माँ भगवती आद्या शक्ति श्री विद्या महात्रिपुरसुन्दरी राज राजेश्वरी

*”श्री विद्या महात्रिपुरसुंदरी, चिर यौवन एवं सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाली १६ वर्षीय युवती के रूप में हैं।”*

महाविद्याओं में तीसरी श्री विद्या महा देवी आद्या शक्ति, अपने तीसरे रूप में श्री त्रिपुरसुन्दरी के नाम से जानी जाती हैं, देवी अत्यंत सुन्दर रूप वाली सोलह वर्षीय युवती रूप में विद्यमान हैं। तीनों लोकों ( स्वर्ग, पाताल तथा पृथ्वी ) में देवी सर्वाधिक सुन्दर, मनोहर रूप वाली तथा चिर यौवन हैं। देवी आज भी यौवनावस्था धारण की हुई हैं तथा सोलह कला या पूर्ण सम्पन्न है।

सोलह अंक जो की पूर्णतः का प्रतीक है (सोलह की संख्या में प्रत्येक तत्व पूर्ण माना जाता है, जैसे १६ आना एक रुपया होता है), सोलह प्रकार के कलाओं तथा गुणों से परिपूर्ण देवी का एक अन्य नाम षोडशी विख्यात है। देवी प्रत्येक प्रकार कि मनोकामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं, मुख्यतः सुंदरता तथा यौवन से घनिष्ठ सम्बन्ध होने के परिणामस्वरूप, मोहित कार्य और यौवन स्थाई रखने हेतु, इनकी साधना उत्तम मानी जाती है।

देवी श्री विद्या ही संपत्ति, समृद्धि दात्री, श्री शक्ति के नाम से भी जानी जाती हैं, इन्हीं की आराधना कर कमला नाम से विख्यात दसवीं महाविद्या, धन, सुख तथा समृद्धि की देवी महा-लक्ष्मी हुईं।

देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध पारलौकिक शक्तियों से है, समस्त प्रकार की दिव्य, अलौकिक तंत्र तथा मंत्र शक्तियों की देवी अधिष्ठात्री हैं। तंत्रो में उल्लेखित मारण, मोहन, वशीकरण, उच्चाटन, स्थम्भन इत्यादि (जादुई शक्ति) या इंद्रजाल विद्या देवी की कृपा के बिना पूर्ण नहीं होते हैं।

योनि पीठ ‘कामाख्या’, देवी श्री विद्या महा त्रिपुरसुंदरी, सम्बंधित सर्वश्रेष्ठ तंत्र पीठ।

काम देव द्वारा सर्वप्रथम पूजित सती योनि पीठ कामाख्या नाम से विख्यात है, इस स्थान पर समस्त देवताओं ने देवी की आराधना की है। यहाँ शिव पत्नी सती कि योनि गिरी थी, यह आदि काल से ही परम सिद्धि दायक शक्ति पीठ रहा है। यह पीठ नीलाचल पर्वत के ऊपर विद्यमान है तथा इस प्रान्त को आदि काल में प्रागज्योतिषपुर के नाम से जाना जाता था।

आज यहाँ देवी का एक भव्य मंदिर विद्यमान है, जिसका कूचबिहार के राज वंश ने जीर्णोधार करवाया था तथा भारत वर्ष के असम राज्य में अवस्थित है। आदि काल से ही यह पीठ समस्त प्रकार के आगमोक्त तांत्रिक, परा विद्या तथा गुप्त साधनाओं हेतु श्रेष्ठ माना जाता हैं तथा मानव, दानव, मुनि, सिद्ध, गन्धर्वों, देवताओं द्वारा उपयोग किया जाता है।

त्रेता तथा द्वापर युग में इस पीठ पर देवी की आराधना नरकासुर करते थे, इस प्रान्त के विभिन्न स्थानों का उल्लेख महाभारत ग्रन्थ से प्राप्त होता है।

इसके अलावा देवी त्रिपुरसुंदरी अपने नाना अन्य रूपों में भारत के विभिन्न प्रान्तों में पूजिता हैं। वाराणसी में विद्यमान राज राजेश्वरी मंदिर विद्यमान है, जहाँ देवी राज राजेश्वरी( तीनों लोकों की रानी ) के रूप में पूजिता हैं।

कामाक्षी स्वरूप में देवी तमिलनाडु के कांचीपुरम में पूजी जाती हैं। मीनाक्षी स्वरूप में देवी का विशाल तथा भव्य मंदिर तमिलनाडु के मदुरै में है। बंगाल के हुगली जिले में बाँसबेरिया नमक स्थान में देवी हंशेश्वरी (षोडशी) नाम से पूजित हैं। माँ भगवती श्री त्रिपुरसुंदरी जो सोलह कला सम्पूर्ण हैं वे भवानी आप सभी का सहपरिवार सहित सदैव मङ्गल करें।

*!! जय माँ जगदम्बा भवानी !!*

*!! सत्यम शिवम सुन्दरम !!*

– पंडित कृष्ण मुरारी तिवारी

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