भविष्यपुराण

महाराज युधिष्ठिर भगवान् श्रीकृष्ण से प्रश्न करते हैं, यह जीव किस कर्मसे देवता, मनुष्य और पशु आदि योनियों में उत्पन्न होता है ? शुभ और अशुभ फलका भोग कैसे करता है ?

इसका उत्तर देते हुए भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं कि उत्तम कर्मों से देवयोनि, मिश्रकर्म से मनुष्ययोनि और पाप-कर्मों से पशु आदि योनियों में जन्म होता है | धर्म और अधर्म के निश्चय में श्रुति ही प्रमाण है | पापसे पापयोनि और पुण्य से पुन्ययोनि प्राप्त होती है | वस्तुतः संसार में कोई सुखी नहीं है।

प्रत्येक प्राणी को एक दूसरे से भय बना रहता है। यह कर्ममय शरीर जन्म से लेकर अंततक दुखी ही है। जो पुरुष जितेन्द्रिय है और व्रत, दान तथा उपवास आदि में तत्पर रहते है, वे सदा सुखी रहते है |

तदन्तर यहाँ भगवन श्रीकृष्ण के द्वारा विविध प्रकार के पाप एवं पुण्य कर्मों का फल बताया गया है। अधम कर्म को ही पाप और अधर्म कहते हैं। स्थूल, सूक्ष्म, अतिसूक्ष्म आदि भेदों के द्वारा करोड़ों प्रकार के पाप हैं । परन्तु यहाँ मैं केवल बड़े-बड़े पापों का संक्षेप में वर्णन करता हूँ –

परस्री का चिन्तन, दुसरे का अनिष्ट-चिन्तन और अकार्य (कुकर्म) में अभिनिवेश – ये तीन प्रकार के मानस पाप हैं |

अनियंत्रित प्रलाप, अप्रिय, असत्य, परनिंदा और पिशुनता अर्थात चुगली – ये पाँच वाचिक पाप है |

अभक्ष्य-भक्षण, हिंसा, मिथ्या कामसेवन (असंयमित जीवन व्यतीत करना) और परधन-हरण – ये चार कायिक पाप हैं |

इन बारह कर्मों के करनेसे नरक की प्राप्ति होती है | इन कर्मों के भी अनेक भेद होते है | जो पुरुष संसाररूपी सागर से उद्धार करनेवाले सदाशिवअथवा भगवान् विष्णु से द्वेष रखते हैं, वे घोर नरक में पड़ते हैं |

ब्रह्महत्या, सुरापान, सुवर्ण की चोरी और गुरु-पत्नीगमन – ये चार महापातक हैं | इन पातकों को करनेवालों के सम्पर्क में रहनेवाला मनुष्य पाँचवाँ महापातकी गिना जाता हैं | ये सभी नरक में जाते हैं | इसके अतिरिक्त कई प्रकार के उपपातकों का भी वर्णन आया है। जिनका फल दुःख और नरकगमन ही है।

इसलिये बुद्धिमान मनुष्य शरीर को नश्वर जानकार लेशमात्र भी पाप न करे, पापसे अवश्य ही नरक भोगना पड़ता है | पाप का फल दुःख है और नरक से बढ़कर अधिक दुःख कहीं नहीं है |

पापी मनुष्य नरकवास के अनन्तर फिर पृथ्वीपर जन्म लेते है } वृक्ष आदि अनेक प्रकार की स्थावर योनियों में वे जन्म ग्रहण करते है और अनेक कष्ठ भोगते हैं | अनन्तर कीट, पतंग, पक्षी, पशु आदि अनेक योनियों में जन्म लेते हुए अति दुर्लभ मनुष्य-पाप पाते है |

स्वर्ग एवं मोक्ष देनेवाले मनुष्य-जन्म को पाकर ऐसा कर्म करना चाहिये, जिससे नरक न देखना पड़े | यह मनुष्य-योनि देवताओं तथा असुरों के लिये भी अत्यंत दुर्लभ है |

धर्म से ही मनुष्य का जन्म मिलता है | मनुष्य- जन्म पाकर उसे धर्म की वृद्धि करनी चाहिये | जो अपने कल्याण के लिए धर्म का पालन नहीं करता है, उसके समान मूर्ख कौन होगा ?

यह देश सब देशों में उत्तम है | बहुत पुण्यसे प्राणी का जन्म भारतवर्ष में होता है | इस देशमें जन्म पाकर जो अपने कल्याण के लिये पुण्य करता हैं, वही बुद्धिमान है | जिसने ऐसा नहीं किया, उसने अपने आत्मा के साथ वंचना की |

जबतक यह शरीर स्वस्थ है, तबतक जो कुछ पुण्य बन सके वह कर लेना चाहिये | बाद में कुछ भी नहीं हो सकता | दिन-रात के बहाने नित्य आयु के ही अंश खंडित हो रहे है | फिर भी मनुष्यों को बोध नहीं होता कि एक दिन मृत्यु आ पहुँचेगी |

यह जानते हुए कि एक दिन इन सभी सामग्रियों को छोडकर अकेले चले-जायेंगे, फिर अपने हाथ से ही अपनी सम्पति सत्पात्रों को क्यों नहीं बाँट देते ? मनुष्य के लिये दान ही पाथेय अर्थात रास्ते के लिये भोजन है |

जो दान करते है, वे सुखपूर्वक जाते है | दानहीन मार्ग में अनेक दुःख पाते है, भूखे मरते जाते है | इन सब बातों को विचारकर पुण्य ही करना चाहिये, पापसे सदा बचना चाहिये | पुण्य कर्मों से देवत्त्व प्राप्त होता है और पाप करनेसे नरक की प्राप्ति होती है |

जो सत्पुरुष सर्वात्मभाव से श्रीपरमत्व-प्रभु की शरण में जाते हैं, वे पद्मपत्रपर स्थित जल की तरह पापों से लिप्त नहीं होते | इसलिए द्वंद्वसे छूटकर भक्तिपूर्वक ईश्वर की आराधना करनी चाहिये तथा सभी प्रकार के पापों से निरंतर बचना चाहिये |

भगवन श्रीकृष्ण युद्धिष्ठिर से कहते हैं कि यहाँ भीषण नरकों का जो वर्णन किया गया है, उन्हें व्रत-उपवासरूपी नौका से पार किया जा सकता है | प्राणी को अति दुर्लभ मनुष्य-जन्म पाकर ऐसा कर्म करना चाहिये, जिससे पश्चाताप न करना पड़े और यह जन्म भी व्यर्थ न जाय और फिर जन्म भी न लेना पड़े |

जिस मनुष्य की कीर्ति, दान, व्रत, उपवास आदि की परम्परा बनी है, वह परलोक में उन्हीं कर्मो के द्वारा सुख भोगता है | व्रत तथा स्वाध्याय न करनेवाले की कहीं भी गति नहीं हैं | इसके विपरीत व्रत, स्वाध्याय करनेवाले पुरुष सदा सुखी होते है | इसलिए व्रत-स्वाध्याय अवश्य करने चाहिये |

— भविष्यपुराण

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