक्ति शरीरशास्त्र, योग-निरोग की शक्ति है। स्वास्थ्य की देवी कूष्माण्डा की भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
चूँकि नवरात्र ऋतू परिवर्तन का प्रतीक है, इसलिए नौ देवियों का वर्णन भी हमारे शरीर और वातावरण से जुड़ा है। भगवती हमें सन्देश देती हैं कि हम क्या करें और क्या न करें। प्रकृति से प्रारम्भ देवी के चरित मध्यमा में आते ही शरीर विज्ञान से जुड़ जाते हैं। दैहिक, दैविक और भौतिक तापों की शान्ति इन शक्तियों के माध्यम से हो सकती है।
देवी कूष्माण्डा की आराधना के लिए दुर्गा सप्तशती में देवी कवच का तीन बार पाठ करें। पाठ का क्रम इस प्रकार हो कि एक पाठ प्रातःकाल, एक पाठ मध्यकाल और एक पाठ रात्रि में हो। दुर्गा कवच के साथ अर्गला स्तोत्र का अवश्य पाठ करें। महादेव और विष्णु की पूजा भी अनिवार्य है। घरों में स्वास्थ्यवर्धक पोधे भी लगाये जा सकते हैं–विशेषकर तुलसी का पौधा। इनका मन्त्र और ध्यान श्लोक निम्न है –
मन्त्र–
देहि सौभाग्यमारोग्यम देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
ध्यान–
सुरसम्पर्ककलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे।
– पंडित शिवराम तिवारी