राम ने शम्बूक का वध क्यों किया?
प्रश्न- मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने शम्बूक का वध क्यों किया? इस घटना की वास्तविकता क्या है
उत्तर- राम के काल में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र नामक सामाजिक जातियाँ थीं ही नहीं और न इनका निर्धारण जन्मना होता था। यह साधना की आन्तरिक क्षमताओं का नामकरण था। जिस प्रकार आजकल आई.ए. एस, पी.सी.एस. का चयन है, उसी प्रकार साधनात्मक प्रशिक्षण का आरंभिक चरण शूद्र है। यह भजन की प्राथमिक सीढ़ी है। करोड़ों में से कोई भाग्यवान इस सोपान पर आरोहण करता है।
रामराज्य में एक शूद्र भूल कर बैठा। उसका नाम शम्बूक था। वह एक वृक्ष की शाखा में सिर नीचे और पैर ऊपर कर तपस्यारत था। उसने इस तरह तपस्या आरम्भ की कि ब्राह्मण बालक मर गया। रामराज्य में तहलका मच गया कि यह हुआ कैसे? ऋषि-महर्षियों ने खोजना शुरू किया।
अनुमान किया कि कोई शूद्र तपस्या कर रहा है; किन्तु वे उसे देख नहीं पाये। राम ने उसे खोज निकाला और उससे पूछा- क्या कर रहे हो? शम्बूक बोला कि मैं सदेह धाम जाना चाहता हूँ अर्थात् शरीर रहते स्वरूप को पाना चाहता हूँ। राम आपका कल्याण हो। मैं शूद्र हूँ। राम ने तलवार निकाली, उसे पेड़ से गिरा दिया। शम्बूक के शिरोच्छेदन के साथ ही वह ब्राह्मण बालक जी गया। देवताओं ने दुन्दुभियाँ बजाईं। बिगड़े हुए धर्म की पुनर्स्थापना हो गयी।
क्या सर्जरी थी! ऐसा इलाज कभी सुना नहीं गया। न जाने कब का मरा ब्राह्मण बालक जी गया। क्या ऐसा सम्भव है कि आपका गला काट दें और दूसरा जीवित हो जाय? शूद्र को मार दें और ब्राह्मण पुनर्जीवित हो जाय? आपके यहाँ कोई पण्डित दिवंगत हो गया हो तो एक शूद्र को मारकर देख सकते हैं कि वह जीवित होता है या नहीं? वास्तव में क्या है यह शम्बूक प्रकरण?
वस्तुतः रामायण या रामचरित मानस रहस्यमय ग्रन्थ है। इसके सभी कथानकों के अर्थ (प्रत्यक्षतः) अभिधा में खोजेंगे तो आप भटकते रह जायेंगे। उदाहरण के लिए रामायण में है कि सीता की शुद्धता की परीक्षा के लिए उन्हें अग्नि में डाला गया। अग्नि शान्त होने पर वही सीता बाहर निकल आयीं। आज भी आप इस विधि का प्रयोग कर देखें। क्या कोई इस विधि से जीवित रह सकता है?
लोग कहते हैं राम ने नरलीला की अर्थात् प्राकृत आदमी जैसा करते हैं वैसा आचरण किया। तब तो यह सामान्य मनुष्य के लिए सम्भव है। आप शुद्धता की परीक्षा में कुँआरी कन्या को ही अग्नि में डालकर देखें। जब वह लौटकर आ जाय तो प्रायः सभी मान लेंगे। क्या है सीता की अग्नि-परीक्षा?
सीता की अग्नि-परीक्षा, शम्बूक प्रकरण आध्यात्मिक रूपक हैं। शास्त्र दो दृष्टियों से रचा जाता है। एक इतिहास को कायम रखना जिससे लोग पूर्वजों के पदचिन्हों पर चल सकें, आदर्श जीवन जी सकें।
लेकिन केवल कुशलतापूर्वक जी-खा लेने से हम सबका कल्याण सम्भव नहीं है, कर्तव्यों की पूर्ति सम्भव नहीं है, इसलिए शास्त्र में दूसरा पहलू है अध्यात्म। हर जीव माया के आश्रित है। इसे माया के चंगुल से निकालकर जो आत्मा के अधिकृत भूमि में खड़ा कर दे, भगवान् उठाये-बैठायें, चलाये-सिखायें — उसका नाम अध्यात्म है।
पूरी की पूरी रामायण अध्यात्म है। इसका दूसरा नाम रामचरित मानस है- राम के वे चरित्र जो आपके अन्तःकरण में प्रवाहित हैं। वे हैं सबमें किन्तु दिखायी नहीं देते। आये दिन लोभ के चरित्र, मोह के चरित्र, काम के चरित्र, क्रोध के चरित्र ही दिखाई देते हैं। अब वे प्रसुप्त रामचरित किस प्रकार आपके अन्तःकरण में जागृत होते हैं, जागृत होकर किस प्रकार रामपर्यन्त दूरी तय कराते हैं, राम की स्थिति आपको दिला देते हैं, वहाँ तक का साधन-क्रम इस रामायण में अंकित है। साधना पकड़ी ही नहीं तो श्रेणी किसने दी?
शम्बूक प्रकरण में भगवान् राम न्यायकर्त्ता थे। अवध के सुख को त्यागकर भगवान् के साथ छाया की तरह चलनेवाले लक्ष्मण एक दिन न्याय की तुला पर चढ़ गये तो राम ने ऐसे लक्ष्मण का भी त्याग कर दिया। इसी प्रकार सीता जैसी सहधर्मिणी भी न्याय की कसौटी पर आयी तो राम ने जनहित पर ही ध्यान दिया।
इतना ही नहीं उन्होंने अपने-आप को भी दण्डित किया, वे न्यायपीठ का सम्मान करने के लिए सिंहासनासीन हो जाते थे अन्यथा वे कुश की चटाई का ही प्रयोग करते थे।
उनकी मान्यता थी कि सीता यदि पर्णशैय्या पर शयन करती हैं तो उन्हें भी मसृण शैय्या के उपयोग का कोई अधिकार नहीं है। राम ने तो कुत्ते के आरोप पर एक तपस्वी को दण्डित किया था। इतने न्यायप्रिय सम्राट के लिए क्या यह उचित होता कि प्रजा में किसी एक ने भूल कर दी तो उसे छाती से लगाते? क्या न्यायाधीश भी पक्षपात करता है?
क्या रामराज्य में आज की तरह आरक्षण व्यवस्था थी? नहीं, राम के राज्य में केवल एक आरक्षण था- सर्वांगीण सुख और अक्षय धाम। आज एक को आरक्षण देते हैं तो दूसरा खून के आँसू रोता है।
‘नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना।
नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना।।’
राम के राज्य में दरिद्र कोई नहीं था, सभी समृद्ध थे। दुःखी कोई नहीं था। सभी प्रबुद्ध थे, अशिक्षित कोई नहीं था तो कोटा कैसा? सिद्ध है कि राम के काल में बाहर समाज में वर्ण-व्यवस्था के नाम पर मनुष्य का विभाजन नहीं था। जब बाहर वर्ण थे ही नहीं तो राम ने किस शूद्र को मारा?
स्पष्ट है कि शम्बूक के प्रश्न का कोई सामाजिक सन्दर्भ अथवा भौतिक धरातल नहीं है। विचारणीय है कि रामायण के शम्बूक प्रकरण का आशय क्या है?
शम्बूक का अर्थ है समत्व की वृत्ति का स्वांग करनेवाला। शूद्र साधना का प्रथम चरण है। वह अल्पज्ञ होता है। वह दस घण्टे आँख मूँदता है फिर भी दस मिनट भी अपने पक्ष में नहीं पाता। गीता में है-
‘परिचर्यात्मकं कर्म शूद्रस्यापि स्वभावजम।’ (१८/४४)
जो ज्ञाता हों, तत्त्वदर्शी हों, ऐसे महापुरुषों की सेवा से योग्यता आपके अन्दर स्वतः प्रसारित हो जायेगी। विधि जागृत होने पर उत्तरोत्तर उन्नत श्रेणियों में प्रवेश मिल जाता है।
अल्पज्ञ श्रेणी का साधक भूल करता है।
‘सोचिय शूद्र विप्र अवमानी। मुखर मान प्रिय ज्ञान गुमानी।।’
ऐसा शूद्र शोचनीय है जो मुखर अर्थात् वाचाल (विकट प्रवक्ता), मान-सम्मान प्रिय, ज्ञान का दम्भ भरनेवाला, विप्र का अपमान करनेवाला हो। शूद्रत्व काल में ये दोष आ जाते हैं।
महर्षि काकभुशुण्डि का प्रथम जन्म, जिसमें आत्मिक जागृति हुई, शूद्र-तन था। साधना में प्रवेश तो मिला लेकिन गुरुजी से द्वेष कर बैठे और अजगर होने का शाप मिला। अस्तु शूद्र भूल करता है लेकिन अन्य श्रेणियों के साधक (वैश्य, क्षत्रिय, ब्राह्मण) कभी भूल नहीं करते।
राम के राज्य में अर्थात् भगवान् जब आत्मा से रथी हैं, उस स्थिति में जो साधना में प्रवेश पा चुका है, ऐसा साधक है तो शूद्र किन्तु शम्बूक अर्थात् समत्व की वृत्ति का आश्रय ले लेता है। वह वृक्ष से उलटा टँगा था। ‘संसार विटप नमामहे’, ‘उर्ध्वमूलमध:शाखम’- ऊपर परमात्मा जिसका मूल और कीट-पतंगपर्यन्त प्रकृति जिसकी शाखा-प्रशाखाएँ हैं, ऐसा संसार एक वृक्ष है। वह शम्बूक संसार-वृक्ष में, गर्भवास में उलटा लटका है। वह है अल्पज्ञ लेकिन स्वांग भरता है पूर्णत्व वालों का।
शम्बूक समत्व की वृत्ति का स्वांग कर रहा है, ऐसा करने से ब्राह्मण बालक मर गया। अर्थात् हृदय में जो ब्रह्म-चिन्तन आंशिक रूप से जागृत हुआ था वह प्रसुप्त (कुण्ठित) हो गया, न जाने वह कब मर गया।
ब्रह्म-चिन्तन , भजन बन्द हो गया। ऋषियों ने अनुमान लगाया किन्तु जाना नहीं। इस कमी को बाहर कोई जान नहीं सकता कि कौन ढोंगी है, कौन सही है? किन्तु राम ने उसे खोज लिया क्योंकि वह अन्तःकरण से आत्मा से रथी हैं। त्याग ही तलवार है। जहाँ भगवान् ने त्याग के द्वारा , अपौरुषेय प्रेरणा के द्वारा उसे नीचे गिराया, वह ब्राह्मण बालक जीवित हो गया। दैवी वृत्तियाँ उसमें पुनः प्रवाहित हो गयीं। देवता दुंदुभि बजाने लगे। ब्रह्मचिन्तन पूर्ववत होने लगा।
इस रामायण में एक सींक रखने की भी जगह नहीं है जहाँ कोई प्रश्न कर सके, न ही भेदभाव है, न छुआछूत है फिर भी लोग आक्षेप करते हैं कि हमारे शम्बूक को क्यों मार दिया?
भगवान् राम ने अपने जीवनकाल में जिनका उद्धार किया उनमें था केवट अधम, शबरी अधम, बानर-भालू अधम, असंख्य अपार निशाचर अधम। एक भी ब्राह्मण, एक भी क्षत्रिय को भगवान् ने नहीं तारा।
रामायण में तो उल्लेख नहीं है। राम ने अपार, अरबों अधमों को तारा, एक थाली में खिलाया, उनके जूठे बेर खाये, अपने धाम भेज दिया, उनके लिए किसी ने राम को धन्यवाद तक नहीं दिया और लाखों वर्ष पूर्व कोई एक मर गया तो हाय हमारे बाबा श्री शम्बूक जी! यहाँ कहाँ रखा है उनका बाबा? यह तो योग-साधना का रूपक है।
||ॐ श्री परमात्मने नम
– पंडित कृष्ण दत्त शर्मा
धन्य हैं आप विप्रश्रेष्ठ इतनी सुन्दर विवेचना आपके द्वारा की गई। लेकिन ये विधर्मी नास्तिक लोग क्या जानें?