माँ कात्यायनी

आज माता रानी के नवरात्रों का छठवां दिन है, आज के दिन माँ कात्यायनी की पूजा की जाती है। कात्यायनी नवदुर्गा के नौ रूपों में छठवाँ रूप हैं।

जब-जब संसार में दैत्यों का अत्याचार बढ़ता है। धर्म व धरा तथा ऋषि समुदाय सहित देव गण भी उनके बढ़ते हुए दुराचारों से आक्रान्त होने लगते हैं। तब-तब किसी न किसी दैवीय शक्ति की उत्पत्ति असुरों के विनाश व जगत के कल्याण हेतु होती है। ऐसी ही माँ भगवती देवी कात्यानी की उत्पत्ति संसार के कल्याण हेतु होती है।

जिन्होंने वरदान के मद में चूर महिषासुर जैसे महाभयानक दैत्यो को मारकर जगत का कल्याण किया है। माँ दुर्गा जगत जननी के इस विग्रह अर्थात् छठे रूप को कात्यानी के रूप में सुप्रसिद्धि प्राप्त है। अपने श्रद्धालु भक्तों को अभय देने वाली, रोग, पीड़ाओं, भय, ग्लानि को दूर करने वाली परम शक्ति का पावन स्मरण सभी के लिए कल्याणकारी है।

माँ की उत्पत्ति के संदर्भ में दुर्गा सप्तशती में वर्णित है। कि देवताओं के कार्य सिद्ध करने के लिये देवी महर्षि कात्यायन के आश्रम पर प्रकट हुई और महर्षि ने उन्हें अपनी कन्या माना, इसलिए कात्यानी नाम से उनकी प्रसिद्ध सम्पूर्ण विश्व में हुई। यह महिषासुर का संहार करने वाली हैं, जो श्री हरि विष्णु, आदि देव महादेव तथा ब्रह्म जी के परम तेज से उत्पन्न हुई।

माँ ईश्वरी की सर्व प्रथम आराधना व पूजा अर्चना ख्याति प्राप्ति जग जाहिर महर्षि कात्यायन ने की, और माँ कृपा करके उन्हीं के नाम को और प्रसिद्ध कर दिया। जिससे इन्हें दिव्य शक्ति माँ कात्यानी कहा जाने लगा। माँ की प्रतिमा चतुर्भुजी है जो विविध प्रकार के अस्त्रादि से युक्त है। जिनमें अभय मुद्रा, वरमुद्रा तथा तलवार व कमल प्रमुख हैं।

माँ श्रद्धालु भक्तों को जीवन में सफलता दिलाने वाली तथा कुशाग्र बुद्धि का बनाती हैं और उन्हें इच्छित फल भी देती हैं। इनके भक्तों को वांछित कार्य करने में महारथ हासिल होती है। तथा संबंधित क्षेत्रों में माँ की कृपा से उन्हे उच्च शिखर प्राप्त होता है।

श्री माँ दुर्गा के इस छठे विग्रह को कात्यायनी के नाम से जाना जाता है। इनकी पूजा अर्चना नवरात्रि के छठे दिन करने का विधान होता है। यह अपने भक्तों को वांछित फल देने वाली है।

अर्थात् माँ की कृपा को प्राप्त करने हेतु पूर्व के दिनों के तरह नित्यादि शुचि कर्मों को करते हुए। पूजन में विहित सम्पूर्ण वस्तुओं को पूर्व की तरफ संग्रहित करके तथा सुवासित जल, तीर्थ जल गंगा जल आदि सहित पंचमेवा व पंचामृत आदि से विविध प्रकार से पूजन करने का विधान है। इनकी पूजा से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। तथा शारीरिक बल और समृद्ध हुआ करता है।

व्यक्ति जीवन पथ पर रोग, भय से मुक्त होता है। तथा प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष शत्रुओं से छुटकारा प्राप्त होता है। ऐसा भी कथानक प्राप्त होता है कि, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण को प्रीयतम के रूप में प्राप्त करने हेतु व्रज मंडल की गोपियों ने इनकी आराधना की थी। माता ने उन्हें वांछित वर प्रदान किया तथा ब्रज में आज भी दिव्य रूप में प्रतिष्ठत हैं।

माँ कात्यायनी भक्त जनों के हितार्थ परम शक्ति के रूप मे उत्पन्न हुई और संसार में व्याप्त असुरों के भय को समाप्त किया है। माँ के नाम के संदर्भं में कथानक आता है, कि देवताओ के कल्याण हेतु यह महर्षि कात्यायन के यहाँ प्रकट हुई जिससे इनका नाम कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। तथा महर्षि द्वारा इन्हें पुत्री के रूप में स्वीकार करते हुए पूजा अर्चना की गई। पूर्व काल में जब महिषासुर के अत्याचार से धरा में पाप बढ़ गए और देवताओ का यज्ञ भाग छीना जाने लगा।

देव समुदाय मे यह चर्चा होने लगी कि धरती के पाप कैसे नष्ट होगे और देवताओं सहित पूरे विश्व का कल्याण कैसे होगा। इस संदर्भ में गहन चिंतन करने पर देवताओं ने यह निष्कर्ष निकाला कि ईश्वरी देवी को प्रकट किया जाए। क्योंकि वह किसी भी देवताओं से मर नहीं रहा था।

अर्थात् महिषासुर को यह देवताओं से ही वरदान मिला था कि उसे कन्या अर्थात् स्त्री के सिवा और कोई न मार सके। इस वरदान के मद में चूर वह दानव राज कू्ररता पूर्वक अत्याचार को अंजाम देने लगा। जिससे देवताओं ने अपने शरीर के द्वारा परम तेजस्वनी कन्या को उत्पन्न किया।

जिसका नाम कात्यायनी पड़ा। तथा देव कार्य को माता ने अपनी अद्वितीय शक्ति के द्वारा सिद्ध करते हुए उस महासुर का संहार दशमी के दिन कर दिया। दूसरा कथानक है कि कात्यायन गोत्रीय ऋषि ने तपस्या करके कन्या रत्न का वरदान माँगा जिससे उनके कुल मे माँ उत्पन्न हुई और महिषासुर जैसे दानव को मारकर संसार को अभय दिया ।

माँ कात्यायनी माता के संदर्भं में संबंधित शास्त्रों में कई स्थानों में उनसे संबंधित मंत्रो का उल्लेख प्राप्त होता है। माँ की पूजा हेतु जरूरत के अनुसार मंत्रों का जाप व उच्चारण किया जाता है। माँ भक्त जनों को सुख शांति, ऐश्वर्य, सौभाग्य देने वाली हैं। यहाँ माँ कात्यायनी के आराधना के मंत्रों को दिया जा रहा है।

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।

सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते।।

कात्यायनी माता के महात्म्य को दुर्गा सप्तशती में कई स्थानों पर वर्णित किया गया है। माँ अपने श्रद्धालु भक्त जनों को वांछित फल देने वाली हैं। तथा इनकी पूजा अर्चना से जीवन में सुख-शांति, सौभाग्य, आरोग्यता की प्राप्त होती है। यह माँ शारीरिक बल को बढ़ाने की अद्भूत शक्ति देती है। राक्षस समूहों का विनाश करने व शत्रुओं के दमन की इनमें अद्भुत शक्ति हैं।

माँ वैवाहिक जीवन को सुखी बनाने का परम आशीर्वाद अपने भक्तों को देती है। इनकी पूजा करने से व्यक्ति को सद्गृहस्थ में शामिल होने की क्षमता प्राप्त होती है। अर्थात् उसे स्त्री पुत्र, पौत्र की प्राप्ति तो होती ही है। साथ ही धन ऐश्वर्य भी मिलता है। माँ के भक्त स्त्री पुरूष कोई भी हों उन्हें अपार कृपा प्राप्त होती है।

सौभाग्याकांक्षी कन्याओं हेतु माता की पूजा विशेष रूप से फल दायी होती है। अतः अनुकूल जीवन साथी की प्राप्ति हेतु माता की पूजा अर्चना का बड़ा ही महात्म्य है। अतः श्रद्धालुओं को वैदिक रीति द्वारा अनुष्ठान करते हुए माँ का पूजन करना चाहिए।

– पंडित कृष्ण दत्त शर्मा

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