जीवन का अंधकार और प्रकाश
एक कहानी बचपन में पढ़ी थी कि एक बार अंधकार, भगवान के पास शिकायत करने गया कि जब भी मैं विश्राम करता हूँ, तब प्रकाश प्रकट हो जाता है और मुझे भागना पड़ता है, भागते-भागते थक गया हूँ, इस प्रकाश से अब मेरी रक्षा करो|
भगवान ने प्रकाश से पूछा कि तुम अंधकार को क्यों भगाते हो? प्रकाश ने उत्तर दिया कि अंधकार झूठ बोलता है| उसे मेरे सामने बुलाकर पूछो| भगवान ने अंधकार को बुलाया तो आज तक वह प्रकाश के समक्ष नहीं आ पाया| अंधकार और प्रकाश कभी एक-दूसरे के समक्ष नहीं आ सकते|
इस सृष्टि में यदि अंधकार नहीं होता तो प्रकाश का महत्व भी नहीं होता| जीवन के सारे अंधकार और प्रकाश को बापस परमात्मा को समर्पित कर दो, व उनके परम ज्योतिर्मय रूप का ध्यान करो| इस अंधकार और प्रकाश दोनों से ही मुक्ति पानी होगी| परमात्मा दोनों से परे है| हम शाश्वत आत्मा हैं, जो नित्य मुक्त है| सारे बंधन मिथ्या हैं| कहीं कोई अंधकार नहीं है, सर्वत्र आलोक ही आलोक है| वह आलोक जो सब ज्योतियों की ज्योति ‘ज्योतिषांज्योति’ है, वह विष्णु का परम धाम, वैष्णवपद, हम स्वयं हैं| हमारा लक्ष्य वह विष्णु का परमधाम यानि वैष्णवपद है|
श्रुति भगवती कहती हैं …..
“न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः| तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति||”
गीता में भगवान कहते है …..
“न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः| यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम||१५:६||”
किसी भी भाँति भगवान में लग जाओ, फिर भगवान अपने आप सँभालेंगे| भगवान के सिवाय कोई हमारा नहीं है| भगवान से विमुख होते ही हम अनाथ हैं|
कल्याण का मार्ग …..
—————-
“मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु| मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे||१८:६५||”
“सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज| अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः||१८:६६||”
यमराज के भैंसे के गले की घंटी …..
—————————–
कहते हैं कि मृत्यु के समय सुनाई देने वाली यमराज के भैंसे के गले की घंटी बड़ी भयानक और कर्कश होती है| उसे सुनाई देते ही व्यक्ति के संकल्प-विकल्प सब विस्मृत हो जाते हैं, और जीवन भर के सारे कर्म सामने आ जाते हैं| व्यक्ति कुछ समझे तब तक प्राण-पखेरू निकल जाते हैं| उस समय कोई रिश्वत या सिफारिश काम नहीं आती| यमदूत व्यक्ति के कर्मानुसार उसे बहुत अधिक यंत्रणा देते हैं| बहुत अधिक मारते-पीटते हैं, और गर्म रेत में चलवाते हैं| जिन्होने जीवन काल में ही विष्णुपद को प्राप्त कर लिया है, वे ही बिना किसी यंत्रणा के देवलोकों में जाते हैं|
आप सब महान आत्माओं को मेरा विनम्र नमन !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
– कृपा शंकर