नवरात्रि पूजन कैसे करें

घटस्थापना (नवरात्रोत्सव)

सर्वप्रथम घटस्थापना (मिट्टी अथवा तांबेके कलशमें मिट्टी डालकर सप्तधान बोना)

नवरात्रिके प्रथम दिन घटस्थापना करते हैं । घटस्थापना करना अर्थात नवरात्रिकी कालावधिमें ब्रह्मांडमें कार्यरत शक्तितत्त्वका घटमें आवाहन कर उसे कार्यरत करना । कार्यरत शक्तितत्त्वके कारण वास्तुमें विद्यमान कष्टदायक तरंगें समूल नष्ट हो जाती हैं । कलशमें जल, पुष्प, दूर्वा, अक्षत, सुपारी एवं सिक्के डालते हैं ।

घटस्थापनाकी विधिमें देवीका षोडशोपचार पूजन किया जाता है । घटस्थापनाकी विधिके साथ कुछ विशेष उपचार भी किए जाते हैं । पूजाविधिके आरंभमें आचमन, प्राणायाम, देशकालकथन करते हैं । तदुपरांत व्रतका संकल्प करते हैं । संकल्पके उपरांत श्री महागणपतिपू्जन करते हैं । इस पूजनमें महागणपतिके प्रतीकस्वरूप नारियल रखते हैं । व्रतविधानमें कोई बाधा न आए एवं पूजास्थलपर देवीतत्त्व अधिकाधिक मात्रामें आकृष्ट हो सकें इसलिए यह पूजन किया जाता है । श्री महागणपतिपूजनके उपरांत आसनशुद्धि करते समय भूमिपर जलसे त्रिकोण बनाते हैं । तदउपरांत उसपर पीढा रखते हैं । आसनशुद्धिके उपरांत शरीरशुद्धिके लिए षडन्यास किया जाता है । तत्पश्चात पूजासामग्रीकी शुद्धि करते हैं ।

वेदीपर मिट्टीमें बोए जानेवाले अनाज

नवरात्रि महोत्सवमें कुलाचारानुसार घटस्थापना एवं मालाबंधन करें । खेतकी मिट्टी लाकर दो पोर चौडा चौकोर स्थान बनाकर, उसमें पांच अथवा सात प्रकारके धान बोए जाते हैं । इसमें (पांच अथवा) सप्तधान्य रखें । जौ, गेहूं, तिल, मूंग, चेना, सांवां, चने सप्तधान्य हैं ।

वेदीपर मिट्टीमें बोए जानेवाले अनाजसे प्राप्त आध्यात्मिक लाभकी मात्रा एक सारिणीद्वारा

धानका प्रकार लाभ (प्रतिशत)

१. जौ (अलसी) १०

२. तिल १०

३. चावल २०

४. मूंग १०

५. कांगनी (चावल) (चने) २०

६. माष (उडद) (चेना (राई)) २०

७. गेहूं १०

कुल १००

कुछ स्थानोंपर जौ की अपेक्षा अलसीका, चावलकी अपेक्षा सांवांका एवं कंगनीकी अपेक्षा चनेका उपयोग भी करते हैं । मिट्टी पृथ्वीतत्त्वका प्रतीक है । मिट्टीमें सप्तधानके रूपमें आप एवं तेजका अंश बोया जाता है ।

कलशमें रखी गई वस्तुए

जल, गंध (चंदनका लेप), पुष्प, दूर्वा, अक्षत, सुपारी, पंचपल्लव, पंचरत्न व स्वर्णमुद्रा अथवा सिक्के आदि वस्तुएं मिट्टी अथवा तांबेके कलशमें रखी जाती हैं ।

कलशमें रखी गई वस्तुओंसे प्राप्त लाभकी मात्रा

कलशमें डालने हेतु वस्तु वस्तुसे संभावित लाभ (%)

१. जल २०

२. फूल २०

३. दूर्वा १०

४. अक्षत १०

५. सुपारी ३०

६. सिक्के १०

कुल १००

इस सारिणीसे कलशमें ये वस्तुएं रखनेका महत्त्व स्पष्ट हुआ होगा । हमारे ऋषिमुनियोंने इन अध्यात्मशास्त्रीय तथ्योंका गहन अध्ययन कर हमें यह गूढ ज्ञान दिया । इससे उनकी महानताका भी बोध होता है । नवरात्रिमें घटस्थापनाके अंतर्गत वेदीपर मिट्टीमें सात प्रकारके अनाज बोते हैं ।

सप्तधान एवं कलश (वरुण) स्थापना

सप्तधान एवं कलश (वरुण) स्थापनाके वैदिक मंत्र यदि न आते हों, तो पुराणोक्त मंत्रका उच्चारण किया जा सकता है । यदि यह भी संभव न हो, तो उन वस्तुओंका नाम लेते हुए ‘समर्पयामि’ बोलते हुए नाममंत्रका विनियोग करें । माला इस प्रकार बांधें कि वह कलशमें पहुंच सके ।

घटस्थापना का शास्त्र एवं महत्त्व

‘मिट्टी अथवा तांबेके कलशमें पृथ्वीतत्त्वरूपी मिट्टीमें सप्तधानके रूपमें आप एवं तेजका अंश बोकर, उस बीजसे प्रक्षेपित एवं बंद घटमें उत्पन्न उष्ण ऊर्जाकी सहायतासे नाद निर्मिति करनेवाली तरंगोंकी ओर, अल्पावधिमें ब्रह्मांडकी तेजतत्त्वात्मक आदिशक्तिरूपी तरंगें आकृष्ट हो पाती हैं । मिट्टीके कलशमें पृथ्वीकी जडत्वदर्शकताके कारण आकृष्ट तरंगोंको जडत्व प्राप्त होता है और उनके दीर्घकालतक उसी स्थानपर स्थित होनेमें सहायता मिलती है । तांबेके कलशके कारण इन तरंगोंका वायुमंडलमें वेगसे ग्रहण एवं प्रक्षेपण होता है और संपूर्ण वास्तु मर्यादित कालके लिए लाभान्वित होती है । घटस्थापनाके कारण शक्तितत्त्वकी तेजरूपी रजोतरंगें ब्रह्मांडमें कार्यमान होती हैं, जिससे पूजककी सूक्ष्म-देहकी शुद्धि होती है ।

अष्टभुजादेवी एवं नवार्णव यंत्रकी स्थापना

घरके किसी पवित्र स्थानपर एक वेदी तैयार कर, उसपर सिंहारूढ अष्टभुजा देवीकी और नवार्णव यंत्रकी स्थापना की जाती है । यंत्रके समीप घटस्थापना कर, कलश एवं देवीका यथाविधि पूजन किया जाता है ।

आवाहन प्रक्रिया एवं स्थापना

‘नवरात्रि अंतर्गत देवीपूजनमें आवाहन प्रक्रिया एवं स्थापनाका प्रथम स्थान है । शक्तितत्त्वात्मक तरंगोंके विशिष्ट स्थानपर दीर्घकाल कार्यरत रहनेमें, आवाहनांतर्गत संकल्प सहायक होता है ।

श्री दुर्गादेवी आवाहन विधि

कलशपर रखे पूर्णपात्र पर पीला वस्त्र बिछाते हैं । उसपर कुमकुमसे नवार्णव यंत्रकी आकृति बनाते हैं । सर्वप्रथम पूर्णपात्रमें बनाए नवार्णव यंत्रकी आकृतिके मध्यमें देवीकी मूर्ति रखते हैं । मूर्तिकी दार्इं ओर श्री महाकालीके तथा बार्इं ओर श्री महासरस्वतीके प्रतीकस्वरूप एक-एक सुपारी रखते हैं । मूर्तिके सर्व ओर देवीके नौ रूपोंके प्रतीकस्वरूप नौ सुपारियां रखते हैं । अब देवीकी मूर्तिमें श्री महालक्ष्मीका आवाहन करनेके लिए मंत्रोच्चारणके साथ अक्षत अर्पित करते हैं । मूर्तिकी दार्इं ओर रखी सुपारीपर अक्षत अर्पण कर श्री महाकाली एवं बार्इं ओर रखी सुपारीपर श्री महासरस्वतीका आवाहन करते हैं । तत्पश्चात नौ सुपारियोंपर अक्षत अर्पण कर नवदुर्गाके नौ रूपोंका आवाहन करते हैं तथा इनका वंदन करते हैं ।

देवीकी अष्टभुजारूपी मूर्तिकी स्थापना

अष्टभुजादेवी, शक्तितत्त्वका मारक रूप है । ‘नवरात्रि’ ज्वलंत तेजतत्त्वरूपी आदिशक्तिके आधारका प्रतीक है । अष्टभुजादेवीके हाथोंमें आयुध, उनकी प्रत्यक्ष मारक कार्यात्मक क्रियाशीलताका प्रतीक हैं । देवीके हाथोंमें ये मारकतत्त्वरूपी आयुध, अष्टदिशाओंके अष्टपालके रूपमें ब्रह्मांडकी रक्षा कर, तेजकी सहायतासे उस विशिष्ट कालावधिमें ब्रह्मांडमें अनिष्ट शक्तिके संचारपर अंकुश लगाते हैं और उनके कार्यकी गतिको खंडित कर पृथ्वीकी रक्षा करते हैं ।

नवार्णव यंत्रकी स्थापना

‘नवार्णव यंत्र’ पृथ्वीपर स्थापित देवीके विराजनात्मक आसनका प्रतीक है । नवार्णव यंत्रमें देवीके नौ रूपोंकी मारक तरंगोंका संयोगी रूपमें घनीकरण होता है । इस कारण इस आसनको देवीका निर्गुण अधिष्ठान माना जाता है । इस यंत्रसे ब्रह्मांडके कार्यात्मक वेगमें आवश्यकतानुसार निर्मिति होनेवाला देवीका सगुण रूप, उनके प्रत्यक्ष प्रकृतिदर्शक कार्यकारी तत्त्वका प्रतीक माना जाता है ।

नवरात्रिमें अखंड दीपप्रज्वलनका शास्त्रीय आधार

दीप तेजका प्रतीक है एवं नवरात्रिमें वायुमंडल भी शक्तितत्त्वात्मक तेजसे आवेशित होता है । इसलिए सतत प्रज्वलित दीपकी ज्योतिकी ओर तेजतत्त्वात्मक तरंगें आकृष्ट होती हैं । अखंड दीपप्रज्वलनसे इन तरंगोंका वास्तुमें सतत संक्रमण होता है; इसलिए नवरात्रिमें दीप अखंड प्रज्वलित रखना महत्त्वपूर्ण है । नवरात्रिमें कार्यरत तेज- आधारित तरंगोंके वेगमें अखंडत्व एवं कार्यमें निरंतरता होनेके कारण, इन तरंगोंको उतनी ही शक्तिसे ग्रहण करनेवाले अखंड प्रज्वलित दीपरूपी माध्यमका प्रयोग कर वास्तुमें तेजका संवर्धन करते हैं ।

नवरात्रि अथवा अन्य धार्मिक विधियोंमें दीप अखंड प्रज्वलित रखना आवश्य है । अतएव यदि वायु, तेलका अभाव, कालिख जमा होना आदि कारणोंसे दीप बुझ जाए, तो वह कारण दूर कर दीप पुनः प्रज्वलित करें और प्रायश्चितके रूपमें अधिष्ठाता देवताका एक सौ आठ अथवा एक सहस्त्र बार जप करें ।

मालाबंधन (देवीकी मूर्तिपर फूलोंकी माला चढाना)

नवरात्रिमें मालाबंधनका विशेष महत्त्व है । अखंड दीपप्रज्वलनके साथ कुलाचारानुसार मालाबंधन करते हैं । कुछ उपासक स्थापित घटपर माला चढाते हैं, तो कुछ देवीकी मूर्तिपर माला चढ़ाते हैं ।

नवरात्रिमें मालाबंधनके परिणाम

देवताको चढाई गई इन मालाओंमें गूंथे फूलोंके रंग एवं सुगंधके कणोंकी ओर वायुमंडलमें विद्यमान तेजतत्त्वात्मक शक्तिकी तरंगें आकृष्ट होती हैं ।

ये तरंगें पूजास्थलपर स्थापित की गई देवीकी मूर्तिमें शीघ्र संक्रमित होती हैं ।

इन तरंगोंके स्पर्शसे मूर्तिमें देवीतत्त्व अल्पावधिमें जागृत होता है ।

कुछ समयके उपरांत इस देवीतत्त्वका वास्तुमें प्रक्षेपण आरंभ होता है । इससे वास्तुशुद्धि होती है ।

साथ ही वास्तुमें आनेवाले व्यक्तियोंको उनके भावानुसार इस वातावरणमें विद्यमान देवीके चैतन्यका लाभ मिलता है ।

कुमारिका-पूजन (कंजक पूजन)

प्रतिदिन कुमारिकाओंकी पूजा कर उसे भोजन करवाएं । सुहागिन अर्थात प्रकट शक्ति व कुमारिका अर्थात अप्रकट शक्ति । प्रकट शक्तिका कुछ अपव्यय हो जाता है, अतएव सुहागिनोंकी अपेक्षा कुमारिकाओंमें कुल शक्ति अधिक होती है ।

कुमारिका-पूजन कैसे करें ?

१. ‘नवरात्रिके नौ दिन, आगे दिए अनुसार प्रतिदिन कुमारिकाओंको सम्मानपूर्वक घरपर बुलाएं । ‘नवरात्रि’में किसी भी एक दिन ‘नौ’की विषम संख्यामें कुमारिकाओंको बुलानेकी भी प्रथा है ।

२. कुमारिकाओंको बैठनेके लिए आसन दें ।

३. इस भावसे उनकी पाद्यपूजा करें कि उनमें देवीतत्त्व जाग्रत हो गया है ।

४. देवीको भानेवाला भोजन कुमारिकाओंके लिए केलेके पत्तेपर परोसें । (देवीको खीर-पूरी भाती है ।)

५. कुमारिकाओंको नए वस्त्र देकर उन्हें आदिशक्ति का रूप मानकर भावपूर्वक नमस्कार करें ।’

कुमारिका-पूजनका शास्त्रीय आधार एवं महत्त्व

‘कुमारिका, अप्रकट शक्तितत्त्वका प्रतीक है । इसलिए पूजनसे उसमें विद्यमान शक्तितत्त्व जाग्रत होता है और उसकी ओर ब्रह्मांडकी तेजतत्त्वात्मक तरंगें आकृष्ट होनेमें सहायता मिलती है । इसके उपरांत उसके द्वारा यह तत्त्व सहजतासे वायुमंडलमें प्रक्षेपित होता है, जिससे प्रत्यक्ष चेतनाजन्य माध्यमसे शक्ति-तत्त्वात्मक तरंगोंका लाभ पानेमें सहायता मिलती है । नौ दिन कार्यरत देवीतत्त्वकी तरंगोंका, अपनी देहमें संवर्धन होने हेतु, भक्तिभावसे कुमारिका-पूजन कर उसे संतुष्ट किया जाता है । कुमारिकामें संस्कारोंके प्रकटीकरण भी न्यून होनेके कारण, उससे देवीतत्त्वका अधिकाधिक सगुण लाभ पाना संभव होता है । इसलिए नवरात्रिमें कुमारिका-पूजनको महत्त्व है ।

लेख साभार: सनातन संस्था

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