श्री गुरुदेव दत्त जप का महत्व

श्री गुरुदेव दत्त जप का महत्व क्या है ?

वर्तमान काल में पूर्व की भांति कोई श्राद्ध-पक्ष में पूजन तर्पण इत्यादि नहीं करता और न ही व्यक्तिगत साधना करता है । इसलिए अधिकतर सभी को पूर्वजों की अतृप्ति के (पितृदोष के) कारण कष्ट होता है । आगे पितृदोष की संभावना है अथवा वर्तमान में हो रहा कष्ट पितृदोष के कारण है, यह केवल उन्नत ही बता सकते हैं ।

ऐसे किसी उन्नत से भेंट संभव न हो, तो यहां अतृप्त पितरों के कुछ लक्षण दिए हैं – विवाह न होना, पति-पत्नी में अनबन, गर्भधारण न होना, गर्भधारण होने पर गर्भपात हो जाना, संतान का समय से पूर्व जन्म होना, मंदबुद्धि वा विकलांग संतान होना, संतान की बचपन में ही मृत्यु हो जाना आदि । व्यसन, दरिद्रता, शारीरिक रोग, ऐसे लक्षण भी हो सकते हैं । ऐसे में आगे दिए अनुसार साधना करें ।

पितृदोष से सुरक्षा हेतु कष्ट की तीव्रता के अनुसार उचित उपासना

१. किसी भी प्रकार का कष्ट न हो रहा हो, तो भी आगे चल कर कष्ट न हो इसलिए, साथ ही यदि थोडासा भी कष्ट हो तो ‘श्री गुरुदेव दत्त’ नामजप १ से २ घंटे करें । शेष समय प्रारब्ध के कारण कष्ट न हो इस हेतु एवं आध्यात्मिक उन्नति हो इसलिए सामान्य मनुष्य अथवा प्राथमिक अवस्था का साधक कुलदेवता का नामजप अधिकाधिक करे ।

२. मध्यम कष्ट हो तो कुलदेवता के नामजप के साथ ‘श्री गुरुदेव दत्त ।’ नामजप प्रतिदिन २ से ४ घंटे करें । गुरुवार को दत्तमंदिर जाकर सात परिक्रमाएं करें एवं बैठकर एक-दो माला जप वर्षभर करें । तत्पश्चात् तीन माला नामजप जारी रखें ।

३. तीव्र कष्ट हो तो कुलदेवता के नामजप के साथ ही ‘श्री गुरुदेव दत्त ।’ नामजप प्रतिदिन ४ से ६ घंटे करें ।

कष्ट की गंभीरता के कुछ उदाहरण संकेत निम्नलिखित हैं :

प्रकार – उदाहरण
सौम्य – त्वचा का रोग, वैवाहिक जीवन में संघर्ष
मध्यम – विवाह-विच्छेद, मानसिक रूप से विकलांग बच्चे
तीव्र – गर्भपात, बचपन में मृत्यु

टिप्पणी : कष्ट यदि गंभीर हैं, तो विशिष्ट आध्यात्मिक अनुष्ठान करने की सलाह
जा सकती है ।

पितृपक्ष में दत्तात्रेय देवता का नामजप करने का महत्त्व

पितृपक्ष में दत्तात्रेय देवता का नामजप करने से पितरों को शीघ्र गति मिलती है; इसलिए उस काल में प्रतिदिन दत्तात्रेय देवता का न्यूनतम ६ घंटे (७२ माला) नामजप करें ।

१. भगवान श्री दत्त के नामजप से पितृदोष से रक्षा कैसे होती है ?

अधिकांश लोग साधना नहीं करते । अतएव वे माया में अत्यधिक लिप्त होते हैं । इसलिए मृत्यु के उपरांत ऐसे व्यक्तियों की लिंगदेह अतृप्त रहती है । ऐसे अतृप्त लिंगदेह मत्र्यलोक में (मृत्युलोक में) अटक जाते हैं । (मृत्युलोक भूलोक एवं भुवर्लाेक के मध्य में है ।) भगवान श्री दत्त के नामजप के कारण मृत्युलोक में अटके पूर्वजों को गति मिलती है । इसलिए आगे चलकर वे उनके कर्म के अनुसार आगे-आगे के लोक में जाते हैं । इससे स्वाभाविक रूप से उन से व्यक्ति को होने वाले कष्ट की तीव्रता घट जाती है ।

२. सुरक्षा-कवच निर्माण होना
भगवान श्री दत्त के नामजप से निर्मित शक्ति से नामजप करने वाले के सर्व ओर सुरक्षा-कवच निर्माण होता है । लाभ का स्तर, मात्रा और हमारे जप, जो अन्य कारकों के अलावा, हमारे आध्यात्मिक स्तर पर निर्भर करता है की गुणवत्ता पर निर्भर करता है ।

३ पूर्वजों के कष्ट के संदर्भमें अनुभूतियां

अ. ‘दत्त के नामजप के कारण स्वप्न में नाग दिखाई देना बंद होना’ – श्रीमती उमा किशोर ठोमके, कोल्हापुर, महाराष्ट्र.
आ. ‘दत्त का नामजप एवं श्राद्धादि विधियों से पूर्वजों के कष्ट से मुक्ति होने के कारण बच्चा सुधर जाना’ – एक साधिका, मीरज, जनपद सांगली, महाराष्ट्र.
संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘भगवान दत्तात्रेय’ एवं ‘श्राद्ध’

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