शीतला माता पूजा व बसोडा पूजन

चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शीतला सप्तमी कहते हैं, इस दिन शीतला माता को प्रसन्न करने के लिए पूजन व व्रत किया जाता है, इस व्रत में एक दिन पूर्व बनाया हुआ भोजन किया जाता है अत: इसे बसौड़ा या बासी कहते हैं, शीतला सप्तमी का व्रत करने से शीतला माता प्रसन्न होती हैं तथा जो यह व्रत करता है, उसके परिवार में दाहज्वर, पीतज्वर, दुर्गंधयुक्त फोड़े, नेत्र के समस्त रोग तथा ठंड के कारण होने वाले रोग नहीं होते।

वन्देहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम्।

मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालड्कृतमस्तकाम्।।

इस व्रत की विशेषता है कि इसमें शीतला देवी को भोग लगाने वाले सभी पदार्थ एक दिन पूर्व ही बना लिये जाते हैं, और दूसरे दिन इनका भोग शीतला माता को लगाया जाता है, मान्यता के अनुसार सप्तमी के दिन घरों में चूल्हा भी नहीं जलाया जाता यानी सभी को एक दिन बासी भोजन ही करना पड़ता है।

महिलाओ को इस दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निपटकर स्वच्छ व शीतल जल से स्नान करना चाहियें, स्नान के बाद इस मंत्र से व्रत का संकल्प लें- “मम गेहे शीतलारोगजनितोपद्रव प्रशमन पूर्वकायुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्धिये शीतला सप्तमी अष्टमी व्रतं करिष्ये” विधान से माता शीतला का पूजन करें, इसके बाद एक दिन पहले बनाये हुये खाने को मिठाई, पूआ, मिठीपूरी, दहि-भात का भोग लगायें।

शीतला स्तोत्र का पाठ करें और यदि यह उपलब्ध न हो तो शीतला माता की कथा सुनें व जगराता करें, इस दिन व्रती तथा उसके परिवार के किसी अन्य सदस्य को भी गर्म भोजन नहीं करना चाहिये, प्राचीनकाल से ही शीतला माता का बहुत अधिक माहात्म्य रहा है, स्कंद पुराण में माता शीतला देवी का वाहन गर्दभ बताया है।

ये हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण करती हैं, इन बातों का प्रतीकात्मक महत्व होता है, चेचक का रोगी व्यग्रतामें वस्त्र उतार देता है, सूप से रोगी को हवा की जाती है, झाडू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं, नीम के पत्ते फोडों को सड़ने नहीं देते, रोगी को ठंडा जल प्रिय होता है अत:कलश का महत्व है, गर्दभ की लीद के लेपन से चेचक के दाग मिट जाते हैं।

शीतला-मंदिरों में प्राय: माता शीतला को गर्दभ पर ही आसीन दिखाया गया है, स्कन्द पुराण में इनकी अर्चना का स्तोत्र शीतलाष्टक के रूप में प्राप्त होता है, ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र की रचना भगवान शंकर ने लोकहित में की थी, शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा गान करता है, साथ ही उनकी उपासना के लिये भक्तों को प्रेरित भी करता है, शास्त्रों में भगवती शीतला की वंदना के लिये के लिये मंत्र उपर दर्शाया गया है।

मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से शीतला देवी प्रसन्‍न होती हैं, आज भी करोड़ों लोग इस नियम का बड़ी आस्था के साथ पालन करते हैं, शीतला माता की उपासना अधिकांशत: ग्रीष्म ऋतु के शुरुआत की ऋतु में होती है, आधुनिक युग में भी शीतला माता की उपासना स्वच्छता की प्रेरणा देने के कारण सर्वथा प्रासंगिक है।

भगवती शीतला की उपासना से स्वच्छता और पर्यावरण को सुरक्षित रखने की प्रेरणा मिलती है, जीवन में शांति और समृद्धि के लिए भी वर और वधु माँ शीतला का पूजन करते हैं, हमारे जीवन में संताप और ताप से हम बचे रहें और शांति और शीतलता बनी रहे, इस कामना से हम माँ शीतला का पूजन करते हैं, श्री शीतला मां सदा हमें शान्ति, शीतलता तथा निरोगीता दें, “शीतले त्वं जगन्माता, शीतले त्वं जगत् पिता, शीतले त्वं जगद्धात्री, शीतलायै नमो नमः”

श्री शीतला माता की जय!

⁃ पंडित कृष्ण दत्त शर्मा

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