नवदुर्गा के नव-नामों के अर्थ

नवरात्र की नौ रात्रियाँ देवी के नौ रूपों अथवा नवदुर्गाओं से संबद्ध हैं। आइये देवी के नौ रूपों के नामों का अर्थ समझें। देवी के नौ रूप प्रसिद्ध हैं हीं—

प्रथमं शैलपुत्रीति द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्॥

पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनी तथा।

सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥

नवमं सिद्धिदा प्रोक्ता नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।

उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥

[१] प्रथम रूप है ‘शैलपुत्री’। ‘शैलपुत्री’ नाम का सरलार्थ है “शैल (हिमालय) की पुत्री”। शैलस्य पुत्री इति शैलपुत्री। शैल शब्द ‘शिला’ से उत्पन्न है। ‘शिला’ अर्थात् पत्थर। ‘शैल’ का अर्थ है जहाँ बहुत सारी शिलाएँ हों, अर्थात् पर्वत। ‘शिलाः सन्ति अस्मिन् इति शैलः’। ‘शैलपुत्री’ नाम का गूढ अर्थ है “हिमालय को पवित्र करने वाली”। ‘पुवो ह्रस्वश्च’ इस उणादि सूत्र (४.१७५) के अनुसार ‘पुत्र’ शब्द ‘पूञ्’ धातु से उत्पन्न है जिसका अर्थ है “पवित्र करना”। जो पितरों को पितृ-ऋण से अनृण करके पवित्र करता/करती है वह ‘पुत्र/पुत्री’ है।

[२] द्वितीय रूप है ‘ब्रह्मचारिणी’। ‘ब्रह्मचारिणी’ नाम का सरलार्थ है “प्रथम आश्रम (ब्रह्मचर्य) में स्थित”। इस नाम के कईं गूढ अर्थ हैं। ‘ब्रह्म’ शब्द अनेकार्थक है। इसके अर्थ हैं ‘वेद’, ‘परब्रह्म’, और ‘तप’। ब्रह्मचारिणी अर्थात् “ब्रह्म में चरण (विचरण) करना जिसका स्वभाव है”। ‘ब्रह्मणि चरितुं शीलमस्याः इति ब्रह्मचारिणी’। तो एक गूढ अर्थ है “जो वेद में विचरण करती है”। देवीपुराण में कहा ही गया है “वेदेषु चरते यस्मात्तेन सा ब्रह्मचारिणी”। दूसरा गूढ अर्थ है “जो तप में [सदा] लीन है”। और एक और गूढ अर्थ ‘देवी-माहात्म्य’ की ‘प्रदीप’ टीका में प्राप्त है: “ब्रह्म चारयितुं प्रापयितुं शीलमस्याः”। अर्थात् “[साधक को] ब्रह्म को प्राप्त कराना जिसका स्वभाव है” वह हैं ‘ब्रह्मचारिणी’ अर्थात् ब्रह्मप्रदा।

[३] तृतीय रूप है ‘चन्द्रघण्टा’। ‘चन्द्र’ अर्थात् चन्द्रमा और ‘घण्टा’ अर्थात् घण्टी। इस नाम का सीधा अर्थ है “जिसके [हस्तस्थ] घण्टे में चन्द्र है” यद्वा “जिसका घण्टा चन्द्र के समान [निर्मल] है”। चन्द्रो घण्टायां यस्याः सा चन्द्रघण्टा। ‘प्रदीप’ टीका के अनुसार इस नाम का गूढ अर्थ है “चन्द्रं घण्टयति इति चन्द्रघण्टा” अर्थात् जो अपने सौन्दर्य से चन्द्रमा का भी प्रतिवाद करती हैं अर्थात् जो चन्द्रमा से भी अधिक लावण्यवती हैं वह हैं ‘चन्द्रघण्टा’।

[४] चतुर्थ रूप है ‘कूष्माण्डा’। ‘कु’ का अर्थ है थोड़ा या कुत्सित। ‘ऊष्मा’ का अर्थ है गरमी। और ‘अण्ड’ का अर्थ है अण्डा (अण्डाकार रूप) या मांसपेशी। ‘कूष्माण्डा’ नाम का इसका सीधा अर्थ है “जिसके अण्ड (=ब्रह्माण्ड) में थोड़ी ऊष्मा या गर्मी हो”। कु ईषत् ऊष्मा अण्डे यस्याः सा कूष्माण्डा। ‘प्रदीप’ टीका में प्राप्त गूढार्थ तो बहुत सुन्दर है। यह संसार ही ‘कूष्म’ हैं क्योंकि इसकी ऊष्मा (त्रिविध ताप) कुत्सित हैं। और ऐसा कूष्म संसार जिसके उदर की मांसपेशियों में है वह है ‘कूष्माण्डा’।

[५] पञ्चम रूप है ‘स्कन्दमाता’। ‘स्कन्द’ कार्त्तिकेय का प्रसिद्ध नाम है और कार्त्तिकेय की माता होने के कारण देवी का नाम है ‘स्कन्दमाता’। स्कन्दस्य माता इति स्कन्दमाता। यह हुआ सरलार्थ। अब गूढार्थ के लिये छान्दोग्य उपनिषद् की श्रुति का स्मरण करना होगा। “भगवान्सनत्कुमारस्तँ स्कन्द इत्याचक्षते तँ स्कन्द इत्याचक्षते” (७.२५.२)। उपनिषद् के अनुसार ‘स्कन्द’ सनत्कुमार का नाम है। जो सनत्कुमार जैसे ज्ञानियों के द्वारा भी माता रूप में स्वीकृत हैं वह हैं ‘स्कन्दमाता’ यह हुआ गूढार्थ। ‘प्रदीप’ टीका में कहा गया है कि सनत्कुमार जैसे ज्ञानी भी देवी के उदर से जन्म लेने की अभिलाषा रखते हैं देवी इतनी पवित्र हैं यह इस नाम का हार्द है।

[६] षष्ठ रूप है ‘कात्यायनी’। ‘कात्यायनी’ का सरलार्थ है “पुत्री छोड़कर कत ऋषि की स्त्री वंशज”। कतस्य गोत्रापत्यं स्त्री इति कात्यायनी। कत ऋषि के वंश में जन्मे कात्यायन ऋषि के आश्रम में कन्या के रूप में आविर्भूत होने के कारण देवी का यह नाम है। और गूढार्थ? कत नाम का अर्थ है ‘कं जलं शुद्धं तनोति’ अर्थात् “जो जल को शुद्ध करता है” वह ‘कत’ है। जल को शुद्ध रखने वाले तीर्थों/आश्रमों में देवी का आविर्भाव होता है यह गूढार्थ है।

[७] सप्तम रूप है ‘कालरात्रि’। इस नाम का सरलार्थ है ‘प्रलय रूपी रात्रि’। कालरूपा रात्रिः इति कालरात्रिः। और गूढार्थ है “काल की भी रात्रि” अर्थात् काल को भी नष्ट करने वाली। यहाँ ‘काल’ का अखण्ड काल अर्थ लेना चाहिये। इस अखण्ड काल को भी जो नष्ट करती हैं वे हैं ‘कालरात्रि’।

[८] अष्टम रूप है ‘महागौरी’। इस नाम का सरलार्थ है “अत्यन्त गोरी”। महती गौरी इति महागौरी। गूढार्थ के लिये ‘गौर’ शब्द को समझना होगा। ‘उणादि सूत्र’ पर नारायण की ‘प्रक्रियासर्वस्व’ टीका के अनुसार ‘गौर’ शब्द ‘गुरी उद्यमने’ धातु से उत्पन्न है जिसका अर्थ है “ऊपर उठाना”। जो ऊपर उठाती है वह ‘गौरी’ है, अर्थात् उद्धार करने वाली। अतः ‘महागौरी’ का अर्थ है उद्धार करने वालों में अग्रणी, या महान् उद्धारकर्त्री।

[९] नवम रूप है ‘सिद्धिदा’ अथवा ‘सिद्धिदात्री’। इसका नाम का सरलार्थ है “आठ सिद्धियाँ देनेवाली”। अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व आठ सिद्धियाँ हैं। गूढार्थ? ‘सिद्धि’ का अर्थ मोक्ष भी है। अतः ‘सिद्धिदा’ या ‘सिद्धिदात्री’ का अर्थ है “मोक्ष देने वाली”।

तो ये हैं नवदुर्गा के नव नामों के सरल और गूढ अर्थ। आपको चैत्र नवरात्र और विजयदशमी की शुभकामनाएँ।

– नित्यानंद मिश्र

Madhubani painting by the author: Durgas from https://in.pinterest.com/pin/345580971378689340/

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