श्रीनाथद्वारा जहाँ औरंगजेब ने भी देखी श्रीनाथ जी की महिमा
भले ही यह प्रसंग इतिहास में न आया हो किन्तु इसे जन-श्रुति या लोक-श्रुति कह सकते हैं ! श्रीनाथद्वारा में सुप्रसिद्ध मन्दिर के शिखर पर सात ध्वजाएं फहराती हैं, परन्तु एक “गाइड” के द्वारा मिली जानकारी के अनुसार भगवान श्रीनाथ जी की ठोढ़ी पर जो मूल्यवान हीरा सुशोभित है वह दुर्दान्त और मन्दिर विध्वंसक मुगल शासक औरंगजेब की मां ने ही भेंट किया था !
एक बार औरंगजेब श्रीनाथद्वारा मन्दिर को ध्वस्त करने आया था तो मन्दिर की सीढ़ियां चढ़ते ही उसकी नेत्र-ज्योति नष्ट हो गई ! वह अंधा होकर रास्ता टटोलने लगा और भयभीत होकर उसने वहीं से भगवान श्रीनाथ जी से अपने कुकृत्यों की क्षमा मांगी ! इसके बाद उसकी नेत्र ज्योति वापस आ गई ! इस घटना के तुरन्त बाद औरंगजेब सेना सहित भीगी बिल्ली की भांति वापस लौट गया ! जब यह घटना उसकी मां को पता लगी तो उसने यह हीरा मूर्ति के श्रंगार के लिए अर्पित किया !
हमले से पूर्व औरंगजेब ने सेना भेजकर मन्दिर नष्ट करने की कुचेष्टा की थी ! लेकिन जब उसकी सेना खमनेर आकर बनारस नदी के तट पर रुकी तो श्रीनाथद्वारा मन्दिर से भौरों ने बड़ी मात्रा में निकलकर सेना पर हमला कर दिया और वह सर पर पैर रखकर पलायन कर गई ! इस हमले से क्रुद्ध होकर ही औरंगजेब स्वयं हमला करने आया था लेकिन उसे भी मांफी मांगनी पड़ी ! इसके बाद उसने जो फरमान जारी किया उसका शिलालेख आज भी साक्ष्य के रूप में मन्दिर के मुख्य द्वार पर लगा है !
इस मन्दिर में 125 मन चावल का भोग नित्य लगता है ! क्षेत्र के वनवासी बंधु भोग प्राप्त करते हैं जिसे “लूटना” कहा जाता है ! इसके अतिरिक्त 56 प्रकार के भोग भी श्रीनाथ जी को अर्पित किए जाते हैं ! भोग में उपयोग होने वाली कस्तूरी को सोने की चक्की से पीसा जाता है ! भंडार घर में घी-तेल का भण्डार रहता है ! मन्दिर गृह को नन्द बाबा का भवन कहा जाता है ! लगभग दर्जन भर राज्यों के 30 गांव मन्दिर को दान में मिले हुए हैं ! यहां बिना जाति-भेद के दर्शन सुलभ हैं !
श्रीनाथ द्वारा में श्रीनाथ जी को आचार्य दामोदरदास बृज क्षेत्र गोवर्धन पर्वत से जब लाए तो मेवाड़ नरेश महाराजा राज सिंह ने वहां मूर्ति स्थापना करायी तथा श्रीनाथ जी की सेवा-पूजा के लिए सिहाड़ ग्राम समर्पित किया | इसके पूर्व बृजधाम में श्रीनाथ मन्दिर को ध्वस्त करना औरंगजेब ने अपना लक्ष्य बना लिया था | तब श्रीनाथजी को बृज से श्रीनाथद्वारा ले जाया गया ! उस समय महाराजा राज सिंह ने औरंगजेब को चुनौतीपूर्ण स्वर में कहा था- “वह आए यहां, मंदिर तक पहुंचने से पहले उसे एक लाख” राजपूतों से निपटना होगा ! वह श्रीनाथजी को हाथ नहीं लगा सकता !
(नोट: यह प्रसंग “जर्नल ऑफ द राजस्थान इंस्टीट्यूट आफ हिस्टोरिकल रिसर्च” के पृष्ठ-42-43 पर उल्लेखित है)
नाथद्वारा कस्बा राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित है ! यहां श्री नाथ जी का भव्य मंदिर स्थित है जो कि पुष्टिमार्गीय वैष्णव सम्प्रदाय का प्रधान (प्रमुख) पीठ है ! नाथद्वारा का शाब्दिक अर्थ श्रीनाथ जी का द्वार होता है !
श्री कृष्ण यहां श्रीनाथ जी के नाम से विख्यात हैं ! काले पत्थर की बनी श्रीनाथ जी की इस मूर्ति की स्थापना 1669 में की गई थी ! वैष्णव पंथ का यह मंदिर शिर्डी स्थित सांईबाबा, तिरुपति स्थित बालाजी और मुंबई स्थित सिद्धी विनायक मंदिर जैसे भारत के सबसे अमीर मंदिरों की श्रेणी में आता है !
यहां श्रद्धाभाव के साथ दूर-दूर से भक्त दर्शन के लिए आते हैं ! नाथद्वारा कस्बे की तंग गलियों के बीच स्थित श्रीनाथ जी के प्रति लोगों की इतनी गहरी आस्था और श्रद्धाभाव है कि साल भर यहां भक्तों का हुजूम लगा रहता है ! यूं तो श्रीनाथ जी का मंदिर भारत के लगभग हर शहर में और दुनिया में कई जगह हैं, लेकिन श्रीनाथ जी के हर मंदिर में ऐसी भीड़ एकत्रित नहीं होती है !
दरअसल कुछ ज्योतिषियों और वास्तुविदों का मानना है कि इसका कारण मंदिर की भौगोलिक स्थिति और बनावट है ! जो लोग श्रीनाथ जी में आस्था रखते हैं वे ये मानते हैं कि यहां जो भी मन्नत मांगी जाती है वो जरूर पूरी होती है।
जगन्नाथों रंगनाथों द्वारकानाथ एवच
बद्रीनाथ श्चतुष्कोणे भारतस्यापि वर्त्तते।
चतुणार्ं भुविनाथानां कृत्वा यात्रां नरः सुधी,
न पश्येद्देवदमनं न स यात्रा फलं लभत्।।
अर्थात जो व्यक्ति भारत के चारो कोणो पर स्थित रंगनाथ, द्वारिकानाथ तथा बद्रीनाथ की यात्रा करके भी यदि श्रीनाथद्वारा की यात्रा नहीं करता उसे यात्रा का फल नहीं मिलता है।
– पंडित कृष्ण दत्त शर्मा