सांसारिक भोगों में आसक्त मनुष्यों का प्रेम भगवान से नहीं हो सकता

सांसारिक भोगों में आसक्त मनुष्यों का प्रेम भगवान से नहीं हो सकता …..

जैसे अन्धकार और प्रकाश एक साथ नहीं रह सकते वैसे ही सांसारिक भोगों में आसक्ति और भगवान की भक्ति एक साथ कभी भी नहीं हो सकती| भगवान शत-प्रतिशत प्रेम माँगते हैं| अन्यत्र भी कहीं आसक्ति होती है तो भक्ति व्यभिचारिणी हो जाती है|

गीता में भगवान कहते हैं …..
भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम्| व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते||२:४४||

अर्थात् उस पुष्पित वाणीसे जिसका अन्तःकरण हर लिया गया है अर्थात् भोगोंकी तरफ खिंच गया है और जो भोग तथा ऐश्वर्यमें अत्यन्त आसक्त हैं उन मनुष्योंकी परमात्मामें निश्चयात्मिका बुद्धि नहीं होती|

जो भोग तथा ऐश्वर्य में आसक्त हैं, जो सांसारिक भोगों और ऐश्वर्य को ही पुरुषार्थ मानते हैं, उनके अंतःकरण में भगवान के प्रति प्रेम नहीं ठहर सकता| हम भोगी मनुष्य और तो कर ही क्या सकते हैं, भगवान से निरंतर प्रार्थना तो कर ही सकते हैं कि हे प्रभु, हमारी आसक्ति इस संसार से हटा कर स्वयं में ही लगाओ|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

– Kripa Shankar ji

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