देवल स्मृति: धर्मांतरण से पुनःशुद्धि के नियम

बीसवीं और इक्कीसवीं शताब्दी में सर्वाधिक चर्चित स्मृति रही है देवल स्मृति। इसमें हिन्दू से मुसलमान या ईसाई बने व्यक्ति या समूह को पुनः कैसे स्व धर्म में लाया जाए इसकी व्यवस्था दी गयी है।

देवलस्मृति का विरोध क्यों?

महर्षि देवल ने पतित या बलपूर्वक धर्मान्तरित व्यक्ति या समूह को कैसे पुनः सनातन पूजा पद्धत्ति (धर्म) में लाया जाए, इसकी व्यवस्था दी। इस व्यवस्था से सर्वाधिक परेशानी उन मजहबों को थी जो धर्मांतरण कराने में लगे थे और लगे हैं। अतः वे इसका सभी प्रकार से विरोध कर रहे थे।

दूसरा वर्ग वह था जो कट्टर धार्मिक था। जिसको नष्ट होते हिन्दू से लगाव नहीं था। घटती धार्मिक आबादी की जिनको चिंता नहीं थी।यह वर्ग बहुत प्रभावशाली और पूज्य होने के साथ साथ धार्मिक जगत में शीर्ष पर बैठा था।इसी वर्ग ने हिन्दू जनसंख्या को सर्वाधिक पीड़ित किया। यह वर्ग मालवीयजी और तिलकजी को भी सुनने को तैयार नहीं था।महर्षि देवल की चरणधूलि प्राप्त करने की योग्यता भी जिनमें नहीं थी वे उनकी स्मृति के विरुद्ध भाषण दे रहे थे।

यह काम धर्मशास्त्र से जुड़ा है पर विरोध करने वाले व्याकरण, साहित्य, दर्शन और अन्य विषय के थे। उनका आरोप था जो मुसलमान बन गया वह गोमांस खा लेता है। ऐसे व्यक्ति को हिन्दू नहीं बनाया जा सकता है। जबकि अगस्त्य ऋषि तो आतापी-वातापी राक्षस को भी खा कर पचा गए। उन्हें किसी ने धर्मबहिष्कृत नहीं किया।अस्तु। अंग्रेजों का काम धार्मिक विद्वान ही कर रहा था।

धर्म भ्रष्टता के चार प्रकार — १-सुरा पान २-गोमांस भक्षण ३-म्लेक्ष से दूषित ४-विधर्मी स्त्री-पुरुष से सम्बन्ध।

शुद्धि का वार्षिक उपाय – एक वर्ष तक चांद्रायण कर पराक व्रत करने वाला ब्राह्मण पुनःहिन्दू विप्र हो जाएगा। अन्य जाति का व्यक्ति इससे कम प्रायश्चित करेगा। यदि क्षत्रिय है तो वह एक पराक और एक कृच्छ्र व्रत करके ही शुद्ध हो जाएगा। वैश्य व्यक्ति आधा पराक व्रत से पुनः हिन्दू हो जाएगा। शूद्र व्यक्ति पांच दिन के उपवास से शुद्ध हो जाएगा। शुद्धि के अंतिम दिन बाल और नाखून अवश्य कटवाना चाहिए।(देवलस्मृति,७-१०)

ब्राह्मण प्रायश्चित्त करके गो दान, स्वर्ण दान भी करे।(श्लोक१३) इतना कर लेने के बाद उसे सपरिवार भोजन में पंक्ति देनी चाहिए — पंक्तिम् प्राप्नोति नान्यथा।(श्लोक१४)

कोई समूह यदि एक वर्ष या इससे ज्यादा दिनों तक धर्मान्तरित रह गया हो तो उसे शुद्धि, वपन, दानके अलावा गंगा स्नान भी करना चाहिए-गंगास्नानेन शुध्यति।(१५)।

विप्रों को सिंधु,सौबीर, बंग, कलिंग, महाराष्ट्र, कोंकण तथा सीमा पर जा कर शुद्धि करनी चाहिए।(श्लोक१६)।

बेजोड़ चिंतन — बलपूर्वक दासी बनाने पर, गो हत्या कराने पर, जबरदस्ती कामवासना पूरा कराने पर, उनका जूठा सेवन कराने पर – प्रजापत्य, चांद्रायण, आहिताग्नि तथा पराक व्रत से शुद्धि होगी। पन्द्रह दिन यव पीने से पुनः हिन्दू होगा।

कम पढ़ा लिखा व्यक्ति एक मास तक हाथ में कुशा लेकर चले और सत्य बोले तो वह शुद्ध हो अपने धर्म में प्रतिष्ठित हो जाएगा।।

महर्षि देवल को प्रणाम है जिन्होंने आज से ५२ सौ वर्ष पहले ये व्यवस्था दे दी थी।

समाज बचाइए। समाज को मजबूती दीजिये वह सभी की रक्षा कर लेगा।

⁃ डॉ कामेश्वर उपाध्याय

(अखिल भारतीय विद्वत्परिषद)

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