माँ कालरात्रि

माँ कालरात्रि
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नवरात्रि की सातवीं शक्ति कालरात्रि है। कालजयी, शत्रुओं का दमन करने वाली, चंड-मुंड का संहार करने वाली और भक्तों को अभय प्रदान करने वाली माँ काली के आधीन सारा जग है।

भगवती की समस्त शक्तियां उनके आधीन हैं। वे ही शिव की शक्ति हैं, वे ही विष्णु की नारायणी हैं और वे ही सरस्वती का कार्य सिद्ध करने वाली हैं। माँ काली के आधीन क्या नहीं है ?

प्राणी जिन-जिन वस्तुओं से दूर भागता है, वह सब माँ काली को प्रिय है। मृत्यु, श्मशान, नरमुंड, रक्त, विष–सब देवी के कालतत्व हैं। भगवान शिव की मोक्षशक्तियों के कार्य माँ काली ही पूर्ण करती हैं।

काल क्या है, जीवन की गति क्या है, कालरात्रि क्या है ? हरि प्रिया नारायणी ‘जीवन की शक्ति’ है तो कालरात्रि जीव की ‘अंतिम चरण की शक्ति’ है। हर व्यक्ति अपनी आयु पूरी करके मृत्यु को प्राप्त होता है। अन्त भला हो-यह कौन कामना नहीं करता। लेकिन काल का अनुभव कर लेना कोई सहज नहीं है।

देवासुर संग्राम में असुरों की शक्ति कोई कम नहीं थी। रक्तबीज के रक्त की एक बून्द जब पृथ्वी पर गिरती तो उस जैसे अनेक प्रतिरूप वहां उत्पन्न हो जाते थे। अंततः वह माँ चंडी ही थीं जिन्होंने रक्तबीज को निस्तेज कर दिया।

चंड-मुंड का वध करने के कारण माँ काली ‘देवी चामुंडा’ के नाम से प्रसिद्ध हुईं। माँ काली विजय, यश, वैभव, शत्रुदमन, अभय, अमोघता, न्याय और मोक्ष की देवी हैं। देवी का एक अर्थ ‘प्रकाश’ भी होता है। अर्थात् न्याय के मार्ग से ही जीवन में प्रकाश हो सकता है।

इनके शरीर का रंग काला है। एक बार शंकरजी ने इन्हें विनोद में ‘काली ‘ कह दिया- तभी से इनका नाम काली पड़ गया। एक वृतांत के अनुसार चंड-मुंड से युद्ध करते समय क्रोध से देवी का मुंह काला पड़ गया। शंकर जी की ही तरह इनके भी तीन नेत्र हैं। तीसरा नेत्र ‘त्रिकाल’ का है।

इनकी श्वास और प्रश्वास से भयंकर ज्वालायें निकलती हैं। गर्दभ इनका वाहन है। यह दिशाओं का ज्ञाता है। दश दिशाएं हैं। हर दिशा की एक महाशक्ति है। ‘दसमहाविद्या’ इनका ही स्वरुप है।

काली, तारा, षोडषी, भैरवी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, विद्याधूमावती, बगलामुखी, सिद्धविद्यामातंगी और कमला–ये दश महाविद्या कही गयी हैं। काली माँ को आदि महाविद्या भी कहा गया है।

यह देवी देवकार्य संपन्न करने के लिए अवतरित हुईं हैं। भगवान् विष्णु के कान के मैल से उत्पन्न हुए मधु-कैटभ के वध को देवी प्रगट हुईं। चंड- मुंड के संहार के लिए भी देवी का प्राकट्य हुआ।

नवरात्र के सातवें दिन माँ कालरात्रि की अर्चना होती है। इनकी पूजा से ग्रह, नक्षत्र, भूत-प्रेत, पिशाच, यक्ष, गन्धर्व, राक्षस–सभी प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है। यह तंत्र-मन्त्र की आद्या शक्ति है।

ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै–यह इनका बीज मन्त्र है। वैसे तो यही मन्त्र पर्याप्त है।
किन्तु सकल लाभ की दृष्टि से निम्न मन्त्र का पूर्ण जप करना चाहिए–
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै। ॐ ग्लौं हूं क्लीं जूं सः। ज्वालाय ज्वालाय ज्वल ज्वल प्रज्ज्वल प्रज्ज्वल।। ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै। ज्वल हं सं लं क्षङ फट् स्वाहा।।

उक्त मन्त्र को हाथ में काले तिल लेकर सात बार जपें तथा उस तिल को अखण्ड ज्योति या हवन के अर्पण कऱ दें। ध्यान–
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।
वामपादोल्लसल्लोहलताकंन्टकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी।।

– पंडित शिवराम तिवारी

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